2010, आने वाले साल की दस्तक सुनाई देने लगी है इसके साथ ही 2009 समाप्ति की ओर अग्रसर है खास बात यह भी है कि गंगा के करीब सुनाई पडती है वो घंटिया जो आगामी मंहाकुम्भ का आगाज कर रही है हिन्दुओ के अत्यन्त महत्वपूर्ण नगरी में जिसे मोझ नगरी व कुम्भ नगरी भी कहा जाता है।
गंगा द्वार अथवा हरिद्वार भ्रारत का विश्व प्रसिद्व तीर्थ है ,
अयोध्या,मथुरा,माया,काच्ची,अवन्तिका
पुरी,द्वारावती,चैव सप्तैता तीर्थ मोझदायिका।।
इस शलोक में माया से अर्थ मायापुर अर्थात हरिद्वार से है यह भारत के चार प्रमुख कुम्भ क्षेत्रो में से एक एंव सात मोझदायक तीर्थो में से एक है इसके जो नाम प्रचलित है उनमें कपिलाद्वार ,स्वर्गद्वार ,कुटिलदर्रा,तैमुरलंग वर्णित चौपालीदर्रा, मोयुलो इत्यादि है लगभग आठवी शती में इसका नाम हरिद्वार पडा ।यह तीर्थ हिमालय या शिवालिक के मध्य से प्रारम्भ हो जाता है।गंगा के दायी और विल्वक और बायी ओर के पर्वत का नाम नीलपर्वत है हजारों वर्ष की ऐतिहासिक अवधि के दौरान यह अनेक नामो से विख्यात रहा है जिसका जिक्र किया जा चुका है महाभारत के वनपर्व अ088 के अनुसार - विभेद तरसा गंगा,गंगाद्वारे युधिष्ठर ।
पुण्य तत्खायते,राजन्ब्रहृषि गण सेवितम।8।
इस पुण्य क्षेत्र में मानव ही नही,देव गन्धर्व एंव देवर्षि भी रहकर पुण्यफल प्राप्त करते है यहां का कनखल व मायापुर क्षेत्र अत्यंत पौराणिक एंव ऐतिहासिक है गंगा की बदलती धाराआं ने ,मुस्लिम आक्रान्ताओ ने तथा निकाली गयी विशाल नहरों ने पुरातत्व सामग्री को गहरे गर्तो में दबा दिया..............आगे की पोस्ट में पढिये किस तरह यहां के लोगो के किस्से दिल्ली सल्तनत तक पहुचते थे अभी जारी है ।
सुनीता शर्मा
यह ब्लाग समर्पित है मां गंगा को , इस देवतुल्य नदी को, जो न सिर्फ मेरी मां है बल्कि एक आस्था है, एक जीवन है, नदियां जीवित है तो हमारी संस्कृति भी जीवित है.
Monday, December 21, 2009
Friday, December 18, 2009
तो गंगा की सुध आ ही गयी......... गंगा संरक्षण का आवहान .......17दिसंबर
आखिर गंगा की सुध आ ही गयी...................
