इस मानसुन सावन पूरा बरसने के बाद भी मेघ पूरी भादों बरस रहे है तीर्थ नगरी में लगातार हो रही वर्षा से गंगा नदी में जलस्तर खतरे को पार कर गया गंगा के किनारे के इलाको में पानी भर गया है चद्रेशवर नगर ,चन्द्रभागा ,त्रिवेणी घाट ,शीशमझाडी,स्वर्गाश्रम ,रामझूला गंगा से सटे क्षेत्रों मे पानी भर चुका था वुधवार तक ।आज बारिश सुबह तक होती रही जिसमें अब कुछ राहत मिली है लेकिन बारिश जारी रही तो लोगो को बाढ की आशंका को देखते हुए चौकन्ना रहने की आवश्यकता है।
कल शाम जब बारिश रूकी तो लोगो ने हमेशा की तरह गंगा दर्शन का रूख किया पर यह क्या त्रिवेणी घाट तो गंगा के पानी में डूब चुका था पानी उपर तक आ चुका था गंगा का जल भी शायद पूरी जगह आना चाहता है गंगा अपनी उपस्थिति का अहसास करवा रही थी जो लोग यह मान कर बैठे है यह सिर्फ पाप धोने के लिए है तो उन्हे यह भी समझना होगा गंगा केवल लोगो के पाप ही नही धोती वरन् उन्हे अपने साथ बहा भी ले जाती है आज गंगा अपने पूरे उफान पर है शायद अभी वह लोगो को अपनी ताकत का अहसास करवाना चाहती जो उसे अभी समझ नही
सके ................।
गंगा तू कल्याणमयी तू शक्तिशाली है
वैभव तुम्हारा अतुलनीय है
नही है शब्द पास मेरे
कैसे मै तेरा बखान करूँ
जानती हूं मै मूढ हूं
पर तूझसे बहुत प्रेम करती हूं
मै अपने भाग्य पर क्यू न इठलाउ
क्या तुम्हे सब देख पाते है
जन्म लेते है, पर जब विदा होते है
सिर्फ तेरे जल की बुद से तारण पाते है
तू विश्व पालनी है तूझ पर मै नित नतमस्तक हूं
जीवन शेष तूझ दर्शन पाउ
यह एक आस न टूटने देना
मां के चरणों स्वर्ग मिला
अब क्या मै तुमसे पाउ
बाल मन कौतुक लिए
जब भी तूझा देखा करता
ममता की प्यास को तूने ही बुझाया
छुने को व्याकुल है तेरे जल की बूदे
मां गंगा हम अपनी दृष्टि रखना
तेरे करीब जो धरा है
उसमे जीवन का अर्थ भरा
इस जीवन को सफल करना
अपनी दया हम पर सदा रखना..................।
यह ब्लाग समर्पित है मां गंगा को , इस देवतुल्य नदी को, जो न सिर्फ मेरी मां है बल्कि एक आस्था है, एक जीवन है, नदियां जीवित है तो हमारी संस्कृति भी जीवित है.
Wednesday, September 8, 2010
ज्योतिष की सीमा
पहली बार ज्योतिष से परिचय हुआ.
होरा, संहिता और सिद्धान्त से लेकर
दशा, महादशा, अन्तर्दशा और
विंशोत्तर दशा तक
सारे शब्द नये थे मेरे लिये.
हिन्दुत्व पर मानपूर्वक
हजारों गीत रच देने वाला यह साधक
स्वीकार करता है
कि उसे पंचांग देखना तक न आता था.
वेदों पर अधिकार पूर्वक ट्टिपणी करके भी
वेदांग के इस प्रथम और
प्रमुख अंग से परिचय तक न था मेरा.
पूरी देहयात्रा
अन्यान्य दर्शनों का सार ढूंढता रहा
्मगर अपने हाथ में बनी
रेखाओं से परिचय न पा सका.
वसुधैव कुटुम्बकम पर भाषण कर लेता
मगर अपने घर के वास्तु से अनजान था.
धन्यवाद डा. मनोज श्रीमाल
आपने यह सब बताया.
दस दिनों के लिये निर्धारित पाठ्यक्रम को
संस्थान-अधिपति के देहावसान वश
आठ दिनों में पूरा कराया.
ज्योतिष से परिचय पाकर
इस सिद्धान्त की पुष्टि हुई
कि मानव का सम्बन्ध
परमाणु से अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड तक है.
जो है, उसे जाना जा सकता है.
मानव सब कुछ जान सकता है,
क्योंकि मानव सब कुछ जानना चाहता ही है.
कि सारी सृष्टि नियमतः है, नियमपूर्वक चलती है.
और नियमतः
मानव की हर न्यायपूर्ण चाहत के
पूरा होने की व्यवस्था है.
