गंगा मै तेरे कितने पास होते हुए भी दूर हू,
याद आता है वो बचपन
जब मन किया ,खेल लिया करते रेत में,
बनाते घरौदें ,मंदिर ,मूरत
फिर पत्थरों का पुल न बना पाने की कोशिश
रूला देती सबकों
फिर भी नन्हें हाथों से बना ही लेते ,रेत से
गंगा मै तेरे पास होते हुए भी दुर हूं.........!
तेरे विशाल प्रवाह से बच,
किनारे-किनारे तैरने की
असफल कोशिशे
कैमरा ले उतार लेना तेरे
छायाचित्र ,खुद को समझ
एक माडल पानी में खिचवाना
अपने चित्र
गंगा मै तेरे कितने पास होते हुए भी दूर हूं.........!
बहू बन कर देती हूं
मंगलद्वीप प्रजवल्लित
और बहा देती हुं तेरे
प्रवाह में कितने ही अमंगल
दूर होने पर ,तेरी लहरें
गुंजती है बस संगीत बनकर
भूल जाती हूं अपने सारे दर्द
जल लेकर अंजुली भर
गंगा में तेरे कितने पास होते हुए भी दूर हूं..............!
------------