यह ब्लाग समर्पित है मां गंगा को , इस देवतुल्य नदी को, जो न सिर्फ मेरी मां है बल्कि एक आस्था है, एक जीवन है, नदियां जीवित है तो हमारी संस्कृति भी जीवित है.
Friday, November 4, 2011
Monday, October 17, 2011
Wednesday, October 5, 2011
Wednesday, July 27, 2011
चरर्मोत्कर्ष पर है श्रावण मास की कावड यात्रा............

गंगा के करीब इन दिनों कावड यात्रा अपने चरर्मोत्कर्ष पर पहुच चुकी है । शिव की भक्ति की कामना में रचे बसे कावडियों को तो बस भोले बाबा को जल चढाना है गंगा जल को अपने साथ लं जाना है चाहे कितने भी कष्ट हो गंगा नहाना है ।
श्रावण मास की इसे कावड यात्रा में श्रद्वालुओ की संख्या लाखों को पार कर चुकी पर अभी तक इसमे कमी नही बल्कि बढोतरी ही हुई है ।
कावडियों की गतिविधियों को देखे कैमरे की नजरों से ...................
....................कुछ झलकियां
हर की पैडी , हरिद्वार, करना है गंगा स्नान।
थोडा कर ले विश्राम
हुक्का भी गुडगुडा ले
कांवड में भर ले गंगा जल ।

अब चले अपनी डगर
यह कावड लगे सबसे न्यारी।
बातचीत कर धुआ भी उडा लूं ।
आह ! कितनी शान्ति है यहां..............!
Sunday, June 12, 2011
शिव ने कराया सोमरस पान........प्रकट हुआ शिवलिंग ! (सामेश्वर महादेव, ऋषिकेश) अन्तिम भाग

तीन स्वंयभू शिवलिंग में नीलकंठ के बाद
यह प्रधान पीठ है । "लयं गच्छति भूतानि
संहारे निखिल यत: " अर्थात संहार के समय सपूर्ण चराचर उसी में समाहित हो जाते है उसी से पुन: सृष्टि होती है इसलिए
शिव के लिंग महत्वपूर्ण है ।सोमेश्वर मंदिर के स्वंयभू शिवलिंग को निष्कल त्रेणी के लिंग मे रखा जा सकता है । लिंग पुराण 3108 में निष्कल लिंगो को पूजा के योग्य माना गया है उर्ध्व भाग एवं पूजा के रूपायन के आधार पर लिंगों को दो वर्गो में बांटा गया है -गुप्तोत्तर कालीन शिश्न लिंग एवं मध्यकालीन आकारवादिलिंग।
सोमेश्वर मंदिर स्थित लिंग गुप्तोत्तर कालीन लिंगो में से एक है । जिस प्रकार बाडाहाट में विश्वनाथ एवं गोपेश्वर मंदिरों के लिंग इसी काल के है शिवलिंग में वलय तथा रेखायें उभरी हई है । कहते है कि एक बार किसी ने शिवलिंग को आधुनिक युक्तियों से बनाने का यत्न किया तो रात में ही संपूर्ण निर्माण सामग्री शिवलिंग से हट गयी और यह अपने पुराने स्वरूप में लौट आया । इस तरह के शिवलिंग यत्र -तत्र ही प्राप्त होते है ।
इस सिद्वपीठ की महत्ता के बारे में एक जनश्रुति यह भी मिलती है कि ब्रिटिश शासन काल में एक अंग्रेज ने इस शिवलिंग को स्यंभू (प्राकृतिक रूप से उत्पन्न) नही माना तब इस स्थान की आठ दस फीट गहरी खुदायी करा डाली इस खुदाई के पश्चात एक पूरा पहाड पृथ्वी के नीचे से निकला इसी में यह शिंवलिग स्थापित था । यहां की पौराणिकता में संदेह नही किया जा सकता । महाभारत में भी उल्लेख मिलता है कि जब पांडव हिमालय गये तो माता कुंती समेत पांचो पुत्रो ने इस शिवंलिग का
जलाभिषेक किया था।
मंदिर के आस पास ऋषि मुनियों के समाधि स्थल है ।वट वृक्ष एंव पीपल के वृक्षों से घिरे इस मंदिर की वातावरण शान्त व रमणिक है । साधुओ की धूनी यहां हमेशा जलती रहती है व प्रसाद के तौर पर भभूत श्रद्वालुओं को दी जाती है।
सावन के महीने में व महाशिवरात्रि के दिन इस स्यंभू शिवलिंग पर जल चढाने तथा पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व है । अपनी मनोकामनां पर्ण करने के लिए मंदिर शिंव परिवार की पूजा व रूद्राभिषेक कराने का अत्यन्त महत्व है।
इतने पौराणकि व ऎतिहासकि महत्व का मंदिर होने के बावजूद यहां का अभी तक कुछ खास विकास नही हुआ है । एक तरफ तो उत्तराखण्ड सरकार धार्मिक पर्यटन को बढाने व विकास के लिए
प्रयासरत है पर जब बात इतने महत्वपूर्ण स्थलो की होती है तो इनके हिस्से में सिर्फ उपेक्षा ही आती है।
यदि हालात इस तरह के ही रहे तो एक दिन यह पौराणिक स्थल केवल आबादी से घिर कर अपनी महत्ता व शान्त वातावरण को नष्ट कर बैठेगे ओर भविष्य में देवभूमि उत्तराखण्ड के पास विश्व को देने के लिए सिर्फ अशान्ति ही होगी शान्ति नही जिस पर देवभूमि के लोग गर्व करते है की हमारी भूमि
के दर्शन मात्र से शान्ति मिलती है ।
Sunita Sharma Khatri
Freelancer Journalist
Uttarakhand
Friday, June 10, 2011
गंगा दशहरा........तथा.... गंगा
भारत की ग्रामीण जनता के जीवन में गंगा दशहरा जैसे पर्वो का बहुत ही महत्व है शहरों में भी इसका प्रभाव है पर उनकी भाग दौड भरी जिन्दगी यह पर्व अपनी पहचान खोते जा रहे है , निरन्तर श्रमलीन रहने वाली जनता के लिए गंगा दशहरा के मायने ही कुछ अलग है वह गंगादि नदियों के तट पर अपने प्रियजनो के साथ गंगा स्नान करते है अपने सुख-दुख बाटते है।