और ज्ञान प्राप्त करने की चाहत
पूर्णतः न्यायपूर्ण है, नैसर्गिक है.
जो कुछ मेरे पूर्वज जान गये, वह मैं जानता ही हूँ.
क्योंकि मैं ही पाराशर और भृगु हूँ
मैं ही मिहिर और कीरो.
क्यों कि मैं निरन्तर है.
मैं कहीं आता जाता नहीं.
देह और मैं का योग है मानव.
नाम-रूप इस योग का है.
योग का वियोग निश्चित है.
वियोग हुआ तो नाम-रूप बदल जाता है.
योग-वियोग देह का होता है,
मैं शरीर को वैसे ही छोङ देता है
वैसे ही जैसे फ़टा वस्त्र छोङ दिया जाता है.
वासांसि जीर्नानि यथा विहाय,
नवानि ग्रह्णाति नरोपराणि.
तथा शारीराणि विहाय जीर्णान
नृन्यानि संयाति नवानि देही.
महाप्रज्ञ को अमर नहीं किया जा सकता.
नाम-रूप को
न लौटाया जा सकता है
न उससे जुङी स्मृतियाँ चिरकाल चलती हैं
निरन्तर बदलती सृष्टि में
भौतिक-रासायनिक वस्तुओं में
परिवर्तन होता रहता है.
मगर
यह जो मैं है, कभी मरता नहीं.
महाप्रज्ञ मैं रूपमें निरन्तर है.
यह भाषा निर्मित भ्रम है
जो मैं है को मैं हूँ बनाता है.२
अहं ब्रह्मास्मि की जगह
अहं ब्रह्मास्ति होता,
तो तत्वमसि या सर्वंखल्विदं ब्रह्म की
जरूरत ही ना थी.
और ना ही ज्योतिष-विज्ञान की.
मैं है को मैं हूँ कहते ही
ज्योतिष की भूमिका आरम्भ होती है.
अर्थात--भौतिक-रासायनिक क्रियाओं तक है
ज्योतिष का क्षेत्र. बस!
९ ग्रह, १२ राशि और २७ नक्षत्रों की
परस्पर गतियों सहित
उनके परस्पर प्रभाव और
मानव पर पङने वाले प्रभावों का
आकलन ही फ़लादेश है.
सारा प्रभाव देह और मन-वृत्ति तक है.
चित्त पर आते-आते
ज्योतिष का प्रभाव आधा रह जाता है.
चित्त की दो भूमिकायें- चित्रण और चिन्तन.
चित्रण यदि ज्योतिष से प्रभावित है
अर्थात देह भाव से प्रभावित है
तभी सुख-दुख की गणना है.
चिन्तन बुद्धि से प्रभावित
अतः वहाँ ज्योतिष अप्रभावित रहता है.
चिन्तन के स्तर पर दुःख का अस्तित्व नहीं.
वहाँ मैं का साम्राज्य है
वहाँ जीवन है
और जीवन कालातीत है.
कालजयी ही नहीं- कालातीत!
काल को जीतना नहीं है
काल को जानना है
जानते ही जीत लिया जाता है काल.
चिन्तक थे सभी ज्योतिषविद.
काल के ऊपर उठकर
काल-पुरुष को देखा- जाना
इसीलिये ज्योतिष वेदांग का सिर है
इसी अर्थ में वेद परमात्मा है.
ग्रन्थ सिर्फ़ इशारा करता है.
शब्द ब्रह्म बने- तभी अक्षर को जान पाता है
अन्यथा ग्रन्थों में भटकाता है.
शब्द यदि अक्षर को जानने में सहयोगी बने
शब्द यदि ब्रह्म तक ना पहुँचा सके
तो भ्रम फ़ैलाता है…
ग्रन्थों में भटकाता है
मारता और पुनः जिलाता है
ज्योतिष की
जटिल गणनाओं में उलझाता है.
इसी देह-यात्रा में
मानव समग्र को जान सकता है.
देह चलाने का प्रयोजन भी यही है.
ज्योतिष का प्रयोजन
दुख के पार पहुँचाना है
बीमारी ठीक करना नहीं!
सारे उपचार व्यापार हैं
हर व्यापार परिवार भाव को काटता है.
परिवार भाव ही भारत, व्यापार भाव इण्डिया-पश्चिम.
भारत ज्ञानारधना का नाम है, सीमायें नहीं.-
sadhak ummedsingh baid
होरा, संहिता और सिद्धान्त से लेकर
दशा, महादशा, अन्तर्दशा और
विंशोत्तर दशा तक
सारे शब्द नये थे मेरे लिये.
हिन्दुत्व पर मानपूर्वक
हजारों गीत रच देने वाला यह साधक
स्वीकार करता है
कि उसे पंचांग देखना तक न आता था.
वेदों पर अधिकार पूर्वक ट्टिपणी करके भी
वेदांग के इस प्रथम और
प्रमुख अंग से परिचय तक न था मेरा.
