Wednesday, December 30, 2009

हरिद्वार........ कुम्भ नगरी भाग 3


हरिद्वार की ख्याति दिल्ली सल्तनत तक फैल चुकी थी यह सब आप पिछले भागों में पढ चुके है अधिक प्रसिद्धि ही क्षति का कारण बनने लगी 12वी सदी के बाद से ही यहां हमले होने लगे थे सर्वाधिक क्षति 1398 में तैमूर लंग के हमले के कारण हई इसी समय कनखल मायापुर की विनाशकारी ध्वंस एंव लूट लीला हई थी ।


सैयद-लोदी शासनकाल में यह तीर्थ सल्तनत की किरकिरी बना रहा पर शिवालिक श्रेणियों ने घने वनों ने इस तीर्थ पर आने विपदा से रक्षा की । रामानन्द के आगमन के बाद रामावत सम्प्रदाय और वैष्णव लहर जो चली उसमें वल्ल्भाचार्य की बैठक ने हरिद्वार को हरिमय बना दिया। उत्तराखण्ड यात्रा में यात्रियों,वैरागियों की अभूतपूर्व वृद्वि होने लगी । अकबर की सहष्णुता ने मानसिंह  को हरिद्वार में पैडीघाट तथा छतरी बनाने की प्रेरणा दी ।    


लंडौरा राज्य कायम होने पर कनखल में सुन्दर मंदिर बने मराठों ने रूहेलखण्ड ,दुनमाल को लूटा परन्तु 176ई0 में अहमदशाह अब्दाली से पानीपत का तीसरा युद्व हारने पर मराठों की छत्रछाया हटने पर पुन: रूहेलों के धावे होने लगे । 1785 में गुलाम कादिर ने हरिद्वार को लूटा । 1796 ई0 में पंजाब के सिक्ख सरदारों ने गुसाइयों से अनबन होने पर घुडसवारों के बल पर अन्तिम स्नान के दिन सो सन्यासी,वैरागी,गुंसाई नागा मार डाले ।1804ई0  में गोरखों का गढवाल पर अधिपत्य होने से हरिद्वार ,स्त्री, पुरूष दासों की बिक्री का एक बडा केन्द्र बन गया  ।

1855 में मायापुर से गंगा नहर निकाली गयी इससे मायापुर का पुन: विकास होने लगा ज्वालापुर समृद्व मण्डी बन गया । 1886 में लक्सर से व 1900ई0 में  देहरादून रेलमार्ग जुडने से यह तीर्थ नगर अधिक विकसित होने लगा । आज यह पूरे विश्व में प्रसिद्व है, 2010 कें महाकुम्भ की अगुवायी को तैयार है। 




सुनीता शर्मा





Sunday, December 27, 2009

हरिद्वार........ कुम्भ नगरी भाग 2


पिछली पोस्ट में आपने कुम्भ-नगरी हरिद्वार की प्राचीनता के बारे में पढा शेष अब आगे........ गंगाद्वार के बाद कनखल,मायापुर आदि जो नाम प्रसिद्व हुए उनके पीछे हमें सभी पुराणो में शिव से सम्बन्धित कथानक ही मिलते है.......गंगाद्वार के बाद इसका नाम हरद्वार पडा जहांगीर के काल मे टामकोरियट ने हरिद्वार की यात्रा की थी और चेपलिन टोरी को लिखा थ कि "शिव की राजधानी हरद्वार में गंगा की तीव्र धारा है"।
ऐतिहासिक काल के क्रम में 1951 ई0 में गंगा नहर खोदतें समय ताम्रसंस्कृति तथा 1953 में यज्ञदत्त शर्मा के उत्खनन द्वारा यहां पाषाण कालीन बस्ती के चिन्ह मिलने से स्पष्ट होता है कि यहां उत्तरपाषाण काल की पुष्टि होती है ...इसके बाद महाभारत में वर्णित युग में प्रवेश कर जाते है.......। 
वनपर्व से पितृतर्पण हेतु आश्रमवासिक पर्व से यहां सन्यास लेकर आने वाले तपस्वियों  के उल्लेख मिलने लगते है । गंगासागर से गंगाद्वार तक 400 अशवमेध यज्ञ भरत द्वारा करने से इस निर्णय पर पहुचते है कि प्रारम्भ में यह क्षेत्र कोसलराज्य के अन्तर्गत था लक्ष्मण पुत्र द्वारा इसे अंगदीया नाम की राजधानी बनाया गया इसके बाद मगध के आधीन फिर कालसी का  शिलालेख अशोक महान की राज्य सीमा विस्तार का एक सशक्त प्रमाण है ............. कूर्माचल एंव गढवाल की जागर लोकवार्ताओ में मायापुर हाट के पुण्डीर राजा की पुत्री कत्यूरी रानी बनकर जिया नाम से प्रसिद्व होती है व सैययद आक्रमणों से मुकाबला करती है । दसवी  शती ई0 तक के युग मे यहां नाथ/सिद्वों का प्रधान्य रहा रमोल गाथा में भीमगोडा के लिए गदाधर बाजार नाम मिलता है जो अधिक सार्थक है..........इस युग में भारत के अनेक क्षेत्रों से यहां दिव्यमूर्तियों की स्थापना  भी हई  गुरूकुल कांगडी के  संग्रहालय में पायी जाने वाली मूर्तियों सन्दर्भ में हम यह भी कह सकते है कि इनका मूल स्रोत दक्षिण भारत ही था ।


