Thursday, October 28, 2010

मां गंगा को बचाने की तैयारियां......................।


देवनदी गंगा को बचाने के लिए उसके लाडलों में जो चेतना आयी है वह काबिले तारीफ है इसके लिए कुछ प्रयास भी किये जा रहे रहे है इन्ही प्रयासों के कुछ समाचार विभन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए।
आइये मां गंगा की अविरलता ,स्वच्छता,पवित्रता तथा उसके किनारे बसे नगरों की तरफ जो ध्यान गया है उसी से सम्बन्धित खबरों पर नजर डाले।




प्रकाशित समाचार "हिन्दुस्तान" हिन्दी समाचार पत्र
23अक्टूबर2010









प्रकाशित समाचार ,राष्टीय सहारा,28 अक्टूबर 2010













प्रकाशित समाचार,दैनिक जागरण,28 अक्टूबर 2010









दैनिक जागरण,27 अक्टूबर 2010












दैनिक जागरण 25,अक्टूबर 2010








दैनिक जागरण ,17 नवम्बर 2010

Wednesday, October 6, 2010

भड़ास blog: प्रदेश में हिमनद प्राधिकरण का होगा गठन

प्रदेश में हिमनद प्राधिकरण का होगा गठन

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Sunday, October 3, 2010

सुरसरि i

सुरसरि

गंगा का एक नाम ’सुरसरि’ है. कहते हैं कि गंगा स्वर्ग की नदी है. श्रेष्ठ पुरुषों की परम्परा ने तप किया, तब गंगा ने धरती पर आकर बहना स्वीकारा.
इस स्वीकार के पृष्ठ-भूमि में उन श्रेष्ठ मानवों का तप जुङा है. तप के पीछे निश्चित प्रयोजन था. प्रयोजन धर्मसम्मत,न्यायप्रेरित और सत्यस्पर्शी हो तो पूरी सृष्टि उसे सफ़ल बनाने को उत्सुक होती है. राजा सगर का प्रयोजन इन कसौटियों पर सही है.
शाप-दग्ध मानवों को शान्ति मिले, इस दिव्य प्रयोजन से राजाने गंगा को धरती पर उतारने की कामना की.
राजा अर्थात तत्कालीन समाज का श्रेष्ठ्तम पुरुष. स्वर्ग अर्थात सुख-शान्ति का आलय.
देवता अर्थात जो सिर्फ़ देना ही जानते हैं, या जो कम लेकर अधिक देते हैं.
परम्परा में देवों की छवि मानवाकार है. (राक्षसों के सींग-लम्बे दाँत आदि प्रतीकात्मक हैं, अन्यथा राक्षस भी मानवाकार ही हैं. प्रतीक वत्ति-सूचक हैं)
देव अर्थात दिव्य मानव. जागृत मानव.
स्पष्ट हुआ कि इस सृष्टि की श्रेष्ठ्तम कृति मानव है. परमाणु विकास की अन्तिम कङी है मानव-देह.sahiasha.com

Tuesday, September 21, 2010

क्रोधित है मां.........................!