पूरी देहयात्रा
अन्यान्य दर्शनों का सार ढूंढता रहा
्मगर अपने हाथ में बनी
रेखाओं से परिचय न पा सका.
वसुधैव कुटुम्बकम पर भाषण कर लेता
मगर अपने घर के वास्तु से अनजान था.
धन्यवाद डा. मनोज श्रीमाल
आपने यह सब बताया.
दस दिनों के लिये निर्धारित पाठ्यक्रम को
संस्थान-अधिपति के देहावसान वश
आठ दिनों में पूरा कराया.
ज्योतिष से परिचय पाकर
इस सिद्धान्त की पुष्टि हुई
कि मानव का सम्बन्ध
परमाणु से अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड तक है.
जो है, उसे जाना जा सकता है.
मानव सब कुछ जान सकता है,
क्योंकि मानव सब कुछ जानना चाहता ही है.
कि सारी सृष्टि नियमतः है, नियमपूर्वक चलती है.
और नियमतः
मानव की हर न्यायपूर्ण चाहत के
पूरा होने की व्यवस्था है.
और ज्ञान प्राप्त करने की चाहत
पूर्णतः न्यायपूर्ण है, नैसर्गिक है.
जो कुछ मेरे पूर्वज जान गये, वह मैं जानता ही हूँ.
क्योंकि मैं ही पाराशर और भृगु हूँ
मैं ही मिहिर और कीरो.
क्यों कि मैं निरन्तर है.
मैं कहीं आता जाता नहीं.
देह और मैं का योग है मानव.
नाम-रूप इस योग का है.
योग का वियोग निश्चित है.
वियोग हुआ तो नाम-रूप बदल जाता है.
योग-वियोग देह का होता है,
मैं शरीर को वैसे ही छोङ देता है
वैसे ही जैसे फ़टा वस्त्र छोङ दिया जाता है.
वासांसि जीर्नानि यथा विहाय,
नवानि ग्रह्णाति नरोपराणि.
तथा शारीराणि विहाय जीर्णान
नृन्यानि संयाति नवानि देही.
महाप्रज्ञ को अमर नहीं किया जा सकता.
नाम-रूप को
न लौटाया जा सकता है
न उससे जुङी स्मृतियाँ चिरकाल चलती हैं
निरन्तर बदलती सृष्टि में
भौतिक-रासायनिक वस्तुओं में
परिवर्तन होता रहता है.
मगर
यह जो मैं है, कभी मरता नहीं.
महाप्रज्ञ मैं रूपमें निरन्तर है.
यह भाषा निर्मित भ्रम है
जो मैं है को मैं हूँ बनाता है.२
अहं ब्रह्मास्मि की जगह
अहं ब्रह्मास्ति होता,
तो तत्वमसि या सर्वंखल्विदं ब्रह्म की
जरूरत ही ना थी.
और ना ही ज्योतिष-विज्ञान की.
मैं है को मैं हूँ कहते ही
ज्योतिष की भूमिका आरम्भ होती है.
अर्थात--भौतिक-रासायनिक क्रियाओं तक है
ज्योतिष का क्षेत्र. बस!
९ ग्रह, १२ राशि और २७ नक्षत्रों की
परस्पर गतियों सहित
उनके परस्पर प्रभाव और
मानव पर पङने वाले प्रभावों का
आकलन ही फ़लादेश है.
सारा प्रभाव देह और मन-वृत्ति तक है.
चित्त पर आते-आते
ज्योतिष का प्रभाव आधा रह जाता है.
चित्त की दो भूमिकायें- चित्रण और चिन्तन.
चित्रण यदि ज्योतिष से प्रभावित है
अर्थात देह भाव से प्रभावित है
तभी सुख-दुख की गणना है.
चिन्तन बुद्धि से प्रभावित
अतः वहाँ ज्योतिष अप्रभावित रहता है.
चिन्तन के स्तर पर दुःख का अस्तित्व नहीं.
वहाँ मैं का साम्राज्य है
वहाँ जीवन है
और जीवन कालातीत है.
कालजयी ही नहीं- कालातीत!
काल को जीतना नहीं है
काल को जानना है
जानते ही जीत लिया जाता है काल.
चिन्तक थे सभी ज्योतिषविद.
काल के ऊपर उठकर
काल-पुरुष को देखा- जाना
इसीलिये ज्योतिष वेदांग का सिर है
इसी अर्थ में वेद परमात्मा है.
ग्रन्थ सिर्फ़ इशारा करता है.
शब्द ब्रह्म बने- तभी अक्षर को जान पाता है
अन्यथा ग्रन्थों में भटकाता है.
