Tuesday, January 12, 2010

हरिद्वार -कुम्भ नगरी....... कुम्भ स्नान का महत्व व स्नान की तिथियां


Posted by Picasaकुम्भ पर्व भारत का ही नही वरन् पूरे विश्व का सबसे बडा धार्मिक आयोजन है।कुम्भ पर्व बृहस्पति,सूर्य और चन्द्रमा के योग के आधार पर बनता है ।जब सूर्य मेश मे , तो हरिद्वार में कुम्भ लगता हैं। बृहस्पति प्रत्येक राशि में एक एक वर्ष रहता है व 12 वर्षो में वह सम्पूर्ण राशियों की यात्रा पूरी करता है किसी एक राशि में वह बारह वर्षो के बाद लोटकर आता है ।यही कारण है कि कुम्भ वर्व का योग जो मुख्यत: बृहस्पति की स्थिति पर निर्भर है प्रति बारहवें वर्ष मे ही बनता है ।

कुम्भ में सर्वाधिक  महत्व बृहस्पति का होता है जो सौरमण्डल का सबसे बडा ग्रह है इस पर्व से जुडी पौराणिक  कथा में बृहस्पति को देवों का गुरू बताया जाना इस दृष्टि से अर्थपुर्ण है । देवो दानवों बीच अमृत कलश के लिये संघर्ष बारह वर्षो तक चलता है इस अमृत कलश की रक्षा मे सूर्य,चन्द्र और बृहस्पति जयन्त की सहायता करते है । सूर्यअमृत कुम्भ को फूटने से बचाते है तो चन्द्रमा उसे गिरने से बचाते है । बृहस्पति के लिए माना जाता है कि असुरों को हाथ नही लगाने दिया इसलिए प्रतीकात्मक रूप से इसे पुराण कथा में सूर्य,चन्द्रमा और बृहसपति के विशेष महत्व को भी दर्शाया गया है । 
देवों- दानवों के बीच छीना छपटी में अमृत कलश से छलकी बूंदे बारह स्थानो पर गिरी ,उनमें से चार स्थान हरिद्वार,प्रयाग नासिक  और उज्जैन है शेष आठ देवलोक में माने जाते है । इनकी उपस्थित संभवतया खगोल चक्र के अदृश्य भागों में उपस्थित है । ग्रह योगो का मानव -जीवन जन्तुओ एवं वनस्पतियों पर गहरा प्रभाव पडता है।



कुम्भ पर्व के समय गंगा ,गोदावरी,शकप्रा आदि नदियों के जल के मंगलकारी होने की मान्यता के वैज्ञानिक आधार माने जाते है इसलिए कुम्भ मेले मे इन नदियों में स्नान करने वाले भले ही वैज्ञानिक तथ्यों से अन्जान हो पर श्रद्वा ऋषि-मुनियों द्वारा दिया ज्ञान, इन नदियों में कुम्भ के स्नान को अत्यतं महत्वपूर्ण बनाता है।     
स्नान का महत्व- लोके कुम्भ इति ख्यात: जाननीयात् सर्वकामद: अर्थात कुंभ पर्व मनुष्य की समस्त लौकिक कामनाओ को पूरा करने वाला होता है । इस अवसर पर किये गये गंगास्नान जन्यफल को हजारों अशवमेंध एंव सैकडों वाजपेय यज्ञों तथा समस्त पृथ्वी की एक लाख बार की गयी परिक्रमा से प्राप्त फल से भी बढकर बताया गया है । 
अशमेघ सहृस्रमाणि ,वाजपेयशतानि च,
लक्षं प्रदक्षिणा भूमें:,कुम्भ स्नानेन ततफलम्।    


हरिद्वार कुम्भ स्नान की तिथियां -
14-जनवरी 2010 (बृहस्पतिवार)********************  मंकरसंक्राति-    पहला स्नान
15-जनवरी 2010 (शुक्रवार) ************************मौनी अमवस्या-  दूसरा सनान
20-जनवरी 2010 (बुधवार)*************************बंसत पंचमी  -    तीसरा सनान
30 जनवरी 2010 (शनिवार)************************माघ पूर्णिमा   -    चौथा स्नान
12 फरवरी 2010  (शुक्रवार)************************महाशिवरात्रि    -   प्रथम शाही स्नान
15 मार्च     2010  (सोमवार)*********************सोमवती अमवस्या- द्वितीय शाही स्नान
16मार्च      2010  (मंगलवार)***********************नवसंवतारंग     -    पांचवा स्नान
24 मार्च   2010    (बुधवार)*************************रामनवमी       -      छठवा स्नान
30 मार्च  2010 (मंगलवार)*******************चैत्र पूर्णिमा/वैष्णव अखाडा स्नान -  सांतवा स्नान 
14 अप्रैल 2010 (बुधवार)**************************मेष संक्राति बैशाखी -   प्रमुख स्नान  
28 अप्रैल 2010 (बुधवार)**************************वैशाख अधिमास पूर्णिमा स्नान