उफान में गंगा
गंगा के किनारे बस्तियां हई जलमग्न 

गंगा के प्रवाह में बह गयी शिव की मुर्ति 

गंगा के करीब रहने वाले सकते में है आश्चर्य में है उनकी मां गंगा क्यों कितने उफान पर है आज अपने साथ सब कुछ समेट लेना चाहती है गंगा उफन पडी लोगो की जिन्दगी रूक गयी पिछले शनिवार रात तेज बारिश के बाद से ही गंगा के उफान ने बाढ का रूप ले लिया रात को ही लोगो को अपना घर छोड सुरक्षित जगहो पर शरण ली जिनके रिश्तेदार थे वह वहो गये जिनके नही उनके लिए धर्मशालाये खुल दी गयी रविवार तक डर की स्थति बनी रही क्योंके गंगा अपने पूरे विकराल रूप में थी मुनि की रेती ,लक्ष्मणझूला ,स्वर्गआश्रम व शयामपुर के कई  इलाको में गंगा के पानी ने भारी तबाही मचायी वह उफनती हई सबकुछ अपने वेग में समाना चाहती थी गंगा के यह रौद्र रूप देख सभी सकते में है ।  तीन चार दिन से ऋषिकेश के लोगो की सासें मानो अटक सी गयी गंगा का पानी उसके निकटवर्ती  रहने वालो पर मानो  कहर बन कर टूटा है उत्तराखण्ड में हो रही लगातार बारिश ने यहां के लोगो को दहशत से भर दिया उस पर बराबर यह डर भी बना रहा के यह जलप्रलय अब कौन सा रूप ले लेगी सभी डरे सहमे से रहे  उस पर टिहरी बांध से पानी छोडने की खबरों ने तीर्थ नगरी के लोगो को पूरी तरह आने वाले समय के इन्तजार व खौफ  की गिरफत में रखा  जलस्तर में भारी वृद्वि की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने भी अलर्ट जारी कर दिया हालाकि टिहरी बांध छोडे जाने वाले पानी से यहां कई असर नही पडा  पर अभी भी गंगा  नदी अपने खतरे के निशान से उपर है । तीर्थ नगरी को कल से बारिश से राहत मिली आज सूर्य देव ने दर्शन दिये वरना तो बीते दिन इस तरह बीते जिसको बयान नही कर सकते राज्य में स्कूलो की छुटटी कर दी गयी । गंगा के सभी घाट पूरी तरह डूब चुके थे किनारे बसी बस्तिया पानी में डूब गयी थी ।
सोमवार को जब बारिश बन्द हई लोगो ने अपने घरो का रूख किया पर ,यह क्या ? जिन्दगी भर जो जमा किया वह तो पल भर में तबाह हो गया 
जिन घाटो पर आरती व आध्यात्म की धारा बहती थी उन घाटों पर मां गंगा का जल पूरे में अपना साम्राज्य बनाये हुए था मानो यह कहता हुआ हे पापियों अब तुम मेरे करीब रहने के मेरे जल को छुने के योगय नही रहे अब चेतो अपने कर्मो में सुधार करो नही तो मेरे जल से तुम सभी जलमग्न हो जाओगे  गंगा के किनारे रहने वाले लोगो को अपनी मां के अत्यंत क्रोध का सामना करना पडा हो भी क्यो न गंगा के करीब जो तीर्थ नगरी में घटता है उसे तो मां रूष्ट होगी ही न उस जो लोग यह समझते है कितन भी पाप कर लो गंगा में स्नान करके सब धुल जायेगे वह नही जानते गंगा की शक्ति असीम है वह पापनाशिनी तो है ही जीवनदायिनी भी है पर जब वह उफन पडती है सिर्फ जीवन से ही मुक्त कर देती है......................!








आज जब सूर्यदेव आये व गंगा का उफान कुछ कम हुआ तो  ने तीर्थ नगरी के लोगो के चेहरे पर.......................................................................      
                                                                                            मुस्कान ला दी अब जिन्दगी शायद अपने राह पर चल पडेगी............... । 










Wednesday, September 8, 2010

उफान पर है गंगा.......