शब्द यदि अक्षर को जानने में सहयोगी बने
शब्द यदि ब्रह्म तक ना पहुँचा सके
तो भ्रम फ़ैलाता है…
ग्रन्थों में भटकाता है
मारता और पुनः जिलाता है
ज्योतिष की
जटिल गणनाओं में उलझाता है.
इसी देह-यात्रा में
मानव समग्र को जान सकता है.
देह चलाने का प्रयोजन भी यही है.
ज्योतिष का प्रयोजन
दुख के पार पहुँचाना है
बीमारी ठीक करना नहीं!
सारे उपचार व्यापार हैं
हर व्यापार परिवार भाव को काटता है.
परिवार भाव ही भारत, व्यापार भाव इण्डिया-पश्चिम.
भारत ज्ञानारधना का नाम है, सीमायें नहीं.-
sadhak ummedsingh baid
Sunday, August 8, 2010
बढता ही जा रहा है आस्था का ज्वार........
मां गंगा के प्रति आस्था किस कदर है यह तब पता चलता है करोड़ों की संख्या में गंगा से जुडे आयोजन हो चाहे विगत दिनो सपंन्न हुआ महाकुम्भ हो या अन्य स्नान पर्व लोगो का हजुम करोडों की संख्या पार कर जाता है । इसी तरह जब से सावन मास प्रारम्भ हुआ कांवड लेकर आने वालो की संख्या भी करोडो को पार कर गयी जब से उत्तरांचल का गठन हुआ कांवडियों की सख्या पहली बार इतनी ज्यादा है की जितनी उम्मीद थी उससे कही अधिक संख्या में कांवडिये गंगा जल लेने गंगा के करीब आये है ।इस बार कांवडियों की सख्या खुद में एक रिकार्ड है जिससे प्रशासन के साथ साथ स्थानीय लोग भी अचभित है ।
लगता है गंगा के प्रति जो चेतना आयी है यह भी उसका एक हिस्सा हो सबसे खास बात तो यह भी है कि कुछ कांवडियों ने तो गंगा व गंगा जल की सुरक्षा को लेकर चिन्ता भी जतायी है कि जब गंगा ही नही होगी तो गंगा जल कहां से मिलेगा इससे यह भी पता चलता है अन्य स्थानो पर भी हमारी सांस्कृतिक धरोहर मां गंगा के प्रति लोगो मे आस्था है जिस वह उनके जीवन का प्राणवान हिस्सा है उसकी दुर्दशा पर सभी का ध्यान गया गया है।
अहम बात यह भी है जिस तरह गंगा के इन तीर्थो में धार्मिक आयोजनो पर्वो स्नानों के के लिए जो जन सैलाब करोड़ों की संख्या में उमड पडता है जिसमें लोगो की जाने भी चली जाती है दुर्घटनाये भी होती है उनके लिए यहां की सरकार कितनी चिन्तत है उनकी सुरक्षा उनकी तकलीफों के क्या कुछ इन्तजाम किये जाते है या सिर्फ उन्हे नियंत्रित करने में ही प्रशासन की उर्जा खर्च करता है ।
जिस तरह लोगो की भीड उमडती है फिर उसके बाद जो गंन्दगी व अव्यवस्था फैल जाती उससे स्थानीय जन में आक्रोश की स्थिति पैदा होती है यदि इसी तरह धार्मिक आस्था में बढोतरी होगी तो आने वाले समय के लिए उत्तराखण्ड सरकार क्या इनसे आसानी से निबट पायेगी ।गंगा के किनारें इन इन धार्मिक तीर्थ नगरियों में क्या पर्याप्त व्यवस्था होती है की वह इतने लोगो को असानी से जगह दे सके शायद नही तो अभी से सरकार को सचेत हो जाना चाहिए वह इस गंभीर मुद्दे पर अपनी कमर कस लेनी चाहिए तभी वह अपने प्रदेश को खुशहाली व विकास की ओर ले जा सकती है क्यो की शायद अब धार्मिक पर्यटन तथा आस्था की नयी शुरूवात हो चुकी है जिसमे आने वाले जन सैलाब में बढोतरी हो कर रहेगी...........
