Tuesday, December 7, 2010

प्रश्न बहुत है ?

बनारस में गंगा आरती के दौरान आतकियों ने बम विस्फोट कर बहुत ही घृटित कार्य किया है उन्हे तो आतंक फैलाना ही है क्या इस तरह के हमारे धार्मिक स्थलों व श्रद्वा की जगहो पर विस्फोट कर यह अपने मकसद में कामयाब हो पायेगे ?शायद कभी नही........... मासूम लोग जो गंगा की आरती कर रहे थे उन्हे जख्मी करे। कोई भी आंतकी हमारी श्रद्वा व विशवास को कभी नही डगमगा सकता । मां गंगा के करीब जो अध्यात्म व शान्ति मिलती है उसे कोई भी नही खत्म कर सकता ।
लेकिन यह भी विचारणीय है क्या हम यू ही मासूमो को मौत के करीब देखते रहेगे क्या हमें हर पल चौकन्ना रहने की आवश्यकता नही है जिस तरह आतंकी अपने कारनामों करते रहेगे हम विवश क्यों होते है? कमी कहां है ? हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है विदेशियों की सुरक्षा का क्या जो हमारी धार्मिक गतिविधियों का हिस्सा बनते है फिर उनकी जान के लाले पड जाते है ? कब तक .......? बस कुछ समय के लिए चौकन्ने होते है फिर वही ढाक के तीन पात । 
यह आतकी भीड -भाड वाली जगहो को ही अपना निशाना बनाते है अब गंगा आरती की पावन जगह को अपना निशाना बनाया है ।इतिहास गवाह है हमारे धार्मिक स्थलो पर हमेशा से ही हमले होते रहे है फिर भी हम इनकी सुरक्षा के प्रति कितने सजग है ? प्रश्न बहुत है पर जवाब नदारद है । भले ही प्रधानमंत्री यह कहे कि "यह शैतानी आतकी ताकतों से लडने के हमारे प्रण को कमजोर करने का प्रयास है जिसमें आंतकी सफल नही होगे ।" किसी व्यक्ति की सुरक्षा भी  अहम  चाहे वह देशी हो या विदेशी ।अकारण ही वह मौत के मुंह में क्यों जाये ।
यह बहुत ही शर्मनाक है जो लोग अपनी श्रद्वा व विशवास अपना प्यार मां गंगा को देते है उसकी आरती उतारतें है उन्हे इस तरह की घटनाओ से रूबरू होना पडे। अब चुप रहने का समय नही ..........। 

Sunday, November 21, 2010

आइये करे गंगा स्नान........


कल यानि 21नवम्बर 2010 को गंगा स्नान  का पर्व बडे ही धुमधाम से मनाया गया कितने ही लोगो ने दूर-दूर  से आकर गंगा में डूबकी लगायी ।सिख धर्म के लोग इसे गुरू पर्व के रूप में मनाते है इसी दिन गुरू नानक देव का जन्म हुआ था । हिन्दु धर्म में पूर्णिमा व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है कार्तिक की इस पूर्णिमा में गंगा स्नान का बहुत ही महत्व है । मार्गशीर्ष ,कार्तिक ,माघ, वैशाख आदि महीने गंगा स्नान के लिए उत्तम है पर कार्तिक स्नान का विशेष फल है कवि
भारतेन्दु ने इसकी महत्ता कुछ इस तरह बतायी है-  माधव कार्तिक माघ की पूनो परम सुनीत ।
                                                                                  ता दिन गंगा न्हाइये करि केशव सौ प्रति।।
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूणिमा के नाम से जानते  है  इस दिन भोलेनाथ ने त्रिपूरासुर नाम के महाभयानक असूर का अंत किया था तथा त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए यह भी मान्यता है कि इसी दिन कृतिका  में शिव शंकर के दर्शन करने से सात  जन्मों  तक व्यक्ति ज्ञानी व धनवान होता है  इस गंगा में स्नान का वर्ष के स्नान का फल मिलता है।  कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो "पद्म योग" बनता है  जिसमें गंगा स्नान का फल पुष्कर से भी अधिक होता है ।
 गंगा में स्नान का कार्तिक की पूर्णिमा के दिन कितना महत्व है यह तो बता ही दिया इस दान का भी बहुत महत्व होता है । आज गंगा स्नान के मायने क्या है कितने ही लोगो के लिए यह छुटटी का दिन पिकनिक के तौर पर मना लेने जैसा ही होता है हल्की ठंड में गंगा नहाने के बाद खिचडी गर्मागर्म खिचडी खाने का आनंद ही कुछ अलग है।
 गंगा की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए स्कंद पुराण में वर्णित है की इसमें तेरह तरह के कर्म नही करने चाहिए शौच , कुल्ला ,जुठा फेकना ,मलमूत्र त्याग करना ,तेल लगाना,निन्दा करना ,प्रतिग्रह,रति,दूसरे तीर्थ की इच्छा तथा दूसरे तीर्थ की प्रशंसा,वस्त्र धोना ,उपद्रव आदि कर्म नही करनें चाहिए।  क्या यह सब कर पाते है वह लोग जो गंगा  स्नान को आते है कि उन्हे गंगा हमारे धर्म में वर्णित समस्त पुण्य मिलेगा। नजर तो कुछ ओर ही आता है कोई  गंगा के जल में बैठ की धुम्रपान करता है, नहाने के बाद तेल लगाते। बैठ कर निन्दा करते है। उपद्रव करते है कुछ लोग इस ताक में रहते है कि जैसे ही कोई गंगा में नहाये उसका समान ले उडे अपने समान की प्रति सचेत रहे ।
उन्हे यह नही पता कि कि यह कोई  समुद्र का किनारा नही बल्कि गंगा नदी का तट जो एक देवनदी है यहां इस तरह के कार्य उन्हे पुण्य नही पाप की तरफ ले जाते है ।