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री माननीय डा0 रमेश पोखरियाल ने गंगा सरंक्षण का संकल्प लिया है।17 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष अब स्पर्श गंगा दिवस के रूप में मनाया जायेगा ।गंगा का प्रदुषण मुक्त किये जाने के सुध जो उत्तराखण्ड मे आयी है उसके तहत यहां के मुख्यमंत्री भी यह मानते है कि गंगा के संरक्षण की जिम्मेदार यहां के बच्चे -बच्चे पर होनी चाहिए । प्रदेश सरकार गंगा की स्वच्छता के लिए गंभीर है होना भी चाहिए।
इस प्रदेश के लोग गंगा को उत्तराखण्ड का मायका कहते है सो संरक्षण की जिम्मेदारी से वह कतई पीछे नही है।गंगा के विषय में जो भी अपमानजनक टिप्पणी करे उन्हे यह समझना चाहिए भले ही हम हिन्दुस्तानी भले दिल के है लेकिन जब बात हमारे विषय में कहे हमारी नदी को बीमारी कह दे तो हर हिन्दुस्तानी को समझ लेना चाहिए जिन लोगो की भाषा व संस्कृति को अपनाने में हम अपनी शान समझते है वह हमारे बारे क्या सोचते है।
गंगा नदी को यदि काई बीमारी तक कह दे तो यदि अब भी हम सचेत नही हुए तो कब होगें ,हमारे नदियों को पहाडों व अन्य प्राकृतिक सम्पदाओ की रक्षा हमें ही करनी है।
जिस तरह उत्तराखण्ड में इस नदी के विषय में सरकार व जनता जागरूक हो गयी यदि समस्त गंगा के प्रदेशों में व अन्य नदियों के संरक्षण व स्वच्छता की सुध पूरे भारतवर्ष में हो तो क्या मरणासन्न गंगा को बचाया नही जा सकता। सख्ती से गंगा में डाले जाने वाले नालों पर तत्काल रोक लगायी जानी चाहिए।यह अभियान समस्त देश में हो तो कितना अच्छा हो ।
मेरे आलेख नदी ही नही सस्कृति भी है गंगा पर लोगो द्वारा टिप्पणी भी की गयी कि गंगा की स्थिति के लिए अब क्या उपाय हो सबसे अहम बात जागरूकता व मन में विश्वास व दृढ सभी लोगों द्वारा किया गया दृढ संकल्प हो तभी काई भी अभियान व योजना सफल होती है ईमानदारी से किया काई भी प्रयास कभी विफल नही होता मुझे अपने पिता द्वारा सिखाई गयी इस बात पर पूर्ण विश्वास है कि भगवान भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करता है............................।
इन्ही प्रयासों की चन्द तस्वीरे जो विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हई take a look.......
प्रस्तुतकर्ता-
सुनीता शर्मा
स्वतंत्र पत्रकार
ऋषिकेश , उत्तराखण्ड
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री माननीय डा0 रमेश पोखरियाल ने गंगा सरंक्षण का संकल्प लिया है।17 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष अब स्पर्श गंगा दिवस के रूप में मनाया जायेगा ।गंगा का प्रदुषण मुक्त किये जाने के सुध जो उत्तराखण्ड मे आयी है उसके तहत यहां के मुख्यमंत्री भी यह मानते है कि गंगा के संरक्षण की जिम्मेदार यहां के बच्चे -बच्चे पर होनी चाहिए । प्रदेश सरकार गंगा की स्वच्छता के लिए गंभीर है होना भी चाहिए।
इस प्रदेश के लोग गंगा को उत्तराखण्ड का मायका कहते है सो संरक्षण की जिम्मेदारी से वह कतई पीछे नही है।गंगा के विषय में जो भी अपमानजनक टिप्पणी करे उन्हे यह समझना चाहिए भले ही हम हिन्दुस्तानी भले दिल के है लेकिन जब बात हमारे विषय में कहे हमारी नदी को बीमारी कह दे तो हर हिन्दुस्तानी को समझ लेना चाहिए जिन लोगो की भाषा व संस्कृति को अपनाने में हम अपनी शान समझते है वह हमारे बारे क्या सोचते है।
गंगा नदी को यदि काई बीमारी तक कह दे तो यदि अब भी हम सचेत नही हुए तो कब होगें ,हमारे नदियों को पहाडों व अन्य प्राकृतिक सम्पदाओ की रक्षा हमें ही करनी है।
जिस तरह उत्तराखण्ड में इस नदी के विषय में सरकार व जनता जागरूक हो गयी यदि समस्त गंगा के प्रदेशों में व अन्य नदियों के संरक्षण व स्वच्छता की सुध पूरे भारतवर्ष में हो तो क्या मरणासन्न गंगा को बचाया नही जा सकता। सख्ती से गंगा में डाले जाने वाले नालों पर तत्काल रोक लगायी जानी चाहिए।यह अभियान समस्त देश में हो तो कितना अच्छा हो ।
मेरे आलेख नदी ही नही सस्कृति भी है गंगा पर लोगो द्वारा टिप्पणी भी की गयी कि गंगा की स्थिति के लिए अब क्या उपाय हो सबसे अहम बात जागरूकता व मन में विश्वास व दृढ सभी लोगों द्वारा किया गया दृढ संकल्प हो तभी काई भी अभियान व योजना सफल होती है ईमानदारी से किया काई भी प्रयास कभी विफल नही होता मुझे अपने पिता द्वारा सिखाई गयी इस बात पर पूर्ण विश्वास है कि भगवान भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करता है............................।
इन्ही प्रयासों की चन्द तस्वीरे जो विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हई take a look.......