लगता है गंगा के प्रति जो चेतना आयी है यह भी उसका एक हिस्सा हो सबसे खास बात तो यह भी है कि कुछ कांवडियों ने तो गंगा व गंगा जल की सुरक्षा को लेकर चिन्ता भी जतायी है कि जब गंगा ही नही होगी तो गंगा जल कहां से मिलेगा इससे यह भी पता चलता है अन्य स्थानो पर भी हमारी सांस्कृतिक धरोहर मां गंगा के प्रति लोगो मे आस्था है जिस वह उनके जीवन का प्राणवान हिस्सा है उसकी दुर्दशा पर सभी का ध्यान गया गया है।
अहम बात यह भी है जिस तरह गंगा के इन तीर्थो में धार्मिक आयोजनो पर्वो स्नानों के के लिए जो जन सैलाब करोड़ों की संख्या में उमड पडता है जिसमें लोगो की जाने भी चली जाती है दुर्घटनाये भी होती है उनके लिए यहां की सरकार कितनी चिन्तत है उनकी सुरक्षा उनकी तकलीफों के क्या कुछ इन्तजाम किये जाते है या सिर्फ उन्हे नियंत्रित करने में ही प्रशासन की उर्जा खर्च करता है ।
जिस तरह लोगो की भीड उमडती है फिर उसके बाद जो गंन्दगी व अव्यवस्था फैल जाती उससे स्थानीय जन में आक्रोश की स्थिति पैदा होती है यदि इसी तरह धार्मिक आस्था में बढोतरी होगी तो आने वाले समय के लिए उत्तराखण्ड सरकार क्या इनसे आसानी से निबट पायेगी ।गंगा के किनारें इन इन धार्मिक तीर्थ नगरियों में क्या पर्याप्त व्यवस्था होती है की वह इतने लोगो को असानी से जगह दे सके शायद नही तो अभी से सरकार को सचेत हो जाना चाहिए वह इस गंभीर मुद्दे पर अपनी कमर कस लेनी चाहिए तभी वह अपने प्रदेश को खुशहाली व विकास की ओर ले जा सकती है क्यो की शायद अब धार्मिक पर्यटन तथा आस्था की नयी शुरूवात हो चुकी है जिसमे आने वाले जन सैलाब में बढोतरी हो कर रहेगी...........
Thursday, July 1, 2010
हेमामालिनी स्पर्शगंगा अभियान की ब्रांड एंबेसडर.......... कितना सही, कितना गलत?
आजकल यह चर्चा जोरो पर है कि हेमा मालिनी को स्पर्श गंगा का ब्रांड एंबेसडर बनाने पर उत्तराखण्ड सरकार अपना राजनैतकि उद्देशय सिद्व करना चाहती है व जनमानस सुप्रसि़द्व अभेनेत्री और नृत्यांगना के मां गंगा के ब्रांड एंबेसडर बनाये जाने से आहत है जबकि गंगा तो खुद संस्कृति की वाहक है उसे इस तरह के ब्रांड एंम्बेसडर की आवश्यकता है ही नही ,यह भी विरोधाभास है कि इसके लिए उत्तराखण्ड के ही किसी अन्य व्यक्ति को चुनना चाहिए था ।
क्या सचमुच उत्तराखण्ड सरकार ने हेमा जी को गंगा नदी से जुडे स्पर्श गंगा अभियान के लिए हेमा जी को ब्रांड एंम्बेसडर बना कर कोई गलती की है ? जबकि सत्यता तो यह भी है हेमा जी जैसी अभिनेत्री व नृत्यागना को गंगा के लिए ब्रांड एंम्बेसडर बनाये जाने पर गलत क्या है वह उन्होने अपने अभिनय व नृत्य कला से अपनी प्रतिभा का लोहा देश विदेश में मनाया है वह अन्तराष्ट्रीय स्तर की कलाकार है यदि मां गंगा के उद्वार में वह अपना योगदान कर सकती है तो इसमे कुछ बुरा नही है । वह इस अभियान से जुडना अपना सौभाग्य मानती है गंगा नदी देश के ही नही वरन् विदेशियों के हृदय की भी धारा है उनके मन में भी गंगा के प्रति आपार स्नेह व आस्था है जिस जनमानस की भावनाओं के आहत होने बात जो लोग कर रहे है तो गंगा नदी को प्रदुषित करने में चाहे आम जन हो या सन्त भी उसके प्रदुषण व उसकी मार्मिक हालत जिम्मेदार सभी है। जो लोग आज गंगा नदी की साफ -सफाई के प्रति जागरूक हो चुके है उनके मन में हेमा जी प्रति भी उतना ही विश्वास है कि वह अपने जिम्मेदारी जो उन्होने ली है उसमे सफल हो सकेगी यदि प्रदेश के मुख्यमंत्री जब गंगा नदी के प्रति इतनी संवेदनशीलता रखते हो तो आज मां गंगा के उद्वार के नाम पर सभी को ईमानदार होना ही पडेगा ताकि हम अपनी जीवनदायिनी को उसके स्थिति से उबारने में कुछ तो कामयाब हो सके मां गंगा की दुर्दशा के जिम्मेदार हम सभी है बाहरी ताकत ने तो उसे मरणासन्न नही किया ।