चौदहवी शती ई0 में ईब्नवतूता के विवरण से पता चलता है कि यहां के योगी सिद्वों की चमत्कार पूर्ण कहानियां दिल्ली सल्तनत के दरबारों तक जा पहुची थी उसने लिखा है कि नंजौर या बिजनोर के आसपास ऎसे लोग रहते है कई  दिनो तक निर्जल,निराहार रह  जाते है वह यदि किसी पर क्रोध कर दे तो तत्काल उनकी मृत्यु हो जाती है जब ऎसे ही कुछ योगी सिद्व तुगलक के दरबार में पहुचाये गये तो वह उनके कारनामे देखकर हैरान रह गया..............। 
आज भी हरिद्वार इनसे वंचित नही इस कुम्भ नगरी की दिव्यता व यहां की ख्याति ने ही इसे विधर्मियों का निशाना बनाया.................जारी है अगले भाग में 
नजर डालते रहिए........ कुम्भ नगरी हरिद्वार ।
(Photo's from google and Anoop khatri)
सुनीता शर्मा

Monday, December 21, 2009

हरिद्वार....... कुम्भ नगरी भाग 1

2010, आने वाले साल की दस्तक सुनाई देने लगी है इसके साथ ही 2009 समाप्ति की ओर अग्रसर  है खास बात यह भी है कि गंगा के करीब सुनाई पडती है वो घंटिया जो आगामी मंहाकुम्भ का आगाज कर रही  है हिन्दुओ के अत्यन्त महत्वपूर्ण नगरी में जिसे मोझ नगरी व कुम्भ नगरी भी कहा जाता है।

गंगा द्वार अथवा हरिद्वार भ्रारत का विश्व प्रसिद्व तीर्थ है ,
 अयोध्या,मथुरा,माया,काच्ची,अवन्तिका 
 पुरी,द्वारावती,चैव सप्तैता तीर्थ मोझदायिका
इस शलोक में माया से अर्थ मायापुर अर्थात हरिद्वार से है यह भारत के चार प्रमुख कुम्भ क्षेत्रो में से एक एंव सात मोझदायक तीर्थो में से एक है इसके जो नाम प्रचलित है उनमें कपिलाद्वार ,स्वर्गद्वार ,कुटिलदर्रा,तैमुरलंग वर्णित चौपालीदर्रा, मोयुलो इत्यादि है लगभग आठवी शती में इसका नाम हरिद्वार पडा ।यह तीर्थ हिमालय या शिवालिक के मध्य से प्रारम्भ हो जाता है।गंगा के दायी और विल्वक और बायी ओर के पर्वत का नाम नीलपर्वत है हजारों वर्ष की ऐतिहासिक अवधि के दौरान यह अनेक नामो से विख्यात रहा है  जिसका जिक्र किया जा चुका है महाभारत के वनपर्व अ088 के अनुसार - विभेद तरसा गंगा,गंगाद्वारे युधिष्ठर ।
पुण्य तत्खायते,राजन्ब्रहृषि गण सेवितम।8। 
इस पुण्य क्षेत्र में मानव ही नही,देव गन्धर्व एंव देवर्षि भी रहकर पुण्यफल प्राप्त करते है यहां का कनखल व मायापुर क्षेत्र अत्यंत पौराणिक एंव ऐतिहासिक है गंगा की बदलती धाराआं ने ,मुस्लिम आक्रान्ताओ ने तथा निकाली गयी विशाल नहरों ने पुरातत्व सामग्री को गहरे गर्तो में दबा दिया..............आगे की पोस्ट में पढिये किस तरह यहां के लोगो के किस्से दिल्ली सल्तनत तक पहुचते थे अभी जारी है । 


सुनीता शर्मा

Friday, December 18, 2009

तो गंगा की सुध आ ही गयी......... गंगा संरक्षण का आवहान .......17दिसंबर

आखिर गंगा की सुध आ ही गयी...................


उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री माननीय डा0 रमेश पोखरियाल ने गंगा सरंक्षण का संकल्प लिया है।17 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष अब स्पर्श गंगा दिवस के रूप में मनाया जायेगा ।गंगा का प्रदुषण मुक्त किये जाने के सुध जो उत्तराखण्ड मे आयी है उसके तहत यहां के मुख्यमंत्री भी यह मानते है कि गंगा के संरक्षण की जिम्मेदार यहां के बच्चे -बच्चे पर होनी चाहिए । प्रदेश सरकार गंगा की स्वच्छता के लिए गंभीर है होना भी चाहिए।
इस प्रदेश के लोग गंगा को उत्तराखण्ड का मायका कहते है सो संरक्षण की जिम्मेदारी से वह कतई पीछे नही है।गंगा के विषय में जो भी अपमानजनक टिप्पणी करे उन्हे यह समझना चाहिए भले ही हम हिन्दुस्तानी भले दिल के है लेकिन जब बात हमारे विषय में कहे हमारी नदी को बीमारी कह दे तो हर हिन्दुस्तानी को समझ लेना चाहिए जिन लोगो की भाषा व संस्कृति को अपनाने में हम अपनी शान समझते है वह हमारे बारे क्या सोचते है।
गंगा नदी को यदि काई बीमारी तक कह दे तो यदि अब भी हम सचेत नही हुए तो कब होगें ,हमारे नदियों को पहाडों व अन्य प्राकृतिक सम्पदाओ की रक्षा हमें ही करनी है।


जिस तरह उत्तराखण्ड में इस नदी के विषय में सरकार व जनता जागरूक हो गयी यदि समस्त गंगा के प्रदेशों में व अन्य नदियों के संरक्षण व स्वच्छता की सुध पूरे भारतवर्ष में हो तो क्या मरणासन्न गंगा को बचाया नही जा सकता। सख्ती से गंगा में डाले जाने वाले नालों पर तत्काल रोक लगायी जानी चाहिए।यह अभियान समस्त देश में हो तो कितना अच्छा हो ।
मेरे आलेख नदी ही नही सस्कृति भी है गंगा पर लोगो द्वारा टिप्पणी भी की गयी कि गंगा की स्थिति के लिए अब क्या उपाय हो सबसे अहम बात जागरूकता व मन में विश्वास व दृढ सभी लोगों द्वारा किया गया दृढ संकल्प हो तभी काई भी अभियान व योजना सफल होती है ईमानदारी से किया काई भी प्रयास कभी विफल नही होता मुझे अपने पिता द्वारा सिखाई गयी इस बात पर पूर्ण विश्वास है कि भगवान भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करता है............................।


इन्ही प्रयासों की चन्द तस्वीरे जो  विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हई take a look.......

























