Tuesday, February 15, 2011

भगवान राम का विश्राम स्थल.....रघुनाथ मंदिर, ऋषिकेश

पिछली पोस्ट में  आपने  त्रिवेणी घाट ऋषिकेश स्थित रघुनाथ मंदिर एवं ......................ऋषिकुण्ड  के संबन्ध में उसकी ऎतिहासकिता व पौराणिकता के बारे में पढा।----अब आगें ...रघुनाथ मंदिर मध्य हिमाद्री शैली में बना हुआ है इस शैली से मिलते जुलते लक्षण इसमें विघमान है ।शीर्ष भुषा में आमलक और कलश का क्रम तथा सरंचना आच्छादन विहीन ओर स्थानीय प्रस्तर से निर्मित है । मंदिर आकार में मध्य एवं भुषा में नितांत सादे है । दो गुबंदो में विभक्त जिसमें मुख्य गुबंद द्वितीय गुंबदो से उंचा  है तीन तरफ मूर्तियों को उकेरा गया है जबकि द्वितीय गुंबद सादा है ।छत्र धातु के बने है । प्रथम में शंकुधारी ,द्वितीय में त्रिशुल छत्र है ।भवन प्रस्तर से निर्मित है मजबुत पाषाण से बनी चौखट विशेष रूप से उल्लेख्ननीय है । मंदिर के अर्न्तभाग में अलंकरण  के स्थल है ।प्रतिमा प्रतिष्ठा के बिना मंदिर निष्प्राण माना जाता है 
,प्रतिमा द्रव्य की दृष्टि से गढवाल की संपुर्ण मूर्तियां चार  

प्रकार की प्राप्त होती है । पाषाण मूर्तियां,धातु मूर्तियां ,मृणमृर्तियां एवं दारू मूर्तियां । कला की उत्कृष्टता तथा संख्या दोनो में पाषाण मूर्तियां सर्वोपरि है । रघुनाथ मंदिर में स्थापित राम की मुख्यमूर्ति के अलावा ऋषिकेश  भगवान ,सीता दुर्गा एवं गंगा जी की मूर्तियां है ।रघुनाथ की मूर्ति शयामवर्णी ,कीर्तिमुखी ,भरतमंदिर की मूर्ति की भांति  है । जिसका उल्लेख स्कन्द पुराण में मिलता है । समस्त मूर्तिया उत्तर दक्षिण समरूप एवं मंदिर हिमाद्री शैली में निर्मित है ।समीप ही कई पुरानी प्रतिमायें भी है पर उपेक्षा के कारण इनका  अस्तित्व संकट में है ।
यह प्राचीन मंदिर हमारी धरोहर है  इनके
बारे में आने वाली पीढी को भी पता होना चाहिए । 
मंदिर के जीणोंद्वार के बाद इसे आधुनिक युक्तियों से भले ही सजाया गया हो पर मौलिकता को बरकरार रखा जाये तभी इनकी महत्ता बनी रहती है । विजयादशमी के दिन यहां श्रद्वालुओ की आपार भीड रहती है । रामनवमी व जन्माष्टमी के अवसर पर भी साज सज्जा एवं पूजा को सार्वजनिक रूप से प्रभावशाली ढंग से की जाती है।
आगामी पोस्टों में ऋषिकेश  के अन्य मंदिरों के आरे कुछ ओर जानिये........
till then, keep visiting Ganga ke Kareeb 
A blog which  is dedicated to Ma Ganga 
Sunita

Thursday, February 10, 2011

भगवान राम का विश्राम स्थल ।



ऋषिकेश के प्राचीन पौराणिक  मंदिर ऐतिहासिक युग का प्रतिनिधित्व करते है इसी में रघुनाथ मंदिर भी है गंगा के करीब पर आपने पूर्व की पोस्टों में ऋषिकेश के प्राचीन पौराणिक मंदिरों के बारे में जाना। मंदिर वास्तु शिल्प के इतिहास विवेचन क्रम में यह बात उल्लेखनीय है कि जो वास्तु शिल्प गढवाल में प्रचलित हई वही पूर्व में काली नदी तक कुमांऊ तक मिलती है ।डा0 प्रसन्न कुमार आचार्य ने कहा कि "मंदिर की सीमा एक प्रदर्शनी है ,जो दशको के आर्थिक और नैतिक , निर्माता की संपत्ति ,कलाकारों की भवन निर्माण विषयक कला चातुरी, काष्टकारों मूर्ति शिल्पियों ,चित्रकारों एवं अन्य कारीगरों के श्रम का दिगदर्शन  कराती है उसमें एक सभ्य राष्ट्र के जीवन के उपयुक्त सभी अंग समन्वित रूप से पाये जाते है ।"