प्रस्तुतकर्ता-
सुनीता शर्मा
स्वतंत्र पत्रकार
ऋषिकेश , उत्तराखण्ड
Tuesday, December 15, 2009
लो क सं घ र्ष !: गंगा ही नहीं हमारा जीवन ही प्रदूषित कर दिया गया है
मानव सभ्यता नदियों के किनारे जन्मी है, पली है और बढ़ी है पानी के बगैर हम रह नहीं सकते हैं । विश्व में बड़े-बड़े शहर और आबादी समुद्र के किनारे है या नदियों के किनारे पर स्तिथ है । कभी भी जल के श्रोत्रों को कोई गन्दा नहीं करता था लेकिन जब पूँजीवाद ने अपने विचारों के तहत मुनाफा को जीवन दर्शन बना दिया है, तब से हर चीज बिकाऊ हो गयी है जल श्रोत्रों को भी गन्दा करने का काम उद्योगपतियों, इजारेदार पूंजीपतियों ने मुनाफे में अत्यधिक वृद्धि के लिए गन्दा कर दिया है । हमारा जनपद बाराबंकी जमुरिया नदी के किनारे पर था और अब जमुरिया नाले के किनारे है । जनपद मुख्यालय के पास एक शुगर मिल स्थापित होती है जिसका सारा गन्दा पानी जमुरिया में गिरना शुरू होता है और फिर तीन और कारखाने लगते हैं जिनका सारा कूड़ा-कचरा जमुरिया में गिरकर नाले में तब्दील कर दिया है । नगर नियोजकों ने जो पूंजीवादी मानसिकता से ग्रसित हैं । उन लोगो ने शहर के सम्पूर्ण गंदे पानी को जमुरिया नदी में डाल कर उसको मरणासन्न कर डाला है । नहरों, बड़ी सड़कों, रेलवे लाइनों ने जमुरिया नदी में आने वाले पानी को भी रोककर उसके प्रवाह को समाप्त कर दिया है ।
ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने अँधाधुंध तरीके से जंगलो की कटाई कर जमुरिया नदी को उथली कर दिया था । वन विभाग ने कागज पर इतने पेड़ लगा दिए हैं की जनपद में कोई भी जगह पेड़ लगने से अछूती नहीं रह गयी है । जमुरिया में मछली से लेकर विभिन्न जीव जंतुओं का विनाश भी मुनाफे के चक्कर में हुआ है । जहर डाल कर पानी को विषाक्त कर मछलियां मारी गयी जिससे पानी कि सफाई का कार्य भी स्वत: बंद हो गया ।
गंगा गौमुख से निकल कर बंगाल कि खाड़ी तक जाती है जिसमें हजारों नदियाँ , उपनदियाँ मिलती हैं । जमुरिया नदी के साथ जो कार्य हुआ वही गंगा के साथ हुआ है । जमुरिया नदी भी से गंगा बनती है । जब हमारी मां या बाप या प्राणरक्षक गंगा हो या जमुरिया उसको पहले साम्राज्यवाद ने बर्बाद किया और अब हमारे उद्योगपति, पूंजीपति और नगर नियोजक हमारी नदियों को समाप्त करने पर तुले हैं। यह लोग यह चाहते हैं की पानी के ऊपर उनका सम्पूर्ण अधिपत्य हो जाए और कम से कम 20 रुपये लीटर पानी हम बेचें । आज जरूरत इस बात की है कि इन पूंजीवादी, साम्राज्यवादी शक्तियों व उनके द्वारा उत्पन्न नगर नियोजकों के खिलाफ जन आन्दोलन नहीं चलाया जाता है तो हमारी गंगा बचेगी न हमारी जमुरिया ।