इस मानसुन सावन पूरा बरसने के बाद भी मेघ पूरी भादों बरस रहे है तीर्थ नगरी में लगातार हो रही वर्षा से गंगा नदी में जलस्तर खतरे को पार कर गया गंगा के किनारे के इलाको में पानी भर गया है चद्रेशवर नगर ,चन्द्रभागा ,त्रिवेणी घाट ,शीशमझाडी,स्वर्गाश्रम ,रामझूला गंगा से सटे क्षेत्रों मे पानी भर चुका था वुधवार तक ।आज बारिश सुबह तक होती रही जिसमें अब कुछ राहत मिली है लेकिन बारिश जारी रही तो लोगो को बाढ की आशंका को देखते हुए चौकन्ना रहने की आवश्यकता है।
कल शाम जब बारिश रूकी तो लोगो ने हमेशा की तरह गंगा दर्शन का रूख किया पर यह क्या त्रिवेणी घाट तो गंगा के पानी में डूब चुका था पानी उपर तक आ चुका था गंगा का जल भी शायद पूरी जगह आना चाहता है गंगा अपनी उपस्थिति का अहसास करवा रही थी जो लोग यह मान कर बैठे है यह सिर्फ पाप धोने के लिए है तो उन्हे यह भी समझना होगा गंगा केवल लोगो के पाप ही नही धोती वरन् उन्हे अपने साथ बहा भी ले जाती है आज गंगा अपने पूरे उफान पर है शायद अभी वह लोगो को अपनी ताकत का अहसास करवाना चाहती जो उसे अभी समझ नही 
सके ................।


गंगा तू कल्याणमयी तू शक्तिशाली है
वैभव तुम्हारा अतुलनीय है 
नही है शब्द पास मेरे 
कैसे मै तेरा बखान करूँ
जानती हूं मै मूढ हूं
पर तूझसे बहुत प्रेम करती हूं
मै अपने भाग्य पर क्यू न इठलाउ
क्या तुम्हे सब देख पाते है 
जन्म लेते है, पर जब विदा होते है
सिर्फ तेरे जल की बुद से तारण पाते है
तू विश्व पालनी है तूझ पर मै नित नतमस्तक हूं
जीवन शेष तूझ दर्शन पाउ
यह एक आस न टूटने देना 
मां के चरणों स्वर्ग मिला 
अब क्या मै तुमसे पाउ
बाल मन कौतुक लिए
जब भी तूझा देखा करता 
ममता की प्यास को तूने ही बुझाया
छुने को व्याकुल है तेरे जल की बूदे 
मां गंगा हम अपनी दृष्टि रखना 
तेरे करीब जो धरा है
उसमे जीवन का अर्थ भरा 
इस जीवन को सफल करना
अपनी दया हम पर सदा रखना..................। 

ज्योतिष की सीमा

पहली बार ज्योतिष से परिचय हुआ.
होरा, संहिता और सिद्धान्त से लेकर
दशा, महादशा, अन्तर्दशा और
विंशोत्तर दशा तक
सारे शब्द नये थे मेरे लिये.
हिन्दुत्व पर मानपूर्वक
हजारों गीत रच देने वाला यह साधक
स्वीकार करता है
कि उसे पंचांग देखना तक न आता था.
वेदों पर अधिकार पूर्वक ट्टिपणी करके भी
वेदांग के इस प्रथम और
प्रमुख अंग से परिचय तक न था मेरा.
पूरी देहयात्रा
अन्यान्य दर्शनों का सार ढूंढता रहा
्मगर अपने हाथ में बनी
रेखाओं से परिचय न पा सका.
वसुधैव कुटुम्बकम पर भाषण कर लेता
मगर अपने घर के वास्तु से अनजान था.
धन्यवाद डा. मनोज श्रीमाल
आपने यह सब बताया.
दस दिनों के लिये निर्धारित पाठ्यक्रम को
संस्थान-अधिपति के देहावसान वश
आठ दिनों में पूरा कराया.

