Monday, September 7, 2009

ऋषिकेश एक तपस्थली भाग - 2

शान्ति पर्व ( शलोक 12) में हृषिकेश नाम कृष्ण् के लिए आया है जब गुप्तकाल में अमरकोष् की रचना हुई तो अमरकोष् में विष्णु के उनतालीस नामों में ऋषिकेश नाम क्रम इस प्रकार दिया_ दामोदर  हषि केश: केशवो माधव स्वभू: यह भी प्रमाण् है कि महाभारत के समय  हषि केश विष्णु को कहते थे। अनुशासन पर्व अ0127 में उल्लेख है कि हिमालय के निकट हषीकेश है
जहां पचंकेदार ,त्रिविक्रम ,विष्णुसोत्र तथा शिवसो्त परायण् का विशेष महत्व है।नारद जी कहते है वहां अचिन्त्य आशचर्य है,"तदर्थ वानुषि संघ स्य हितार्थ सव चोदित:
यथा दृष्टं हषीकेश सर्वमाख्या तुमर्हति।।( 49) अ0 127


महाभारत में कुब्जाम्रक एंव   हषिकेश  नामों के उल्लेख होने से स्पष्ट होता है कि शुंगकाल अर्थात बाइस साल पहले के आस-पास ऋषिकेश प्रसिद्ध ती्रथ बन चुका था ।समान्यजन इसे ऋषिकेश के नाम से जानते है, केदारख्ण्ड पुराण्कार ने कुब्जाम्रक तीर्थ् नाम की अवधारणा की कथा का देते हुए यह भी लिख दिया कि भविष्य में लोग इसे ऋषिकेश नाम से अधिक जानेगे ।ऋषिकेश नाम इस    प्रचिलत होने के सन्दभ् में विशालमणि  शर्मा ने लिखा है ऋषिकेश नाम इसलिए पडा कि "   ऋषिक  नाम है इन्द्रियों का ,जहां शमन किया जाये ।"   इन्द्रिय को जीत कर रैभ्य मुनि ने ईश  इन्द्रियों के अधिपति विष्णु को प्राप्त किया , इसीलिए (हृषि क +ईश अ+ई-ए गुण्) हृषिकेश  यह नाम सटीक है।
धीरे-धीरे यह ऋषिकेश के रूप में विख्यात हो गया।--------------------आगे जारी है

Sunday, September 6, 2009

ऋषिकेश एक तपस्थ्ली भाग -1

ऋषिकेश यू तो विश्व मानचित्र में योग ,अध्यात्म एवं धार्मिक  पयर्टन के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका है पर इस प्राचीन पौराणिक  नगरी में ऋषि . मुनि,साधु- सन्यासियों ने ही नही वरन कई महापुरूषों ने भी तप किया है।

ऋषिकेश नाम:   इस स्थान के साहित्य में अनेक नाम आये हैं यथा कुब्जाम्रक क्षेत्र हषीकेश और अब
ऋषिकेश।महाभारत वनपर्व उ082 में कुब्जाम्रक तीर्थ का उल्लेख इस प्रकार है_ तत: कुब्जाम्रक गच्छेतीथे सेवी यथा क्रमम।गो सहस्रमवाप्रोत स्वर्ग च गच्छित । जिसमे सहस्र गोदान का फल और स्वर्ग लोक की प्राप्ति के सुख का विवरण मिलता है। कालिकागम 20:25 के अनुसार महानगर के किसी कोण पर जब ऎसी बस्ती का र्निब्ष्ष्ट की जाये ,सौंदयीर्करण किया  जाये जहां महानगर के लोग भीड -भाड  भरी जिन्दगी से शोरगुल से दुर होकर रहे, उस बस्ती की कुब्जक कहते है।तपस्वी,साधु ,सन्यासी ,ऋषि,वानप्रस्थी कोलाहल से बचने के लिए यहां रहते थे । इसमे इसका नाम कुब्जाम्रक पडा ।
_________ जारी

Thursday, September 3, 2009

मै रहती हूं ऋषिकेश में.....

मै रहती हू ऋषिकेश में एक खुबसुरत तीर्थ नगरी में आज यह आधुनिक सुविधाओ से युक्त् पर्यटन का केन्द्र बन गया है। देश से ही नही विदेशों से भी यात्री बहुत बडी सख्या में यहां आते है। वजह योग ,गंगा स्नान,अध्यातम ,शान्ति के लिए । सचमुच यहां शान्ति है पता नही यह तो वही जानते होंगे जो बाहर यहां आते है।लेकिन यह जरूर है अगर मै कही बाहर चली जाउ तो मन करता जल्द से वापस आ जाउ। यह देवभूमि है यहां के दर्शन मात्र सें पुण्य मिलता है।शीघ्र ही मै आपको इस जगह की तमाम खुबियों के बार में बताउगी ।मेरे लेख्नों का पहला असांइनमेंट मुझे मिला 1997 हिन्दी दैनिक पत्र दैनिक जागरण कें लिए लिख्नना था यंहा के मंदिरो के बारे जो पौराणिक है प्राचीन है।कुछ पौराणिक है ऐतिहासिक  है गंगा का किनारा,बैराज का पुल,त्रिवेणी घाट, लछमन झुला और बहुत कुछ कितना याद आता उनको जों यहा से चले जाते है वो कैसे भुला पाते होगे ।

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