प्रस्तुतकर्ता- 


सुनीता शर्मा
स्वतंत्र पत्रकार
ऋषिकेश , उत्तराखण्ड

Tuesday, December 15, 2009

लो क सं घ र्ष !: गंगा ही नहीं हमारा जीवन ही प्रदूषित कर दिया गया है

मानव सभ्यता नदियों के किनारे जन्मी है, पली है और बढ़ी है पानी के बगैर हम रह नहीं सकते हैंविश्व में बड़े-बड़े शहर और आबादी समुद्र के किनारे है या नदियों के किनारे पर स्तिथ है । कभी भी जल के श्रोत्रों को कोई गन्दा नहीं करता था लेकिन जब पूँजीवाद ने अपने विचारों के तहत मुनाफा को जीवन दर्शन बना दिया है, तब से हर चीज बिकाऊ हो गयी है जल श्रोत्रों को भी गन्दा करने का काम उद्योगपतियों, इजारेदार पूंजीपतियों ने मुनाफे में अत्यधिक वृद्धि के लिए गन्दा कर दिया हैहमारा जनपद बाराबंकी जमुरिया नदी के किनारे पर था और अब जमुरिया नाले के किनारे हैजनपद मुख्यालय के पास एक शुगर मिल स्थापित होती है जिसका सारा गन्दा पानी जमुरिया में गिरना शुरू होता है और फिर तीन और कारखाने लगते हैं जिनका सारा कूड़ा-कचरा जमुरिया में गिरकर नाले में तब्दील कर दिया हैनगर नियोजकों ने जो पूंजीवादी मानसिकता से ग्रसित हैंउन लोगो ने शहर के सम्पूर्ण गंदे पानी को जमुरिया नदी में डाल कर उसको मरणासन्न कर डाला हैनहरों, बड़ी सड़कों, रेलवे लाइनों ने जमुरिया नदी में आने वाले पानी को भी रोककर उसके प्रवाह को समाप्त कर दिया है
ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने अँधाधुंध तरीके से जंगलो की कटाई कर जमुरिया नदी को उथली कर दिया थावन विभाग ने कागज पर इतने पेड़ लगा दिए हैं की जनपद में कोई भी जगह पेड़ लगने से अछूती नहीं रह गयी हैजमुरिया में मछली से लेकर विभिन्न जीव जंतुओं का विनाश भी मुनाफे के चक्कर में हुआ हैजहर डाल कर पानी को विषाक्त कर मछलियां मारी गयी जिससे पानी कि सफाई का कार्य भी स्वत: बंद हो गया
गंगा गौमुख से निकल कर बंगाल कि खाड़ी तक जाती है जिसमें हजारों नदियाँ , उपनदियाँ मिलती हैंजमुरिया नदी के साथ जो कार्य हुआ वही गंगा के साथ हुआ हैजमुरिया नदी भी से गंगा बनती हैजब हमारी मां या बाप या प्राणरक्षक गंगा हो या जमुरिया उसको पहले साम्राज्यवाद ने बर्बाद किया और अब हमारे उद्योगपति, पूंजीपति और नगर नियोजक हमारी नदियों को समाप्त करने पर तुले हैंयह लोग यह चाहते हैं की पानी के ऊपर उनका सम्पूर्ण अधिपत्य हो जाए और कम से कम 20 रुपये लीटर पानी हम बेचेंआज जरूरत इस बात की है कि इन पूंजीवादी, साम्राज्यवादी शक्तियों उनके द्वारा उत्पन्न नगर नियोजकों के खिलाफ जन आन्दोलन नहीं चलाया जाता है तो हमारी गंगा बचेगी हमारी जमुरिया

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

Sunday, December 13, 2009

गंगा के करीब विकसित होगे........Beaches........


गंगा के करीब ब्लाग में मैने ऋषिकेश के इतिहास के बारे में यहां की पौराणकिता के बारे आप सभी को जानकारियां दी उम्मीद है इन जानकारी से ऋषियों की इस पवित्र भूमि के बारे सभी बहुत कुछ जान गये होगे पर वर्तमान में क्या यह तीर्थ अपनी प्रासंगिकता को बनाये रखने में सफल है इस बारे यह कहना काफी है आधुनिकता पंख पसार चुकी है उत्तराखण्ड के अन्य शहरों की भांति यहां का युवा वर्ग भी अपनी प्रतिभा के साथ पलायन कर जाते है।पर मुझे जब भी यह शहर छोडने का प्रस्ताव मिलता है मै सहर्ष ही उसे खारिज कर देती हुं भले ही उसकी कीमत कुछ भी चुकानी पडे । क्योकि मुझे पलायन वादी प्रवृत्ति पसन्द नही किसी भी समस्या से भागने से नही उसके डट कर मुकाबला करने में होता है मुझे याद आता है जब मैने नेट की दूनिया में कदम रखा अपना आलेख विस्फोट के लिए भेजा जाये तो मुझे सलाह दी गयी कि मेरा आलेख पढे जो सज्जन शायद ऋषिकेश आते भी होगे उन्होने लिखा अपने आलेख में कि यहां आधुनिकता का भौडा प्रर्दशन होता है ।

नूतन वृत्तियों का अपनाने में काई बुराई नही होती इस स्थान पर विदेशी आते है रहते है यहां के युवक-युवतियों से विवाह रचाते है विदेशी यहां की संस्कृति में रचे बसे है यदि लक्ष्मण झूला व स्वर्गाश्रम का इलाका देखा जाये जहां अध्यात्म की गंगा बहती है तो विदेशियों का प्रभाव स्थानीय जनता पर भी पडता है । वर्ष 1997 में मैने दैनिक  जागरण के लिए एक आलेख लिखा था मुसीबत में है विदेशी सैलानी  जिसमें मैने यहां आने वाले विदेशी सैलानीयों की परेशानियों का जिक्र किया था।यहां गंगा के करीब एक स्थान है जहां विदेशी आराम फरमाते है उसे गोवा बीच का नाम दिया जाता है खबरे है इसे और अधिक विकसित किया जा रहां है।पहले इसे पसन्द नही किया जाता था व एक अपसंस्कृति का जन्म मिलने की संभावना को कहा जाता था पर अब उत्तराखण्ड सरकार पर्यटन को बढावा देने के चक्कर में कुछ समझना नही चाहती क्या करे लाइफ अब बदल चुकी है लोगो को संस्कृति अपसंस्कृति से काई र्फक नही पडता फिर यहां की जनता इन प्रभावों से अछूती कैसे रहे उन्हें सबसे आगे निकलना है न ...............................
(photo from tripadvisors)

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