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने अँधाधुंध तरीके से जंगलो की कटाई कर जमुरिया नदी को उथली कर दिया था । वन विभाग ने कागज पर इतने पेड़ लगा दिए हैं की जनपद में कोई भी जगह पेड़ लगने से अछूती नहीं रह गयी है । जमुरिया में मछली से लेकर विभिन्न जीव जंतुओं का विनाश भी मुनाफे के चक्कर में हुआ है । जहर डाल कर पानी को विषाक्त कर मछलियां मारी गयी जिससे पानी कि सफाई का कार्य भी स्वत: बंद हो गया ।
गंगा गौमुख से निकल कर बंगाल कि खाड़ी तक जाती है जिसमें हजारों नदियाँ , उपनदियाँ मिलती हैं । जमुरिया नदी के साथ जो कार्य हुआ वही गंगा के साथ हुआ है । जमुरिया नदी भी से गंगा बनती है । जब हमारी मां या बाप या प्राणरक्षक गंगा हो या जमुरिया उसको पहले साम्राज्यवाद ने बर्बाद किया और अब हमारे उद्योगपति, पूंजीपति और नगर नियोजक हमारी नदियों को समाप्त करने पर तुले हैं। यह लोग यह चाहते हैं की पानी के ऊपर उनका सम्पूर्ण अधिपत्य हो जाए और कम से कम 20 रुपये लीटर पानी हम बेचें । आज जरूरत इस बात की है कि इन पूंजीवादी, साम्राज्यवादी शक्तियों व उनके द्वारा उत्पन्न नगर नियोजकों के खिलाफ जन आन्दोलन नहीं चलाया जाता है तो हमारी गंगा बचेगी न हमारी जमुरिया ।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
Sunday, December 13, 2009
गंगा के करीब विकसित होगे........Beaches........
नूतन वृत्तियों का अपनाने में काई बुराई नही होती इस स्थान पर विदेशी आते है रहते है यहां के युवक-युवतियों से विवाह रचाते है विदेशी यहां की संस्कृति में रचे बसे है यदि लक्ष्मण झूला व स्वर्गाश्रम का इलाका देखा जाये जहां अध्यात्म की गंगा बहती है तो विदेशियों का प्रभाव स्थानीय जनता पर भी पडता है । वर्ष 1997 में मैने दैनिक जागरण के लिए एक आलेख लिखा था मुसीबत में है विदेशी सैलानी जिसमें मैने यहां आने वाले विदेशी सैलानीयों की परेशानियों का जिक्र किया था।यहां गंगा के करीब एक स्थान है जहां विदेशी आराम फरमाते है उसे गोवा बीच का नाम दिया जाता है खबरे है इसे और अधिक विकसित किया जा रहां है।पहले इसे पसन्द नही किया जाता था व एक अपसंस्कृति का जन्म मिलने की संभावना को कहा जाता था पर अब उत्तराखण्ड सरकार पर्यटन को बढावा देने के चक्कर में कुछ समझना नही चाहती क्या करे लाइफ अब बदल चुकी है लोगो को संस्कृति अपसंस्कृति से काई र्फक नही पडता फिर यहां की जनता इन प्रभावों से अछूती कैसे रहे उन्हें सबसे आगे निकलना है न ...............................