                                       *********************
sunita sharma
(कुछ चित्र गुगल से साभार)

Wednesday, January 6, 2010

Wednesday, December 30, 2009

हरिद्वार........ कुम्भ नगरी भाग 3


हरिद्वार की ख्याति दिल्ली सल्तनत तक फैल चुकी थी यह सब आप पिछले भागों में पढ चुके है अधिक प्रसिद्धि ही क्षति का कारण बनने लगी 12वी सदी के बाद से ही यहां हमले होने लगे थे सर्वाधिक क्षति 1398 में तैमूर लंग के हमले के कारण हई इसी समय कनखल मायापुर की विनाशकारी ध्वंस एंव लूट लीला हई थी ।


सैयद-लोदी शासनकाल में यह तीर्थ सल्तनत की किरकिरी बना रहा पर शिवालिक श्रेणियों ने घने वनों ने इस तीर्थ पर आने विपदा से रक्षा की । रामानन्द के आगमन के बाद रामावत सम्प्रदाय और वैष्णव लहर जो चली उसमें वल्ल्भाचार्य की बैठक ने हरिद्वार को हरिमय बना दिया। उत्तराखण्ड यात्रा में यात्रियों,वैरागियों की अभूतपूर्व वृद्वि होने लगी । अकबर की सहष्णुता ने मानसिंह  को हरिद्वार में पैडीघाट तथा छतरी बनाने की प्रेरणा दी ।    


लंडौरा राज्य कायम होने पर कनखल में सुन्दर मंदिर बने मराठों ने रूहेलखण्ड ,दुनमाल को लूटा परन्तु 176ई0 में अहमदशाह अब्दाली से पानीपत का तीसरा युद्व हारने पर मराठों की छत्रछाया हटने पर पुन: रूहेलों के धावे होने लगे । 1785 में गुलाम कादिर ने हरिद्वार को लूटा । 1796 ई0 में पंजाब के सिक्ख सरदारों ने गुसाइयों से अनबन होने पर घुडसवारों के बल पर अन्तिम स्नान के दिन सो सन्यासी,वैरागी,गुंसाई नागा मार डाले ।1804ई0  में गोरखों का गढवाल पर अधिपत्य होने से हरिद्वार ,स्त्री, पुरूष दासों की बिक्री का एक बडा केन्द्र बन गया  ।

1855 में मायापुर से गंगा नहर निकाली गयी इससे मायापुर का पुन: विकास होने लगा ज्वालापुर समृद्व मण्डी बन गया । 1886 में लक्सर से व 1900ई0 में  देहरादून रेलमार्ग जुडने से यह तीर्थ नगर अधिक विकसित होने लगा । आज यह पूरे विश्व में प्रसिद्व है, 2010 कें महाकुम्भ की अगुवायी को तैयार है। 