ज्योतिष से परिचय पाकर
इस सिद्धान्त की पुष्टि हुई

कि मानव का सम्बन्ध
परमाणु से अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड तक है.
जो है, उसे जाना जा सकता है.
मानव सब कुछ जान सकता है,
क्योंकि मानव सब कुछ जानना चाहता ही है.
कि सारी सृष्टि नियमतः है, नियमपूर्वक चलती है.
और नियमतः
मानव की हर न्यायपूर्ण चाहत के
पूरा होने की व्यवस्था है.
और ज्ञान प्राप्त करने की चाहत
पूर्णतः न्यायपूर्ण है, नैसर्गिक है.
जो कुछ मेरे पूर्वज जान गये, वह मैं जानता ही हूँ.
क्योंकि मैं ही पाराशर और भृगु हूँ
मैं ही मिहिर और कीरो.
क्यों कि मैं निरन्तर है.
मैं कहीं आता जाता नहीं.
देह और मैं का योग है मानव.
नाम-रूप इस योग का है.
योग का वियोग निश्चित है.
वियोग हुआ तो नाम-रूप बदल जाता है.
योग-वियोग देह का होता है,
मैं शरीर को वैसे ही छोङ देता है
वैसे ही जैसे फ़टा वस्त्र छोङ दिया जाता है.
वासांसि जीर्नानि यथा विहाय,
नवानि ग्रह्णाति नरोपराणि.
तथा शारीराणि विहाय जीर्णान
नृन्यानि संयाति नवानि देही.


महाप्रज्ञ को अमर नहीं किया जा सकता.
नाम-रूप को
न लौटाया जा सकता है
न उससे जुङी स्मृतियाँ चिरकाल चलती हैं
निरन्तर बदलती सृष्टि में
भौतिक-रासायनिक वस्तुओं में
परिवर्तन होता रहता है.
मगर

यह जो मैं है, कभी मरता नहीं.
महाप्रज्ञ मैं रूपमें निरन्तर है.
यह भाषा निर्मित भ्रम है
जो मैं है को मैं हूँ बनाता है.२
अहं ब्रह्मास्मि की जगह
अहं ब्रह्मास्ति होता,
तो तत्वमसि या सर्वंखल्विदं ब्रह्म की
जरूरत ही ना थी.
और ना ही ज्योतिष-विज्ञान की.
मैं है को मैं हूँ कहते ही
ज्योतिष की भूमिका आरम्भ होती है.
अर्थात--भौतिक-रासायनिक क्रियाओं तक है
ज्योतिष का क्षेत्र. बस!

९ ग्रह, १२ राशि और २७ नक्षत्रों की
परस्पर गतियों सहित
उनके परस्पर प्रभाव और
मानव पर पङने वाले प्रभावों का
आकलन ही फ़लादेश है.
सारा प्रभाव देह और मन-वृत्ति तक है.
चित्त पर आते-आते
ज्योतिष का प्रभाव आधा रह जाता है.
चित्त की दो भूमिकायें- चित्रण और चिन्तन.
चित्रण यदि ज्योतिष से प्रभावित है
अर्थात देह भाव से प्रभावित है
तभी सुख-दुख की गणना है.
चिन्तन बुद्धि से प्रभावित
अतः वहाँ ज्योतिष अप्रभावित रहता है.
चिन्तन के स्तर पर दुःख का अस्तित्व नहीं.
वहाँ मैं का साम्राज्य है
वहाँ जीवन है
और जीवन कालातीत है.
कालजयी ही नहीं- कालातीत!
काल को जीतना नहीं है
काल को जानना है
जानते ही जीत लिया जाता है काल.
चिन्तक थे सभी ज्योतिषविद.
काल के ऊपर उठकर
काल-पुरुष को देखा- जाना
इसीलिये ज्योतिष वेदांग का सिर है
इसी अर्थ में वेद परमात्मा है.
ग्रन्थ सिर्फ़ इशारा करता है.
शब्द ब्रह्म बने- तभी अक्षर को जान पाता है
अन्यथा ग्रन्थों में भटकाता है.
शब्द यदि अक्षर को जानने में सहयोगी बने
शब्द यदि ब्रह्म तक ना पहुँचा सके
तो भ्रम फ़ैलाता है…
ग्रन्थों में भटकाता है
मारता और पुनः जिलाता है
ज्योतिष की
जटिल गणनाओं में उलझाता है.