तीर्थ नगरी के त्रिवेणी घाट के दायी ओर रघुनाथ मंदिर एंव ऋषि कुण्ड स्थित है जो यहां की प्राचीन धरोंहर में प्रमुख स्थान रखती है । केदारखण्ड में इस स्थान का उल्लेख मिलता है स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में वर्णित कथा के अनुसार जब भगवान राम  रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्ति के पशचात अयोध्या पंहुचे और राजसत्ता संभालनी चाही तो उनके गुरू वशिष्ठ व अन्य महर्षियों ने राजभिषेक से मनाही की और कहा की उन्होने रावण का वध किया था वह बहृम हत्या के दोषी हो गये है क्योकि रावण ब्राहृमण था अब इस दोष का प्रायशचित करना उनका परम कर्तव्य है । इन महर्षियों ने मर्यादा पुरूषोत्तम राम को उत्तराखण्ड में तप करने के लिए कहा क्योकि यह स्थान भगवान केदार अर्थात शिव का निवास स्थान है शिव की तपस्या से ही ब्रहम हत्या के दोष से छुटकारा पा 
सकते है।


 भगवान राम उत्तराखण्ड में आये तप करने रास्तें में उन्होने इस स्थान को अपने विश्राम के लिए चुना यह रघुनाथ मंदिर आज जहां है यही भगवान श्री राम ने विश्राम किया तत्पशचात देवप्रयाग में उन्होंने यज्ञ किया । दुर्गम पहाडियों को पार कर भोलेनाथ की कठोर तपस्या कर ब्रहृम हत्या से मुक्ति प्राप्त की और वर्षो अयोध्या पर शासन किया ।


मंदिर के सटे कुण्ड के सम्बन्ध में भी कथा प्रचलित है जिसके अनुसार इस स्थान पर ऋषि यज्ञ व तप किया करते थे कुब्जाभरत  नामक ऋषि ने भगवान राम से यमुनाजी प्रकट करने का वरदान मांगा तथा यज्ञ कुण्ड में यमुना जी को प्रकट हुई।यह भी मानना हे कि रेवा नाम के ऋषि ने अपने तपोबल से यमुना की धारा को प्रकट किया  । मत है कि यह कुण्ड अत्यन्त प्राचीन है व प्रतिमाह इसका जल बदलता है इस कुण्ड की महत्ता इतनी है कि जो भी सध्या के समय ऋषि कुण्ड पर पुजा अर्चना करता है उसकी मनाकामना पूर्ण होती है वैज्ञानिको ने भी यह माना है कि इसका जल वास्तव में यमुना का ही है । देवालय-प्रतिष्ठान के साथ-साथ वाणी ,कुण्ड ,पुष्कर आदि जलाशयों का निर्माण पौराणिक पूर्व धर्म का प्रधान अंग रहे है।अपराजिता पृच्छा ,मानसोल्लास आदि ग्रंथों में इनके निवेश व लक्षणों पर वर्णन मिलते है । मध्य हिमालयी मन्दिरों के साथ वाणी ,कुण्ड और पुष्करणियां निवेशित की जाती थी । स्थानीय भाषा में इनके लिए "बौ" तथा "कुण्ड" का व्यवहार हुआ है । देवता के नित्य पूजन एवं भक्तों के स्नान के लिये इनका इस्तेमाल होता रहा है ।
अगली पोस्ट में आप रघुनाथ मंदिर के वास्तु शिल्प के बारे में जानने को मिलेगा........... । शेष आगे .......   
a series by Sunita Sharma 
freelancer Journalist........ Rishikesh 

Saturday, December 11, 2010

गंगा के करीब ........ आध्यात्मिकता की तलाश




कहते है  तीर्थो के पवित्र वातावरण में ऋषि-मुनियों के सत्संग से मनुष्य निष्पाप हो जाता है। अर्थवेद के अनुसार बडे-बडे यज्ञो का अनुष्ठान करने वाले जिस मार्ग से जाते है तीर्थ करने वाले भी उसी पवित्र मार्ग से स्वंय जाते है ।
ऋषि केश एक अत्यन्त प्राचीन तीर्थ है इसकी प्राचीनता व  ऐतिहासिकता पर पहले भी प्रकाश डाला चुका है पढिये इसी ब्लाग पर " ऋषिकेश- एक तपस्थली के रूप में "।