जब यहां के लोग गंगा को अपनी मां मानते है तो वह यह क्यों नही समझते जब मां की हालत सही होगी तो तब ही तो वह अपने बच्चों के लिए सही रह पायेगी लेकिन यह भी एक विडम्बना ही है संतान अपनी मां की परवाह बहुत कम करती है भले मां अपनी जान तक अपनी संतान के लिए न्यौछावर कर दे ।जो लोग यह सोचते है कि हेमा जी को मां गंगा का ब्रांड एंम्बेसडर बना दिये जाने पर सरकार ने गंगा को भी प्रोडक्ट बना दिया है वह कितना सही यह तो वही जाने लेकिन आज जो गंगा कि दशा है उससे बचाने के लिए हमे इस जीवनदायिनी के लिए कुछ भी करना पडे वह भी कम होगा ।जब स्नानपर्वो पर जन सैलाब उमडता है तथा उसके बाद इस नदी का जो हाल यह जनमानस करता है तब उसकी आस्था कहां जाती है। वह इसके प्रति खुद से चिन्तत नही होगा तब तक कोई कुछ भी नही कर सकता जो समर्थ है उन्हे इस कार्य में आगे आना ही होगा मैने यह ब्लाग मां को समर्पित किया ताकि थोडी सी भी आवाज उन सभी तक पहुंच सके जो इस दिव्य नदी को आने वाली पीढी के लिए बचा सके । हमे इसके लिए अपने उन संस्कारों मे भी बदलाव लाना होगा जो इस नदी से जुडे है मां गंगा के हित के लिए अगर कुछ सके तभी यह जीवन सार्थक होगा व वह ऋण भी तभी उतरेगा जो एक मां का होता है जिसे हमे कभी नही चुका सकते ...........शायद
(हेमा मालिनी चित्र गुगल से साभार)
पढे गंगा नदी से सम्बन्धित अन्य पोस्ट ......(गंगा में प्रवाहित कर दो.....)
क्या सचमुच उत्तराखण्ड सरकार ने हेमा जी को गंगा नदी से जुडे स्पर्श गंगा अभियान के लिए हेमा जी को ब्रांड एंम्बेसडर बना कर कोई गलती की है ? जबकि सत्यता तो यह भी है हेमा जी जैसी अभिनेत्री व नृत्यागना को गंगा के लिए ब्रांड एंम्बेसडर बनाये जाने पर गलत क्या है वह उन्होने अपने अभिनय व नृत्य कला से अपनी प्रतिभा का लोहा देश विदेश में मनाया है वह अन्तराष्ट्रीय स्तर की कलाकार है यदि मां गंगा के उद्वार में वह अपना योगदान कर सकती है तो इसमे कुछ बुरा नही है । वह इस अभियान से जुडना अपना सौभाग्य मानती है गंगा नदी देश के ही नही वरन् विदेशियों के हृदय की भी धारा है उनके मन में भी गंगा के प्रति आपार स्नेह व आस्था है जिस जनमानस की भावनाओं के आहत होने बात जो लोग कर रहे है तो गंगा नदी को प्रदुषित करने में चाहे आम जन हो या सन्त भी उसके प्रदुषण व उसकी मार्मिक हालत जिम्मेदार सभी है। जो लोग आज गंगा नदी की साफ -सफाई के प्रति जागरूक हो चुके है उनके मन में हेमा जी प्रति भी उतना ही विश्वास है कि वह अपने जिम्मेदारी जो उन्होने ली है उसमे सफल हो सकेगी यदि प्रदेश के मुख्यमंत्री जब गंगा नदी के प्रति इतनी संवेदनशीलता रखते हो तो आज मां गंगा के उद्वार के नाम पर सभी को ईमानदार होना ही पडेगा ताकि हम अपनी जीवनदायिनी को उसके स्थिति से उबारने में कुछ तो कामयाब हो सके मां गंगा की दुर्दशा के जिम्मेदार हम सभी है बाहरी ताकत ने तो उसे मरणासन्न नही किया ।
जब यहां के लोग गंगा को अपनी मां मानते है तो वह यह क्यों नही समझते जब मां की हालत सही होगी तो तब ही तो वह अपने बच्चों के लिए सही रह पायेगी लेकिन यह भी एक विडम्बना ही है संतान अपनी मां की परवाह बहुत कम करती है भले मां अपनी जान तक अपनी संतान के लिए न्यौछावर कर दे ।जो लोग यह सोचते है कि हेमा जी को मां गंगा का ब्रांड एंम्बेसडर बना दिये जाने पर सरकार ने गंगा को भी प्रोडक्ट बना दिया है वह कितना सही यह तो वही जाने लेकिन आज जो गंगा कि दशा है उससे बचाने के लिए हमे इस जीवनदायिनी के लिए कुछ भी करना पडे वह भी कम होगा ।जब स्नानपर्वो पर जन सैलाब उमडता है तथा उसके बाद इस नदी का जो हाल यह जनमानस करता है तब उसकी आस्था कहां जाती है। वह इसके प्रति खुद से चिन्तत नही होगा तब तक कोई कुछ भी नही कर सकता जो समर्थ है उन्हे इस कार्य में आगे आना ही होगा मैने यह ब्लाग मां को समर्पित किया ताकि थोडी सी भी आवाज उन सभी तक पहुंच सके जो इस दिव्य नदी को आने वाली पीढी के लिए बचा सके । हमे इसके लिए अपने उन संस्कारों मे भी बदलाव लाना होगा जो इस नदी से जुडे है मां गंगा के हित के लिए अगर कुछ सके तभी यह जीवन सार्थक होगा व वह ऋण भी तभी उतरेगा जो एक मां का होता है जिसे हमे कभी नही चुका सकते ...........शायद
