यह ब्लाग समर्पित है मां गंगा को , इस देवतुल्य नदी को, जो न सिर्फ मेरी मां है बल्कि एक आस्था है, एक जीवन है, नदियां जीवित है तो हमारी संस्कृति भी जीवित है.
Sunday, June 20, 2010
गंगोत्रीतीर्थ........अन्तिम भाग
पिछले दो भागो में आपने गंगोत्रीतीर्थ व यहां के मंदिर के बारे में जाना अब आगे........1816 में जब फ्रेजर ने नया विवरण प्रस्तुत किया तो गंगोत्री का पंडित व उसक परिवार के सदस्यों का मुखवा ग्राम में रहने का उल्लेख मिलता है यह भी पता चलता है कि 1788ई0 में गंगोत्तरी का मठ उजडा हुआ था जिससे यह तथ्य भी ध्यान में आता है कि मंदिर का निर्माण इस तिथि से पहले हो चुका था संभवत पहले वहां लकडी का मंदिर था उत्तराखण्ड के मंदिरों के इतिहास के बारे में लिखी गयी पुस्तकों से भी ज्ञात होता है कि अमरसिंह थापा ने मुखवा -गंगोत्तरी का कीमति प्रदेश गूंठ में दिया था ।गंगोत्री का वर्तमान मंदिर बनाने का श्रेय बीसवी शती ई0 के प्रारम्भ में जयपुर नरेश माधोसिहं को दिया जाता है मंदिर के गवाक्ष राजस्थानी शैली के तथा बरामदें के स्तम्भ राजस्थानी पहाडी शैली के मिश्रित स्वरूप में बने है ,गर्भगृह में गंगा की आभुषण युक्त मूर्ति है।गंगा मंदिर के समीप ही भैरव मंदिर भी है।
-गंगा माता मंदिर
गंगोत्री एक खुबसुरत शहर है सर्दियों में यह बर्फ से ढका रहता है विदेशी इसे बहुत पसन्द करते है विदेशियों में यह ट्रेंकिग के लिए भी लोकप्रिय है गौमुख व उससे आगे भी ट्रेकिग पर जाते है । तीर्थ यात्रा के अलावा यह एक प्रमुख पर्यटक स्थल है यह शहर दो भागों में बटा है भागीरथी के दोनो किनारों पर बसा है ।
1808 में जब गंगा स्रोत की खोज का कार्य ईस्ट इंडिया कम्पनी के सर्वेयर जनरल के आदेश पर कैप्टन रीपर तथा ले0 वेब को सौपा गया था । रीपर ने तब भटवाडी तक यात्रा की थी परन्तु वकिट मार्ग होने के कारण आगे नही बढ पाया वह लिखता है कि हिन्दु धर्म में गंगोत्री की यात्रा एक महान कार्य बतायी जाती है,1816 में उत्तराखण्ड पर ईस्ट इंडिया कम्पनी का अधिपत्य होते समय हिमाचल जौनसार ,यमुनोत्री होते हुए गंगोत्री पहुंचा था उसने द हिमाला माउन्टेन पृ0479 में लिखा -- "हम इस समय विशव के विलक्षण हिमाला के मध्य में शायद सर्वाधिक उबड-खाबड गिरि श्रृंगो के मध्य में खडे भारत की पवित्रतम नदी को निहार रहे थे ।हिमालय के तीर्थो में सर्वाधिक पवित्र इस तीर्थ की विराट नीरवता,स्तब्धता और एकान्तिकता हमारे मस्तिष्क में अवर्णीय अनूभूति का संचार कर रही थी ।"
गंगोत्री मंदिर के निकट ही भागीरथी एक फलांग आगे पश्चिम दिशा में विशाल में चट्टानों को चीरती हई एक चट्टानी गर्त में भंयकर वेग व गर्जना से प्रताप बनाती हुई गिरती है । इस गौरी कुण्ड कहते है ।
भागीरथी शिला से नीचे नहाने के लिए गर्म जल का प्राकृतिक स्रोत है जिसे ब्रहमकुण्ड कहा जाता है।
प्राकृतिक दृशयों से भरपुर गंगोत्री यात्रा का अलग ही रोमांच है भागीरथी शिला ,सुरजकुण्ड भी देखने लायक है। यदि पैदल यात्रा का शौक रखते हो तो गौमुख जाना न भूले यात्रा मार्ग के लिए घोडे व खच्चर भी उपलब्ध रहते है ।
गौरीकुण्ड-
सुरजकुण्ड-
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Featured Post
यहां वीरभद्र प्रकट हुआ था ----- वीरभद्रेश्वर मंदिर (ऋषिकेश)
पिछली पोस्ट में मैने ऋषिकेश के वीरभ्रद्र क्षेत्र का इतिहास बताया था पर इस पोस्ट में यह बता दू कि क्यो इस क्षेत्र को वीरभद्र के नाम से जाना ...
-
भगीरथ घर छोड़कर हिमालय के क्षेत्र में आए। इन्द्र की स्तुति की। इन्द्र को अपना उद्देश्य बताया। इन्द्र ने गंगा के अवतरण में अपनी असमर्थता...
-
आदिकाल से बहती आ रही हमारी पाप विमोचिनी गंगा अपने उद्गम गंगोत्री से भागीरथी रूप में आरंभ होती है। यह महाशक्तिशाली नदी देवप्रयाग में अलकनंदा ...
-
बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे ! हम भी कुंभ नहा आए ! हरिद्वार के हर की पौड़ी में डुबकी लगाना जीवन का सबसे अहम अनुभव था। आप इसे...
1 comment:
बहुत अच्छी और उपयोगी पोस्ट।
Post a Comment