ऋषि केश बसअडडे से लगभग 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित है त्रिवेणी घाट ।जिसे इस शहर का मुख्य स्थान या हृदय की सज्ञा दी जाये तो कई अतिशयोक्ति न होगी ।





इस स्थान पर गंगा यमुना तथा सरस्वती का संगम माना जाता है ।कुब्ज नामक ऋषि के तप से प्रसन्न हो कर यमुना नदी ने अपने जल से उन्हे तृप्त किया ।













यहां अवस्थित कुण्ड में यमुना का जल विघमान है ।
 गंगा ,यमुना व सरस्वती के मिलन के कारण इस जगह को त्रिवेणी  जाना जाता है भूमि के नीचे अभी भी सरस्वती का जल का होना माना जाता है ।
ऋषि कुण्ड के समीप ही सूर्यकुण्ड की स्थिति भी मानी गयी है ।


इस घाट का विकास गंगा सभा एंव विडला प्राधिकरण के सहयोग से किया गया है ।
विगत दिनो बरसात की वजह से गंगा नदी में आयी बाढ से इस स्थान को काफी नुकसान भी पहुचा है।
त्रिवेणी घाट इस तीर्थ नगरी का प्रमुख घाट है यहां 
की गंगा आरती देखने  लायक होती है ।
यही घाट पर ही धार्मिक आयोजन होते ही रहते है 
मत्रों का जाप ,भजनो की आवाजे कानो में घुली रहती है। क्या गंगा के करीब सचमुच ही अध्यात्म की 
प्राप्ति होती है ? संसार के क्रिया कलापों से उकताये लोगो क्या सचमुच वह शान्ति मिलती है जिसकी तलाश में वह गंगा के किनारे इन घाटों की शरण लेते है ? गंगा आरती की आलौककिता अनूठी होती है मां गंगा की शरण हर तकलीफ देर होती है जब मै यह पोस्ट लिख ही रही थी उसी बीच बनारस में गंगा आरती के दौरान हुआ बम विस्फोट की खबर दुखदायी थी यह कितना घृणित एंव शर्मनाक है इन्सान किस कदर इन्सानियत खो चुका है कि वह अपने मकसद के लिए श्रद्वा में विलीन लोगो का भी दुश्मन बन गया इनके हौसले बढ चुके है । चाहे जो भी यह लोग अपने मकसद में कभी कामयाब नही हो सकते ।










अपनी पिछली पोस्ट( आइये करे गंगा स्नान..) में मैने जिक्र किया था आस्था पथ यानि मैरीन ड्राइव का जो गंगा किनारे बना खुबसुरत पथ है जहां से मां गंगा की खुबसुरती को निहारा जा सकता है। 


जब से यह मैरीन- ड्राइव बना है तब से लोगो की आवाजाही भी बढी है इस मार्ग से लोगो को गंगा दर्शन का बेहतर लाभ भी मिला चाहे पर्यटक हो या स्थानीय लोगो का जमावडा सभी को  यह स्थल बहुत खुबसुरत लगता है ,इससे एक अलग पहचान मिली है।यहां की सुरक्षा को लेकर भी खासे इन्तजाम अब कर दिये गये है । 


यह पथ है गंगा के किनारे का पावन पथ जिसे आस्था पथ से जानते है पर आस्था के मायने कहां है ।

नयी पीढी क्या इन बातो को मानती है उन्होने यह जगह सिर्फ घूमने व मौज मस्ती के लिए नजर आती है एकान्त में जहां वह अपनी बाते कर पाते है लेकिन नही जानते अनजाने में ही वह अपसंस्कुति को बढावा दे देते है जो गंगा के किनारे अध्यात्म व शान्ति के तलाश में आये लोगो के लिए कुछ ओर ही संकेत देती है । यह एक अन्तराष्ट्रीय प्रसिद्वि को प्राप्त तीर्थ व योग व अध्यात्म की नगरी है यहां का इतिहास ऋषि -मुनियों के तप का रहा है वहां इन सभी गतिविधियों से यहां के माहौल पर असर पडता है जिसे दूर करने के लिए यह निज की ही जिम्मेदारी होनी चाहिए कि लोगो को यहां की मौलिकता को बरकरार रखना चाहिए तभी ऋषिकेश नामक यह स्थल अपना स्वरूप को बना रख पायेगा व मां गंगा की पवित्रता की रक्षा भी हो सकेगी..................................।  















Tuesday, December 7, 2010

प्रश्न बहुत है ?