सुनीता शर्मा





Sunday, December 27, 2009

हरिद्वार........ कुम्भ नगरी भाग 2


पिछली पोस्ट में आपने कुम्भ-नगरी हरिद्वार की प्राचीनता के बारे में पढा शेष अब आगे........ गंगाद्वार के बाद कनखल,मायापुर आदि जो नाम प्रसिद्व हुए उनके पीछे हमें सभी पुराणो में शिव से सम्बन्धित कथानक ही मिलते है.......गंगाद्वार के बाद इसका नाम हरद्वार पडा जहांगीर के काल मे टामकोरियट ने हरिद्वार की यात्रा की थी और चेपलिन टोरी को लिखा थ कि "शिव की राजधानी हरद्वार में गंगा की तीव्र धारा है"।
ऐतिहासिक काल के क्रम में 1951 ई0 में गंगा नहर खोदतें समय ताम्रसंस्कृति तथा 1953 में यज्ञदत्त शर्मा के उत्खनन द्वारा यहां पाषाण कालीन बस्ती के चिन्ह मिलने से स्पष्ट होता है कि यहां उत्तरपाषाण काल की पुष्टि होती है ...इसके बाद महाभारत में वर्णित युग में प्रवेश कर जाते है.......। 
वनपर्व से पितृतर्पण हेतु आश्रमवासिक पर्व से यहां सन्यास लेकर आने वाले तपस्वियों  के उल्लेख मिलने लगते है । गंगासागर से गंगाद्वार तक 400 अशवमेध यज्ञ भरत द्वारा करने से इस निर्णय पर पहुचते है कि प्रारम्भ में यह क्षेत्र कोसलराज्य के अन्तर्गत था लक्ष्मण पुत्र द्वारा इसे अंगदीया नाम की राजधानी बनाया गया इसके बाद मगध के आधीन फिर कालसी का  शिलालेख अशोक महान की राज्य सीमा विस्तार का एक सशक्त प्रमाण है ............. कूर्माचल एंव गढवाल की जागर लोकवार्ताओ में मायापुर हाट के पुण्डीर राजा की पुत्री कत्यूरी रानी बनकर जिया नाम से प्रसिद्व होती है व सैययद आक्रमणों से मुकाबला करती है । दसवी  शती ई0 तक के युग मे यहां नाथ/सिद्वों का प्रधान्य रहा रमोल गाथा में भीमगोडा के लिए गदाधर बाजार नाम मिलता है जो अधिक सार्थक है..........इस युग में भारत के अनेक क्षेत्रों से यहां दिव्यमूर्तियों की स्थापना  भी हई  गुरूकुल कांगडी के  संग्रहालय में पायी जाने वाली मूर्तियों सन्दर्भ में हम यह भी कह सकते है कि इनका मूल स्रोत दक्षिण भारत ही था ।


चौदहवी शती ई0 में ईब्नवतूता के विवरण से पता चलता है कि यहां के योगी सिद्वों की चमत्कार पूर्ण कहानियां दिल्ली सल्तनत के दरबारों तक जा पहुची थी उसने लिखा है कि नंजौर या बिजनोर के आसपास ऎसे लोग रहते है कई  दिनो तक निर्जल,निराहार रह  जाते है वह यदि किसी पर क्रोध कर दे तो तत्काल उनकी मृत्यु हो जाती है जब ऎसे ही कुछ योगी सिद्व तुगलक के दरबार में पहुचाये गये तो वह उनके कारनामे देखकर हैरान रह गया..............। 
आज भी हरिद्वार इनसे वंचित नही इस कुम्भ नगरी की दिव्यता व यहां की ख्याति ने ही इसे विधर्मियों का निशाना बनाया.................जारी है अगले भाग में 
नजर डालते रहिए........ कुम्भ नगरी हरिद्वार ।
(Photo's from google and Anoop khatri)
सुनीता शर्मा

Monday, December 21, 2009

हरिद्वार....... कुम्भ नगरी भाग 1

2010, आने वाले साल की दस्तक सुनाई देने लगी है इसके साथ ही 2009 समाप्ति की ओर अग्रसर  है खास बात यह भी है कि गंगा के करीब सुनाई पडती है वो घंटिया जो आगामी मंहाकुम्भ का आगाज कर रही  है हिन्दुओ के अत्यन्त महत्वपूर्ण नगरी में जिसे मोझ नगरी व कुम्भ नगरी भी कहा जाता है।

