श्रावण मास की शुरूवात के साथ कावंड यात्रा का भी प्रारम्भ हो चुका है तीर्थ नगरी में कावंडियों के आगमन के साथ ही प्रशासन भी चौकन्ना हो चुका है । पहले ही दिन हजारों की संख्या में शिव भक्तों ने नीलकंठ महादेव में जलाभिषेक किया। कावंड मेले की शुरूवात व कांवडियों के आगमन से
स्थानीय व यात्रा मार्ग में पडने वाले दुकानदारों के चेहरों पर रौनक आ गयी है जगह -जगह कावंडियों के लिए दुकाने भी सज चुकी है ।
कौन है यह कांवडियें ? इतनी बडी तदाद में क्या करने आते है गंगा के करीब । बच्चों के में यह सवाल उठते है । कावंड यात्रा का सम्बन्ध काफी पहले से चली आ रही गंगाजल को लेकर चली आ रही परम्परा से है । इतिहास विदों के अनुसार सम्राट अशोक के लिए गंगास्रोत से मुहरबंद गंगाजल पहुंचाया जाता था । गंगाजल
में मौजुद जीवाणु रक्षक बैक्टिरियों फेज के कारण इसका महत्व इतना था की आचमन के लिए पुराने समय से ही राजा महाराजा इसे मंगवाया करते थे अशोक के बाद गंगाजल को ले जाने की परम्परा का पालन भारशिव नाग,गुप्तराजा,अकबर तथा औरंगजेब तक गंगाजल का इस्तेमाल आचमन के लिए करते थे ।आचमन के लिए गंगाजल की सारे भारत में मांग होने से इसे विभिन्न भागों में पहुचाने के लिए एक वर्ग का उदय हुआ जिसे "कांवरिए" कहा गया जो कांवर ढोकर गंगा जल पहुंचाते थे । कर्नल स्लीमैन ने इस बारे में लिखा है कि "हिन्दुस्तान के विभिन्न भागों में शिव एवं विष्णु मन्दिरों में हरद्वार से लाये गये गंगा जल को चढाकर , उसका चरणामृत लेकर भविष्य में रोगी को पथ्य रूप में पिलाने हेतु रखा जाता है ।
इस जल को छोटी कुप्पियों में ले जाया जाता है जिस पर प्रधान पुजारियों पंडों की मुहर लगी होती है । गंगा जल ले जाने वाले तीन प्रकार के होते है -तीर्थयात्री ,सेवक या मजदूर बेचने वाले।"
इतिहासकारों का यह भी मानना है कि पहले हरद्वार से उपर ,गंगास्रोत से रमोली सेम मुखेम के फि क्याल गंगापुत्र ही लाते थे और इसी एकाधिकार के चलते द्वारहाट की कत्यूरी आल का ,गंगू रमोला गढपति से वर्षो तक युद्व चला था क्योंकि उसने आय मे हिस्सा देने से मना कर दिया था ।
यह तो थी इतिहास की बातें पर वर्तमान में कांवडियों का उदे्श्य तो वही पुराना है मनौतियां मांगना, गंगाजल ले जाना व शिवलिंग का गंगाजल से अभिषेक करना पर खुद को शिवभक्त कह बम- बम का उदघोष कर कावंड लाना तथा गंगाजल ले जाना इन सभी पहलुओ पर यह खरे नही उतरते यहां आ कर कुछ कांवडिये बताने वाले लोग अपनी उदडंता का तांडव मचाना अपना जन्मसिद्व अधिकार समझते है जिससे यहां के लोगो का काफी तकलीफों का सामना भी करना पडता है वह अपने घरों से भी निकलना नही चाहतें जब तक यह कांवड यात्रा चलती है। परम्पराओ व धार्मिकता को निभाने के लिए अन्य स्थानों से आये शिवभक्तों व कांवडियों को शान्ति पूर्वक अपनी यात्रा पूरी करनी चाहिए तभी वह सच्चे शिवभक्त बन पायेगे ।