बनारस में गंगा आरती के दौरान आतकियों ने बम विस्फोट कर बहुत ही घृटित कार्य किया है उन्हे तो आतंक फैलाना ही है क्या इस तरह के हमारे धार्मिक स्थलों व श्रद्वा की जगहो पर विस्फोट कर यह अपने मकसद में कामयाब हो पायेगे ?शायद कभी नही........... मासूम लोग जो गंगा की आरती कर रहे थे उन्हे जख्मी करे। कोई भी आंतकी हमारी श्रद्वा व विशवास को कभी नही डगमगा सकता । मां गंगा के करीब जो अध्यात्म व शान्ति मिलती है उसे कोई भी नही खत्म कर सकता ।
लेकिन यह भी विचारणीय है क्या हम यू ही मासूमो को मौत के करीब देखते रहेगे क्या हमें हर पल चौकन्ना रहने की आवश्यकता नही है जिस तरह आतंकी अपने कारनामों करते रहेगे हम विवश क्यों होते है? कमी कहां है ? हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है विदेशियों की सुरक्षा का क्या जो हमारी धार्मिक गतिविधियों का हिस्सा बनते है फिर उनकी जान के लाले पड जाते है ? कब तक .......? बस कुछ समय के लिए चौकन्ने होते है फिर वही ढाक के तीन पात । 
यह आतकी भीड -भाड वाली जगहो को ही अपना निशाना बनाते है अब गंगा आरती की पावन जगह को अपना निशाना बनाया है ।इतिहास गवाह है हमारे धार्मिक स्थलो पर हमेशा से ही हमले होते रहे है फिर भी हम इनकी सुरक्षा के प्रति कितने सजग है ? प्रश्न बहुत है पर जवाब नदारद है । भले ही प्रधानमंत्री यह कहे कि "यह शैतानी आतकी ताकतों से लडने के हमारे प्रण को कमजोर करने का प्रयास है जिसमें आंतकी सफल नही होगे ।" किसी व्यक्ति की सुरक्षा भी  अहम  चाहे वह देशी हो या विदेशी ।अकारण ही वह मौत के मुंह में क्यों जाये ।
यह बहुत ही शर्मनाक है जो लोग अपनी श्रद्वा व विशवास अपना प्यार मां गंगा को देते है उसकी आरती उतारतें है उन्हे इस तरह की घटनाओ से रूबरू होना पडे। अब चुप रहने का समय नही ..........। 

Sunday, November 21, 2010

आइये करे गंगा स्नान........