(photo from tripadvisors)
Saturday, December 5, 2009
Tuesday, November 17, 2009
यहां वीरभद्र प्रकट हुआ था ----- वीरभद्रेश्वर मंदिर (ऋषिकेश)
पिछली पोस्ट में मैने ऋषिकेश के वीरभ्रद्र क्षेत्र का इतिहास बताया था पर इस पोस्ट में यह बता दू कि क्यो इस क्षेत्र को वीरभद्र के नाम से जाना जाता है।एन सी घोष ने सन् 1973-75 के मध्य यहां ऐतिहासिक खुदाई की थी ,उससे पता चलता है कि इस स्थान पर 100 ई0 से लेकर 800 ई0 के बीच मानव सभ्यता व संस्कृति विघमान थी । खुदाई से प्राप्त वस्तुओ से पता चला कि वीर भद्र नामक नगर एक ऐतिहासिक एंव पौराणिक था । जिस पर भद्र मित्रस्य द्रोणी घाटे खुदा हूआ था । जिसका तात्पर्य द्रोणी दून की ओर से इस घाट का रक्षक भद्रमित्र था । यहां का वीरभद्रेश्वर मंदिर उत्तर कुषाण कालीन इण्टिकाओ से
बना हुआ है जिसके भद्रपीठ पर शिवलिंग है । अठ्ठारह पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार स्वंय वीरभद्र ने शिवलिग की स्थापना की थी ।
वीरभद्र शिव का भैरव स्वरूप था जिसकी उत्पत्ति दक्ष यज्ञ के विध्वंस के फलस्वरूप हई ।जिसे स्वंय शिव ने अपनी जटा पटक कर किया था ।इसके पीछे जो कथा मिलती है उसके अनुसार जब प्रजापति दक्षने महायज्ञ किया तो शिव को नही बुलाया क्योकि शिव ने एक बार बहृमा से प्रश्न पूछा तो बहृमा ने उसे अपने चारों मुखों से दिया पहले उनके चार मुख थे शिव ने उनका अंहकार चूर करने के लिए बहृमा का एक मुख काट लिया तभी से बहृमा तीन मुखी हो गये शिव को ऎसा करने पर बहृम हत्या का दोष लगा इसी दोष के कारण दक्ष पे उन्हें यज्ञ मे नही आमन्त्रि त किया । दक्षपुत्री शिव की आज्ञा से कनखल हरिद्वार जा कर यज्ञ मे सम्मिलित हुई सती ने महायज्ञ मे अपने पति का अपमान होते देख स्वंय को यज्ञाग्नि में भस्म कर लिया । इसकी सूचना जब सती के साथ यज्ञ में आये गणों ने शिव को दी तो वह क्रोधित हो उठे तत्पशचात शिव ने वीरभद्र प्रकट किया व उसे यज्ञ विध्वंस के लिए भेजा । कनखल में यज्ञ विध्वंस कर वीरभद्र वापस आकर यज्ञ विध्वंस का हाल शिव को सुनाया । शिव ने प्रसन्न हो वीरभद्र को अंगीकार किया शिव के वीरभ्रद्र को अंगीकार करने के फलस्वरूप यहां का शिवलिंग दो भागों में 60 :40 के अनुपात में विभक्त है इसलिए इसका नाम वीरभद्र पडा । शिव की आज्ञा से वीरभद्र ने अपने तेज का अंश अलग किया । जिससे आदि शंकराचार्य की उत्पत्ति मानी जाती है ।
मंदिर के समीप ही रम्भा नदी बहती है इसकी उत्पत्ति के पीछे जो कारण बताये जाते है उसके अनुसार सती के यज्ञ में भस्म हो जाने के कारण विक्षुब्ध शिव के क्रोध को शान्त करने के लिए इन्द्र ने इन्द्रलोक की अप्सरा रम्भा को भेजा । जिसे शिव ने भस्म कर दिया जो कालांतर में श्यामल रंग में रम्भा नदी के नाम से बह रही है। रम्भा व गंगा नदी के संगम पर प्राचीन दुर्ग था वीरभद्रेश्वर मंदिर वस्तुत: प्राचीन अवशेषों के उपर निर्मित है ।लेकिन आज इसका स्वरूप एक दम बदल चुका है नवीन निर्माण कार्यो ने प्राचीनता लुप्त कर दी है यहां शान्ति व आलौकिकता अभी भी वातावरण मे है।