इसी देह-यात्रा में
मानव समग्र को जान सकता है.
देह चलाने का प्रयोजन भी यही है.
ज्योतिष का प्रयोजन
दुख के पार पहुँचाना है
बीमारी ठीक करना नहीं!
सारे उपचार व्यापार हैं
हर व्यापार परिवार भाव को काटता है.
परिवार भाव ही भारत, व्यापार भाव इण्डिया-पश्चिम.
भारत ज्ञानारधना का नाम है, सीमायें नहीं.-
sadhak ummedsingh baid

Sunday, August 8, 2010

बढता ही जा रहा है आस्था का ज्वार........

मां गंगा के प्रति आस्था किस कदर है यह तब पता चलता है करोड़ों की संख्या में गंगा  से जुडे आयोजन हो चाहे विगत दिनो सपंन्न हुआ महाकुम्भ हो या अन्य स्नान पर्व लोगो का हजुम करोडों की संख्या पार कर जाता है । इसी तरह जब से सावन मास प्रारम्भ हुआ कांवड लेकर आने वालो की संख्या भी करोडो को पार कर गयी जब से उत्तरांचल  का गठन हुआ कांवडियों की सख्या पहली बार इतनी ज्यादा है की जितनी उम्मीद थी उससे कही अधिक संख्या में कांवडिये गंगा जल लेने गंगा के करीब आये है ।इस बार कांवडियों की सख्या खुद में एक रिकार्ड है जिससे प्रशासन के साथ साथ स्थानीय लोग भी अचभित है ।
  लगता है गंगा के प्रति जो चेतना आयी है यह भी उसका एक हिस्सा हो सबसे खास बात तो यह भी है कि कुछ कांवडियों ने तो गंगा व गंगा जल की सुरक्षा को लेकर चिन्ता भी जतायी है कि जब गंगा ही नही होगी तो गंगा जल कहां से मिलेगा इससे यह भी पता चलता है अन्य स्थानो पर भी हमारी सांस्कृतिक धरोहर मां गंगा के प्रति लोगो मे आस्था है जिस वह उनके जीवन का प्राणवान हिस्सा है उसकी दुर्दशा पर सभी का ध्यान गया गया है।



अहम बात यह भी है जिस तरह गंगा के इन तीर्थो में धार्मिक आयोजनो पर्वो स्नानों के के लिए जो जन सैलाब करोड़ों की संख्या में उमड पडता है जिसमें लोगो की  जाने भी चली जाती है दुर्घटनाये  भी होती है  उनके लिए यहां की सरकार कितनी चिन्तत है उनकी सुरक्षा उनकी तकलीफों के क्या कुछ इन्तजाम किये जाते है या सिर्फ उन्हे नियंत्रित करने में ही प्रशासन की उर्जा खर्च करता है ।
जिस तरह लोगो की भीड उमडती है फिर उसके बाद जो गंन्दगी व अव्यवस्था फैल जाती उससे स्थानीय जन में आक्रोश की स्थिति पैदा होती है यदि इसी तरह धार्मिक आस्था में बढोतरी होगी तो आने वाले समय के लिए उत्तराखण्ड सरकार क्या इनसे आसानी से निबट पायेगी ।गंगा के किनारें इन इन धार्मिक तीर्थ नगरियों में क्या पर्याप्त व्यवस्था होती है की वह इतने लोगो को असानी से जगह दे सके शायद नही तो अभी से सरकार को सचेत हो जाना चाहिए वह इस गंभीर मुद्दे पर अपनी कमर कस लेनी चाहिए तभी वह अपने प्रदेश को खुशहाली व विकास की ओर ले जा सकती है क्यो की शायद अब धार्मिक पर्यटन तथा आस्था की नयी शुरूवात हो चुकी है जिसमे आने वाले जन सैलाब में बढोतरी हो कर रहेगी...........

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यहां वीरभद्र प्रकट हुआ था ----- वीरभद्रेश्वर मंदिर (ऋषिकेश)

पिछली पोस्ट में मैने ऋषिकेश के वीरभ्रद्र क्षेत्र का इतिहास बताया था पर इस पोस्ट में यह बता दू कि क्यो इस क्षेत्र को वीरभद्र के नाम से जाना ...