कल यानि 21नवम्बर 2010 को गंगा स्नान  का पर्व बडे ही धुमधाम से मनाया गया कितने ही लोगो ने दूर-दूर  से आकर गंगा में डूबकी लगायी ।सिख धर्म के लोग इसे गुरू पर्व के रूप में मनाते है इसी दिन गुरू नानक देव का जन्म हुआ था । हिन्दु धर्म में पूर्णिमा व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है कार्तिक की इस पूर्णिमा में गंगा स्नान का बहुत ही महत्व है । मार्गशीर्ष ,कार्तिक ,माघ, वैशाख आदि महीने गंगा स्नान के लिए उत्तम है पर कार्तिक स्नान का विशेष फल है कवि
भारतेन्दु ने इसकी महत्ता कुछ इस तरह बतायी है-  माधव कार्तिक माघ की पूनो परम सुनीत ।
                                                                                  ता दिन गंगा न्हाइये करि केशव सौ प्रति।।
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूणिमा के नाम से जानते  है  इस दिन भोलेनाथ ने त्रिपूरासुर नाम के महाभयानक असूर का अंत किया था तथा त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए यह भी मान्यता है कि इसी दिन कृतिका  में शिव शंकर के दर्शन करने से सात  जन्मों  तक व्यक्ति ज्ञानी व धनवान होता है  इस गंगा में स्नान का वर्ष के स्नान का फल मिलता है।  कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो "पद्म योग" बनता है  जिसमें गंगा स्नान का फल पुष्कर से भी अधिक होता है ।
 गंगा में स्नान का कार्तिक की पूर्णिमा के दिन कितना महत्व है यह तो बता ही दिया इस दान का भी बहुत महत्व होता है । आज गंगा स्नान के मायने क्या है कितने ही लोगो के लिए यह छुटटी का दिन पिकनिक के तौर पर मना लेने जैसा ही होता है हल्की ठंड में गंगा नहाने के बाद खिचडी गर्मागर्म खिचडी खाने का आनंद ही कुछ अलग है।
 गंगा की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए स्कंद पुराण में वर्णित है की इसमें तेरह तरह के कर्म नही करने चाहिए शौच , कुल्ला ,जुठा फेकना ,मलमूत्र त्याग करना ,तेल लगाना,निन्दा करना ,प्रतिग्रह,रति,दूसरे तीर्थ की इच्छा तथा दूसरे तीर्थ की प्रशंसा,वस्त्र धोना ,उपद्रव आदि कर्म नही करनें चाहिए।  क्या यह सब कर पाते है वह लोग जो गंगा  स्नान को आते है कि उन्हे गंगा हमारे धर्म में वर्णित समस्त पुण्य मिलेगा। नजर तो कुछ ओर ही आता है कोई  गंगा के जल में बैठ की धुम्रपान करता है, नहाने के बाद तेल लगाते। बैठ कर निन्दा करते है। उपद्रव करते है कुछ लोग इस ताक में रहते है कि जैसे ही कोई गंगा में नहाये उसका समान ले उडे अपने समान की प्रति सचेत रहे ।
उन्हे यह नही पता कि कि यह कोई  समुद्र का किनारा नही बल्कि गंगा नदी का तट जो एक देवनदी है यहां इस तरह के कार्य उन्हे पुण्य नही पाप की तरफ ले जाते है ।













गंगा के करीब कुछ बैठे थे अपने रोजगार के लिए वैसे
 यह हमेशा ही रहते है पर स्नान पर्वो पर
इनकी संख्या कुछ बढ जाती है।

























दान का जो महत्व है इसी लिए दान पाने के इच्छुक भी आते है।


 बैठे है, कतार लगाये वैसे भले ही कई कुछ न दे पर आज के दिन तो काफी कुछ मिल ही जाता है गंगा किस तरह सबका पालन पोषण करती है लेकिन हम क्या करते है क्या इसकी पवित्रता का पूरा ध्यान रखते है।






















यह सभी दृश्य है त्रिवेणी घाट ऋषिकेश के, यही पर गंगा के किनारे बना है आस्था पथ जो शिमला के माल रोड की नजारा दिखाता है। गंगा के किनारे का हाल जानने के लिए इन्तजार किजिए अगली पोस्ट का। फिलहाल के लिए बस इतना ही कि मौजुदा समय में बदल चुका है गंगा स्नान का नजरिया।


                                                       ---------------------



































Thursday, October 28, 2010

मां गंगा को बचाने की तैयारियां......................।


देवनदी गंगा को बचाने के लिए उसके लाडलों में जो चेतना आयी है वह काबिले तारीफ है इसके लिए कुछ प्रयास भी किये जा रहे रहे है इन्ही प्रयासों के कुछ समाचार विभन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए।
आइये मां गंगा की अविरलता ,स्वच्छता,पवित्रता तथा उसके किनारे बसे नगरों की तरफ जो ध्यान गया है उसी से सम्बन्धित खबरों पर नजर डाले।




प्रकाशित समाचार "हिन्दुस्तान" हिन्दी समाचार पत्र
23अक्टूबर2010









प्रकाशित समाचार ,राष्टीय सहारा,28 अक्टूबर 2010













प्रकाशित समाचार,दैनिक जागरण,28 अक्टूबर 2010









दैनिक जागरण,27 अक्टूबर 2010












दैनिक जागरण 25,अक्टूबर 2010








दैनिक जागरण ,17 नवम्बर 2010

Wednesday, October 6, 2010

भड़ास blog: प्रदेश में हिमनद प्राधिकरण का होगा गठन

प्रदेश में हिमनद प्राधिकरण का होगा गठन

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यहां वीरभद्र प्रकट हुआ था ----- वीरभद्रेश्वर मंदिर (ऋषिकेश)

पिछली पोस्ट में मैने ऋषिकेश के वीरभ्रद्र क्षेत्र का इतिहास बताया था पर इस पोस्ट में यह बता दू कि क्यो इस क्षेत्र को वीरभद्र के नाम से जाना ...