वर्तमान में मंदिर अपने आधुनिक रूप में है कुछ लोगो का कहना है कि औरंगज़ेब ने इस मंदिर का विध्वंस किया था जबकि कुछ का मत है कि केवल कुछ हिस्सा ही खडिंत किया था इस बारे कोई ऐतिहासिक प्रमाण में नही है ।महाशिवरात्रि के दिन यहां इस मंदिर में विशाल मेले का आयोजन होता है शिवलिंग पर जल चढाने दूर दर से श्रद्धालु आते है कहते है रम्भा नदी में स्नान कर मंदिर में शिवलिंग पर जल चढाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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बना हुआ है जिसके भद्रपीठ पर शिवलिंग है । अठ्ठारह पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार स्वंय वीरभद्र ने शिवलिग की स्थापना की थी ।
वीरभद्र शिव का भैरव स्वरूप था जिसकी उत्पत्ति दक्ष यज्ञ के विध्वंस के फलस्वरूप हई ।जिसे स्वंय शिव ने अपनी जटा पटक कर किया था ।इसके पीछे जो कथा मिलती है उसके अनुसार जब प्रजापति दक्षने महायज्ञ किया तो शिव को नही बुलाया क्योकि शिव ने एक बार बहृमा से प्रश्न पूछा तो बहृमा ने उसे अपने चारों मुखों से दिया पहले उनके चार मुख थे शिव ने उनका अंहकार चूर करने के लिए बहृमा का एक मुख काट लिया तभी से बहृमा तीन मुखी हो गये शिव को ऎसा करने पर बहृम हत्या का दोष लगा इसी दोष के कारण दक्ष पे उन्हें यज्ञ मे नही आमन्त्रि त किया । दक्षपुत्री शिव की आज्ञा से कनखल हरिद्वार जा कर यज्ञ मे सम्मिलित हुई सती ने महायज्ञ मे अपने पति का अपमान होते देख स्वंय को यज्ञाग्नि में भस्म कर लिया । इसकी सूचना जब सती के साथ यज्ञ में आये गणों ने शिव को दी तो वह क्रोधित हो उठे तत्पशचात शिव ने वीरभद्र प्रकट किया व उसे यज्ञ विध्वंस के लिए भेजा । कनखल में यज्ञ विध्वंस कर वीरभद्र वापस आकर यज्ञ विध्वंस का हाल शिव को सुनाया । शिव ने प्रसन्न हो वीरभद्र को अंगीकार किया शिव के वीरभ्रद्र को अंगीकार करने के फलस्वरूप यहां का शिवलिंग दो भागों में 60 :40 के अनुपात में विभक्त है इसलिए इसका नाम वीरभद्र पडा । शिव की आज्ञा से वीरभद्र ने अपने तेज का अंश अलग किया । जिससे आदि शंकराचार्य की उत्पत्ति मानी जाती है ।
मंदिर के समीप ही रम्भा नदी बहती है इसकी उत्पत्ति के पीछे जो कारण बताये जाते है उसके अनुसार सती के यज्ञ में भस्म हो जाने के कारण विक्षुब्ध शिव के क्रोध को शान्त करने के लिए इन्द्र ने इन्द्रलोक की अप्सरा रम्भा को भेजा । जिसे शिव ने भस्म कर दिया जो कालांतर में श्यामल रंग में रम्भा नदी के नाम से बह रही है। रम्भा व गंगा नदी के संगम पर प्राचीन दुर्ग था वीरभद्रेश्वर मंदिर वस्तुत: प्राचीन अवशेषों के उपर निर्मित है ।लेकिन आज इसका स्वरूप एक दम बदल चुका है नवीन निर्माण कार्यो ने प्राचीनता लुप्त कर दी है यहां शान्ति व आलौकिकता अभी भी वातावरण मे है।
वर्तमान में मंदिर अपने आधुनिक रूप में है कुछ लोगो का कहना है कि औरंगज़ेब ने इस मंदिर का विध्वंस किया था जबकि कुछ का मत है कि केवल कुछ हिस्सा ही खडिंत किया था इस बारे कोई ऐतिहासिक प्रमाण में नही है ।महाशिवरात्रि के दिन यहां इस मंदिर में विशाल मेले का आयोजन होता है शिवलिंग पर जल चढाने दूर दर से श्रद्धालु आते है कहते है रम्भा नदी में स्नान कर मंदिर में शिवलिंग पर जल चढाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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