गंगा द्वार अथवा हरिद्वार भ्रारत का विश्व प्रसिद्व तीर्थ है ,
 अयोध्या,मथुरा,माया,काच्ची,अवन्तिका 
 पुरी,द्वारावती,चैव सप्तैता तीर्थ मोझदायिका
इस शलोक में माया से अर्थ मायापुर अर्थात हरिद्वार से है यह भारत के चार प्रमुख कुम्भ क्षेत्रो में से एक एंव सात मोझदायक तीर्थो में से एक है इसके जो नाम प्रचलित है उनमें कपिलाद्वार ,स्वर्गद्वार ,कुटिलदर्रा,तैमुरलंग वर्णित चौपालीदर्रा, मोयुलो इत्यादि है लगभग आठवी शती में इसका नाम हरिद्वार पडा ।यह तीर्थ हिमालय या शिवालिक के मध्य से प्रारम्भ हो जाता है।गंगा के दायी और विल्वक और बायी ओर के पर्वत का नाम नीलपर्वत है हजारों वर्ष की ऐतिहासिक अवधि के दौरान यह अनेक नामो से विख्यात रहा है  जिसका जिक्र किया जा चुका है महाभारत के वनपर्व अ088 के अनुसार - विभेद तरसा गंगा,गंगाद्वारे युधिष्ठर ।
पुण्य तत्खायते,राजन्ब्रहृषि गण सेवितम।8। 
इस पुण्य क्षेत्र में मानव ही नही,देव गन्धर्व एंव देवर्षि भी रहकर पुण्यफल प्राप्त करते है यहां का कनखल व मायापुर क्षेत्र अत्यंत पौराणिक एंव ऐतिहासिक है गंगा की बदलती धाराआं ने ,मुस्लिम आक्रान्ताओ ने तथा निकाली गयी विशाल नहरों ने पुरातत्व सामग्री को गहरे गर्तो में दबा दिया..............आगे की पोस्ट में पढिये किस तरह यहां के लोगो के किस्से दिल्ली सल्तनत तक पहुचते थे अभी जारी है । 


सुनीता शर्मा

Friday, December 18, 2009

तो गंगा की सुध आ ही गयी......... गंगा संरक्षण का आवहान .......17दिसंबर

आखिर गंगा की सुध आ ही गयी...................


उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री माननीय डा0 रमेश पोखरियाल ने गंगा सरंक्षण का संकल्प लिया है।17 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष अब स्पर्श गंगा दिवस के रूप में मनाया जायेगा ।गंगा का प्रदुषण मुक्त किये जाने के सुध जो उत्तराखण्ड मे आयी है उसके तहत यहां के मुख्यमंत्री भी यह मानते है कि गंगा के संरक्षण की जिम्मेदार यहां के बच्चे -बच्चे पर होनी चाहिए । प्रदेश सरकार गंगा की स्वच्छता के लिए गंभीर है होना भी चाहिए।
इस प्रदेश के लोग गंगा को उत्तराखण्ड का मायका कहते है सो संरक्षण की जिम्मेदारी से वह कतई पीछे नही है।गंगा के विषय में जो भी अपमानजनक टिप्पणी करे उन्हे यह समझना चाहिए भले ही हम हिन्दुस्तानी भले दिल के है लेकिन जब बात हमारे विषय में कहे हमारी नदी को बीमारी कह दे तो हर हिन्दुस्तानी को समझ लेना चाहिए जिन लोगो की भाषा व संस्कृति को अपनाने में हम अपनी शान समझते है वह हमारे बारे क्या सोचते है।
गंगा नदी को यदि काई बीमारी तक कह दे तो यदि अब भी हम सचेत नही हुए तो कब होगें ,हमारे नदियों को पहाडों व अन्य प्राकृतिक सम्पदाओ की रक्षा हमें ही करनी है।


जिस तरह उत्तराखण्ड में इस नदी के विषय में सरकार व जनता जागरूक हो गयी यदि समस्त गंगा के प्रदेशों में व अन्य नदियों के संरक्षण व स्वच्छता की सुध पूरे भारतवर्ष में हो तो क्या मरणासन्न गंगा को बचाया नही जा सकता। सख्ती से गंगा में डाले जाने वाले नालों पर तत्काल रोक लगायी जानी चाहिए।यह अभियान समस्त देश में हो तो कितना अच्छा हो ।
मेरे आलेख नदी ही नही सस्कृति भी है गंगा पर लोगो द्वारा टिप्पणी भी की गयी कि गंगा की स्थिति के लिए अब क्या उपाय हो सबसे अहम बात जागरूकता व मन में विश्वास व दृढ सभी लोगों द्वारा किया गया दृढ संकल्प हो तभी काई भी अभियान व योजना सफल होती है ईमानदारी से किया काई भी प्रयास कभी विफल नही होता मुझे अपने पिता द्वारा सिखाई गयी इस बात पर पूर्ण विश्वास है कि भगवान भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करता है............................।


इन्ही प्रयासों की चन्द तस्वीरे जो  विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हई take a look.......

























प्रस्तुतकर्ता- 


सुनीता शर्मा
स्वतंत्र पत्रकार
ऋषिकेश , उत्तराखण्ड

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