गंगा के करीब कुछ बैठे थे अपने रोजगार के लिए वैसे
 यह हमेशा ही रहते है पर स्नान पर्वो पर
इनकी संख्या कुछ बढ जाती है।

























दान का जो महत्व है इसी लिए दान पाने के इच्छुक भी आते है।


 बैठे है, कतार लगाये वैसे भले ही कई कुछ न दे पर आज के दिन तो काफी कुछ मिल ही जाता है गंगा किस तरह सबका पालन पोषण करती है लेकिन हम क्या करते है क्या इसकी पवित्रता का पूरा ध्यान रखते है।






















यह सभी दृश्य है त्रिवेणी घाट ऋषिकेश के, यही पर गंगा के किनारे बना है आस्था पथ जो शिमला के माल रोड की नजारा दिखाता है। गंगा के किनारे का हाल जानने के लिए इन्तजार किजिए अगली पोस्ट का। फिलहाल के लिए बस इतना ही कि मौजुदा समय में बदल चुका है गंगा स्नान का नजरिया।


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Thursday, October 28, 2010

मां गंगा को बचाने की तैयारियां......................।


देवनदी गंगा को बचाने के लिए उसके लाडलों में जो चेतना आयी है वह काबिले तारीफ है इसके लिए कुछ प्रयास भी किये जा रहे रहे है इन्ही प्रयासों के कुछ समाचार विभन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए।
आइये मां गंगा की अविरलता ,स्वच्छता,पवित्रता तथा उसके किनारे बसे नगरों की तरफ जो ध्यान गया है उसी से सम्बन्धित खबरों पर नजर डाले।