(हेमा मालिनी चित्र गुगल से साभार)
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Sunday, June 20, 2010
गंगोत्रीतीर्थ........अन्तिम भाग
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पिछले दो भागो में आपने गंगोत्रीतीर्थ व यहां के मंदिर के बारे में जाना अब आगे........1816 में जब फ्रेजर ने नया विवरण प्रस्तुत किया तो गंगोत्री का पंडित व उसक परिवार के सदस्यों का मुखवा ग्राम में रहने का उल्लेख मिलता है यह भी पता चलता है कि 1788ई0 में गंगोत्तरी का मठ उजडा हुआ था जिससे यह तथ्य भी ध्यान में आता है कि मंदिर का निर्माण इस तिथि से पहले हो चुका था संभवत पहले वहां लकडी का मंदिर था उत्तराखण्ड के मंदिरों के इतिहास के बारे में लिखी गयी पुस्तकों से भी ज्ञात होता है कि अमरसिंह थापा ने मुखवा -गंगोत्तरी का कीमति प्रदेश गूंठ में दिया था ।गंगोत्री का वर्तमान मंदिर बनाने का श्रेय बीसवी शती ई0 के प्रारम्भ में जयपुर नरेश माधोसिहं को दिया जाता है मंदिर के गवाक्ष राजस्थानी शैली के तथा बरामदें के स्तम्भ राजस्थानी पहाडी शैली के मिश्रित स्वरूप में बने है ,गर्भगृह में गंगा की आभुषण युक्त मूर्ति है।गंगा मंदिर के समीप ही भैरव मंदिर भी है।
-गंगा माता मंदिर
गंगोत्री एक खुबसुरत शहर है सर्दियों में यह बर्फ से ढका रहता है विदेशी इसे बहुत पसन्द करते है विदेशियों में यह ट्रेंकिग के लिए भी लोकप्रिय है गौमुख व उससे आगे भी ट्रेकिग पर जाते है । तीर्थ यात्रा के अलावा यह एक प्रमुख पर्यटक स्थल है यह शहर दो भागों में बटा है भागीरथी के दोनो किनारों पर बसा है ।
1808 में जब गंगा स्रोत की खोज का कार्य ईस्ट इंडिया कम्पनी के सर्वेयर जनरल के आदेश पर कैप्टन रीपर तथा ले0 वेब को सौपा गया था । रीपर ने तब भटवाडी तक यात्रा की थी परन्तु वकिट मार्ग होने के कारण आगे नही बढ पाया वह लिखता है कि हिन्दु धर्म में गंगोत्री की यात्रा एक महान कार्य बतायी जाती है,1816 में उत्तराखण्ड पर ईस्ट इंडिया कम्पनी का अधिपत्य होते समय हिमाचल जौनसार ,यमुनोत्री होते हुए गंगोत्री पहुंचा था उसने द हिमाला माउन्टेन पृ0479 में लिखा -- "हम इस समय विशव के विलक्षण हिमाला के मध्य में शायद सर्वाधिक उबड-खाबड गिरि श्रृंगो के मध्य में खडे भारत की पवित्रतम नदी को निहार रहे थे ।हिमालय के तीर्थो में सर्वाधिक पवित्र इस तीर्थ की विराट नीरवता,स्तब्धता और एकान्तिकता हमारे मस्तिष्क में अवर्णीय अनूभूति का संचार कर रही थी ।"
गंगोत्री मंदिर के निकट ही भागीरथी एक फलांग आगे पश्चिम दिशा में विशाल में चट्टानों को चीरती हई एक चट्टानी गर्त में भंयकर वेग व गर्जना से प्रताप बनाती हुई गिरती है । इस गौरी कुण्ड कहते है ।
भागीरथी शिला से नीचे नहाने के लिए गर्म जल का प्राकृतिक स्रोत है जिसे ब्रहमकुण्ड कहा जाता है।
प्राकृतिक दृशयों से भरपुर गंगोत्री यात्रा का अलग ही रोमांच है भागीरथी शिला ,सुरजकुण्ड भी देखने लायक है। यदि पैदल यात्रा का शौक रखते हो तो गौमुख जाना न भूले यात्रा मार्ग के लिए घोडे व खच्चर भी उपलब्ध रहते है ।
गौरीकुण्ड-
सुरजकुण्ड-
Thursday, June 17, 2010
किससे कहे व्यथा अपनी.....?

