परमात्मा के भैरव स्वरूप की अविच्छन शक्ति प्रचण्ड भैरवी भगवती दुर्गा का आवहान करके उनके प्रतीक के रूप भालों की स्थापना की गयी । उन्ही भालो के सानिध्य में दशनाम नागा संन्यासियों को शस्त्र संचालन का प्रशिक्षण कर शस्त्रों से सज्जित किया गया ।
इन संन्यासियों ने कालान्तर में शस्त्र के अतिरिक्त वस्त्र आदि का भी परित्याग कर दिया ,सनातन धर्म की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान करके यज्ञकुण्ड की प्रतिनिधि धूनियां लगाते हुए सामुहिक रूप से विचरण करने लगे अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए वस्त्रों का परित्याग कर देना इन्हें अधिक सुविधाजनक लगा ।शंकराचार्य से पूर्व जैसे परमहंस सन्यासी वस्त्र त्याग कर दिगम्बर अवस्था में रहते थे उसी प्रकार वे भी वस्त्र त्यागकर शरीर में भस्म रमाये दिगम्बर अवस्था में रहने लगे जनसाधारण में उन्हे नग्न अवस्था में देखकर परमहंस सन्यासी के स्थान पर नागा संन्यासी की संज्ञा इनके लिए प्रचलित हो गयी.......................अभी जारी अगले भाग में ....पढते रहे गंगा के करीब पर कौन है यह नागा सन्यासी ? के तृतीय भाग में ।
Sunita Sharma
freelancer journalis