प्रकाशित समाचार "हिन्दुस्तान" हिन्दी समाचार पत्र
23अक्टूबर2010









प्रकाशित समाचार ,राष्टीय सहारा,28 अक्टूबर 2010













प्रकाशित समाचार,दैनिक जागरण,28 अक्टूबर 2010









दैनिक जागरण,27 अक्टूबर 2010












दैनिक जागरण 25,अक्टूबर 2010








दैनिक जागरण ,17 नवम्बर 2010

Wednesday, October 6, 2010

भड़ास blog: प्रदेश में हिमनद प्राधिकरण का होगा गठन

प्रदेश में हिमनद प्राधिकरण का होगा गठन

पुरी रिर्पोट पढने के लिए शीर्षक पर क्लिक करे।

Sunday, October 3, 2010

सुरसरि i

सुरसरि

गंगा का एक नाम ’सुरसरि’ है. कहते हैं कि गंगा स्वर्ग की नदी है. श्रेष्ठ पुरुषों की परम्परा ने तप किया, तब गंगा ने धरती पर आकर बहना स्वीकारा.
इस स्वीकार के पृष्ठ-भूमि में उन श्रेष्ठ मानवों का तप जुङा है. तप के पीछे निश्चित प्रयोजन था. प्रयोजन धर्मसम्मत,न्यायप्रेरित और सत्यस्पर्शी हो तो पूरी सृष्टि उसे सफ़ल बनाने को उत्सुक होती है. राजा सगर का प्रयोजन इन कसौटियों पर सही है.
शाप-दग्ध मानवों को शान्ति मिले, इस दिव्य प्रयोजन से राजाने गंगा को धरती पर उतारने की कामना की.
राजा अर्थात तत्कालीन समाज का श्रेष्ठ्तम पुरुष. स्वर्ग अर्थात सुख-शान्ति का आलय.
देवता अर्थात जो सिर्फ़ देना ही जानते हैं, या जो कम लेकर अधिक देते हैं.
परम्परा में देवों की छवि मानवाकार है. (राक्षसों के सींग-लम्बे दाँत आदि प्रतीकात्मक हैं, अन्यथा राक्षस भी मानवाकार ही हैं. प्रतीक वत्ति-सूचक हैं)
देव अर्थात दिव्य मानव. जागृत मानव.
स्पष्ट हुआ कि इस सृष्टि की श्रेष्ठ्तम कृति मानव है. परमाणु विकास की अन्तिम कङी है मानव-देह.sahiasha.com

Tuesday, September 21, 2010

क्रोधित है मां.........................!

उफान में गंगा
गंगा के किनारे बस्तियां हई जलमग्न 

गंगा के प्रवाह में बह गयी शिव की मुर्ति 

गंगा के करीब रहने वाले सकते में है आश्चर्य में है उनकी मां गंगा क्यों कितने उफान पर है आज अपने साथ सब कुछ समेट लेना चाहती है गंगा उफन पडी लोगो की जिन्दगी रूक गयी पिछले शनिवार रात तेज बारिश के बाद से ही गंगा के उफान ने बाढ का रूप ले लिया रात को ही लोगो को अपना घर छोड सुरक्षित जगहो पर शरण ली जिनके रिश्तेदार थे वह वहो गये जिनके नही उनके लिए धर्मशालाये खुल दी गयी रविवार तक डर की स्थति बनी रही क्योंके गंगा अपने पूरे विकराल रूप में थी मुनि की रेती ,लक्ष्मणझूला ,स्वर्गआश्रम व शयामपुर के कई  इलाको में गंगा के पानी ने भारी तबाही मचायी वह उफनती हई सबकुछ अपने वेग में समाना चाहती थी गंगा के यह रौद्र रूप देख सभी सकते में है ।  तीन चार दिन से ऋषिकेश के लोगो की सासें मानो अटक सी गयी गंगा का पानी उसके निकटवर्ती  रहने वालो पर मानो  कहर बन कर टूटा है उत्तराखण्ड में हो रही लगातार बारिश ने यहां के लोगो को दहशत से भर दिया उस पर बराबर यह डर भी बना रहा के यह जलप्रलय अब कौन सा रूप ले लेगी सभी डरे सहमे से रहे  उस पर टिहरी बांध से पानी छोडने की खबरों ने तीर्थ नगरी के लोगो को पूरी तरह आने वाले समय के इन्तजार व खौफ  की गिरफत में रखा  जलस्तर में भारी वृद्वि की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने भी अलर्ट जारी कर दिया हालाकि टिहरी बांध छोडे जाने वाले पानी से यहां कई असर नही पडा  पर अभी भी गंगा  नदी अपने खतरे के निशान से उपर है । तीर्थ नगरी को कल से बारिश से राहत मिली आज सूर्य देव ने दर्शन दिये वरना तो बीते दिन इस तरह बीते जिसको बयान नही कर सकते राज्य में स्कूलो की छुटटी कर दी गयी । गंगा के सभी घाट पूरी तरह डूब चुके थे किनारे बसी बस्तिया पानी में डूब गयी थी ।
सोमवार को जब बारिश बन्द हई लोगो ने अपने घरो का रूख किया पर ,यह क्या ? जिन्दगी भर जो जमा किया वह तो पल भर में तबाह हो गया 
जिन घाटो पर आरती व आध्यात्म की धारा बहती थी उन घाटों पर मां गंगा का जल पूरे में अपना साम्राज्य बनाये हुए था मानो यह कहता हुआ हे पापियों अब तुम मेरे करीब रहने के मेरे जल को छुने के योगय नही रहे अब चेतो अपने कर्मो में सुधार करो नही तो मेरे जल से तुम सभी जलमग्न हो जाओगे  गंगा के किनारे रहने वाले लोगो को अपनी मां के अत्यंत क्रोध का सामना करना पडा हो भी क्यो न गंगा के करीब जो तीर्थ नगरी में घटता है उसे तो मां रूष्ट होगी ही न उस जो लोग यह समझते है कितन भी पाप कर लो गंगा में स्नान करके सब धुल जायेगे वह नही जानते गंगा की शक्ति असीम है वह पापनाशिनी तो है ही जीवनदायिनी भी है पर जब वह उफन पडती है सिर्फ जीवन से ही मुक्त कर देती है......................!