उद्वार किया पुरखों का
छलनी है हृदय आज
मेरा देखु जब तेरी दुर्दशा
हर मां के सीने में
यह कैसा दर्द छिपा है
के उसके ही लाडलों ने लहुलुहान किया है ।
एक मां ही होती है
जो जख्मों को छिपा लेती है
किससे कहे व्यथा अपनी
क्या उसकी सुन लेगा
अपनी धुन में इस इन्सा ने
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फिर कौन भगीरथ आयेगा
मां तूझे लुप्त होने से कौन बचा पायेगा
तूझ बिन यह जीवन जीवन नही है
तू है तो प्राण है ,यह जन-जन को कौन समझायेगा,
तू है तो प्राण है, यह जन-जन को कौन समझायेगा............।
Monday, June 7, 2010
गंगोत्रीतीर्थ........2

गंगात्रीतीर्थ-1 से आगे
गंगोत्री तीर्थ में भगीरथी के अनुरोध से गंगा अवतरित हई गंगाअवतरण की कथा के लिए पढे, सारे तीर्थ बार-बार गंगासागर एक बार । पर्वतों से घिरे भारी शिलाखंडो व धरातलीय स्थिति के कारण जब तक गंगोत्तरी के निकट नही पंहुचा जाता तब तक इस तीर्थ की स्थिति का पता ही चल पाता रास्ते तमाम बाधाओ को पार कर जब तीर्थ यात्री,श्रद्वालु एंव पर्यटक गंगोत्री पहुंचते है तो यहां के सुन्दर प्राकृतिक दृशय देख सारी थकान भृल जात है और पंहुच जाते है गंगा के करीब उसके उदृगम के आस-पास यह सोच कर भी रोंमाच से भर उठते है कि यही वह जगह है जहां जीवनदायिनी मां गंगा धरती पर आयी उत्तरवाहिनी बनी व इस जगह को गंगात्री का कहा गया ।
प्राचीन काल में इस स्थान में कोई मंदिर नही था केवल भागीरथी शिला के पास चौतरा था जिसमें देवीमूर्ति को यात्राकाल के 3-4 मास दर्शनार्थ रखा जाता था ।तब इस मूर्ति को उत्सव समारोह के साथ यात्राकाल के प्रारम्भ में अनेक बदलते रहते मठस्थान ,क्रमश:शयामप्रयाग ,गंगामंदिर धराली या मुखवा ग्राम ये लाया जाता था तथा यात्राकाल की समाप्ति पर यही वापस ल जाया भी जाता था । यह प्रथा उत्तराखण्ड के अन्य तीर्थो में भी थी और इस प्रकार प्रत्येक तीर्थ देवता के ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन आवास पृथक होते थे यह प्रथा जारी है । यमनोत्री व गंगोत्री तीर्थो की यह विशेषता भी रही कि यहां मंदिर बनाना उचित नही समझा गया कारण यह भी कि जहां स्वयं देवी माता साक्षात स्वरूप में विघमान है और भक्तों तथा पापियों का उद्वार करने के लिए कुण्ड की अथवा प्रवाह रूप में सुलभ है वहां मुर्ति रखने की क्या आवश्यकता है ?
वेदव्यास ने बह्रम की अराधना को प्रकृति के खुले प्रांगण में करने को ही सर्वोपरि बताया था व नदियों को विश्वमाता बताते हुए घोषित किया था कि "विश्वस्य मातर:सर्वश:चैव महाफला।"फ्रेजर को उन्नीसवीं शती ई0 के प्रारम्भ में मिली जानकारी पूर्ण ऐतिहासिक थी , कि पहले यहां कोई मंदिर नही था। रीपर द्वारा भेजे गये पंडित ने 1808 ई0 में जो सुचना दी थी उसके अनुसार मंदिर पत्थर और लकडी का बना था।
उन्नीसवीं शती के मध्य में पुन: वहां एक प्रकृति प्रेमी एमा रार्बट का खोजी दल पंहुचा वहां के मनोरम दृशय का तुलिका से चित्रण करने के उपरान्त यह संक्षिप्त सूचना भी दी कि भागीरथी धारा से 20 फूट उचाई पर एक चटटान के उपर एक गोरखा सामन्त ने अपनी विजय के प्रतीकार्थ यहां देवी के सम्मान में यह छोटा पगौडा शैली का मंदिर बनवाया था और उन ब्राहृमणों को इसके निकट आवास दिया थां। भारत के विभिन्न भागों को जाने वाले गंगाजल पर यहां पवित्रता की मुहर लगायी जाती है।मंदिर का र्निमाण किसने करवाया इस बारे में एक राय नही है ............शेष आगे, अभी जारी है
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