Tuesday, March 30, 2010

गंगा में प्रवाहित कर दो...............




हम गंगा के अस्तित्व के प्रति चिन्तत है मीडिया में भी काफी गंगा प्रदुषण को लेकर चिन्तन है हिन्दुओ की आस्था विश्वास त्यौहार व स्नान इससे जुडे है मन में श्रद्वा है जो नियत समय पर स्नानों में लाखो श्रद्धालुओं पर अपनी ओर खिचती है ।गंगा में स्नान कर पाप भी धुल जाते है प्राणी की शुद्वता हो जाती है हमारे हर संस्कार में गंगा शामिल है गंगा जल शामिल है । क्या गंगा के अस्तित्व को बचाने के लिए सरकार ही जिम्मेदार है उन लोगो का क्या जो सर्वाधिक गंगा को दुषित करने के पात्र है जी हां मै बात कर रही हूं अपने उन कार्यो की जो हम करते है हमारे धार्मिक संस्कार करने के बाद जो कुछ हम गंगा में प्रवाहित करते है क्या करना जरूरी है तभी तो हमने इस दिव्य नदी को मरणासन्न कर दिया हमारी गंगा मां को प्रदुषित कौन कर रहा है हम खुद ही जिम्मेदार है गंगा के करीब विचार करते लोगो को देखते हुए लगा वह खुद तो इसके अस्तित्व पर प्रश्न चिहृन लगा रहे वह भी अन्जाने में ही क्योकि उनकी श्रद्वा व धार्मिकता ही सबसे बडी वजह है आज स्नान है लेकिन मुझे गंगा में स्नान कर पुण्य नही कमाना जबतक यह नदी अपने निर्मल स्वरूप में नही बहती यही मेरी भक्ति है।गंगा के करीब समस्त जनों से यह अपील अब तो चेत जाओ। अपने ब्लाग के माध्यम से यह जानना चाहती हूं क्या पूजन की सामग्री को गंगा में प्रवाहित करना आवश्यक है इसका काई अन्य विकल्प नही हो सकता क्या ऎसा करना आवश्यक है यदि हम अपने पूजन का अवशिष्ट समान का कुछ और नही कर सकते क्योकि कुछ लोगो का मानना है कि हम पुजन का यह अवशिष्ट कही अन्यत्र नही डाल सकते क्या यह उचित है हमारी धार्मिकता ही हमारी जीवनदायिनी को नुकसान नही पहुचा रही ? जहां गंगा नही है वहां के लोग अपने पूजन के बाद बचे समान का क्या करते है?
आप सभी के क्या विचार है कृपया आप मुझे मेल कर सकते है मेरी सभी से अपील है इस बारे में गंभीरता से सोचे जो संस्कार हमे सिखाये कि गंगा में प्रवाहित कर दो क्या इस बारे मे दुबारा विचार की आवश्यकता व आने वाली पीढ़ी को नयी सोच से अवगत कराने की जरूरत है ?विचार आमंत्रित है.......................

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