आज जब सूर्यदेव आये व गंगा का उफान कुछ कम हुआ तो  ने तीर्थ नगरी के लोगो के चेहरे पर.......................................................................      
                                                                                            मुस्कान ला दी अब जिन्दगी शायद अपने राह पर चल पडेगी............... । 










Wednesday, September 8, 2010

उफान पर है गंगा.......

इस मानसुन सावन पूरा बरसने के बाद भी मेघ पूरी भादों बरस रहे है तीर्थ नगरी में लगातार हो रही वर्षा से गंगा नदी में जलस्तर खतरे को पार कर गया गंगा के किनारे के इलाको में पानी भर गया है चद्रेशवर नगर ,चन्द्रभागा ,त्रिवेणी घाट ,शीशमझाडी,स्वर्गाश्रम ,रामझूला गंगा से सटे क्षेत्रों मे पानी भर चुका था वुधवार तक ।आज बारिश सुबह तक होती रही जिसमें अब कुछ राहत मिली है लेकिन बारिश जारी रही तो लोगो को बाढ की आशंका को देखते हुए चौकन्ना रहने की आवश्यकता है।
कल शाम जब बारिश रूकी तो लोगो ने हमेशा की तरह गंगा दर्शन का रूख किया पर यह क्या त्रिवेणी घाट तो गंगा के पानी में डूब चुका था पानी उपर तक आ चुका था गंगा का जल भी शायद पूरी जगह आना चाहता है गंगा अपनी उपस्थिति का अहसास करवा रही थी जो लोग यह मान कर बैठे है यह सिर्फ पाप धोने के लिए है तो उन्हे यह भी समझना होगा गंगा केवल लोगो के पाप ही नही धोती वरन् उन्हे अपने साथ बहा भी ले जाती है आज गंगा अपने पूरे उफान पर है शायद अभी वह लोगो को अपनी ताकत का अहसास करवाना चाहती जो उसे अभी समझ नही 
सके ................।


गंगा तू कल्याणमयी तू शक्तिशाली है
वैभव तुम्हारा अतुलनीय है 
नही है शब्द पास मेरे 
कैसे मै तेरा बखान करूँ
जानती हूं मै मूढ हूं
पर तूझसे बहुत प्रेम करती हूं
मै अपने भाग्य पर क्यू न इठलाउ
क्या तुम्हे सब देख पाते है 
जन्म लेते है, पर जब विदा होते है
सिर्फ तेरे जल की बुद से तारण पाते है
तू विश्व पालनी है तूझ पर मै नित नतमस्तक हूं
जीवन शेष तूझ दर्शन पाउ
यह एक आस न टूटने देना 
मां के चरणों स्वर्ग मिला 
अब क्या मै तुमसे पाउ
बाल मन कौतुक लिए
जब भी तूझा देखा करता 
ममता की प्यास को तूने ही बुझाया
छुने को व्याकुल है तेरे जल की बूदे 
मां गंगा हम अपनी दृष्टि रखना 
तेरे करीब जो धरा है
उसमे जीवन का अर्थ भरा 
इस जीवन को सफल करना
अपनी दया हम पर सदा रखना..................। 

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यहां वीरभद्र प्रकट हुआ था ----- वीरभद्रेश्वर मंदिर (ऋषिकेश)

पिछली पोस्ट में मैने ऋषिकेश के वीरभ्रद्र क्षेत्र का इतिहास बताया था पर इस पोस्ट में यह बता दू कि क्यो इस क्षेत्र को वीरभद्र के नाम से जाना ...