गंगाअवतरण की घटना अपने आप में आलौकिक तथा ऎतिहासकि है जिस पर इस ब्लाग में पहले भी प्रकाश डाला जा चुका है ।गंगा अवतरण ने भारत की दशा-दिशा ही बदल दी थी इसी की स्मृति में होने वाला गंगा दशहरा का पर्व युग-युग तक भगीरथ आदि महापुरूषों की याद दिलाता रहेगा जिनके नाम ही कठिन परिश्रम के प्रतीक बन गये।गंगा की महिमा का वर्णन वेदों से लेकर सम्पूर्ण अवान्तर साहित्य में भरा हुआ है
गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को सम्पुर्ण भारत में महान धार्मिक पर्व के रूप में मनाया जाता है गंगा के अर्विभाव की यह कथा वाल्मीकिरामायण तथा महाभारतदि ग्रन्थों में बडे विस्तार से दी गयी है --
दशमां शुक्लापक्षे तु ज्येष्ठे मासे बुधेहनि ।
अवतोरर्णा यत:स्वर्गद्वस्तर्क्षे च सरिद्वरा।।
हरते दश पापानि तस्मादृशहरा स्मृता ।
जिसका अर्थ है कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को बुधवार को हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग ये धरा पर अवतरित हुई थी । इस दिन स्नानादि शुभ कर्म करने से मनुष्यों के पापों का नाश होता है ।
भारत के लोग ही नही आज गंगा विदेशियों के लिए भी गंगा मां उनके मन भी आपार श्रद्वा व विश्वास गंगा के लिए जो जीवनदायिनी है ।भारत के पूर्व प्रधान मन्त्री जवाहर लाल नेहरू के मन में भी गंगा के प्रति अटूट स्नेह व विश्वास था । उन्होने गंगा के प्रति अपनी भाव भरी श्रद्वांजलि कुछ इस तरह दी थी जिसकी कुछ पक्तियां इस प्रकार है "गंगा भारत की खास नदी है,जनता को प्रिय है।
गंगा मेरे लिए निशानी है,भारत की प्राचीनता की ,यादगार की जो बहती आई है वर्तमान तक और बहती चली जा रही है भविष्य के महासागर की ओर ।"
(मेरे लिए सबसे अहम है बस मेरा यही चिन्तन जो भी लोगो के द्वारा इस नदी की पवित्रता को बचाने के लिए जो कुछ भी जागरूकता आयी क्या उससे सचमुच ही मां गंगा जिसके जल हमने प्रदुषित कर डाला क्या वह हमारे साथ इसी तरह साफ -सुथरे वेगमयी रूप में अपना भविष्य तय कर पायेगी?)

गंगाअवतरण की घटना अपने आप में आलौकिक तथा ऎतिहासकि है जिस पर इस ब्लाग में पहले भी प्रकाश डाला जा चुका है ।गंगा अवतरण ने भारत की दशा-दिशा ही बदल दी थी इसी की स्मृति में होने वाला गंगा दशहरा का पर्व युग-युग तक भगीरथ आदि महापुरूषों की याद दिलाता रहेगा जिनके नाम ही कठिन परिश्रम के प्रतीक बन गये।गंगा की महिमा का वर्णन वेदों से लेकर सम्पूर्ण अवान्तर साहित्य में भरा हुआ है
गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को सम्पुर्ण भारत में महान धार्मिक पर्व के रूप में मनाया जाता है गंगा के अर्विभाव की यह कथा वाल्मीकिरामायण तथा महाभारतदि ग्रन्थों में बडे विस्तार से दी गयी है --
दशमां शुक्लापक्षे तु ज्येष्ठे मासे बुधेहनि ।
अवतोरर्णा यत:स्वर्गद्वस्तर्क्षे च सरिद्वरा।।
हरते दश पापानि तस्मादृशहरा स्मृता ।
जिसका अर्थ है कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को बुधवार को हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग ये धरा पर अवतरित हुई थी । इस दिन स्नानादि शुभ कर्म करने से मनुष्यों के पापों का नाश होता है ।
भारत के लोग ही नही आज गंगा विदेशियों के लिए भी गंगा मां उनके मन भी आपार श्रद्वा व विश्वास गंगा के लिए जो जीवनदायिनी है ।भारत के पूर्व प्रधान मन्त्री जवाहर लाल नेहरू के मन में भी गंगा के प्रति अटूट स्नेह व विश्वास था । उन्होने गंगा के प्रति अपनी भाव भरी श्रद्वांजलि कुछ इस तरह दी थी जिसकी कुछ पक्तियां इस प्रकार है "गंगा भारत की खास नदी है,जनता को प्रिय है।
गंगा मेरे लिए निशानी है,भारत की प्राचीनता की ,यादगार की जो बहती आई है वर्तमान तक और बहती चली जा रही है भविष्य के महासागर की ओर ।"
(मेरे लिए सबसे अहम है बस मेरा यही चिन्तन जो भी लोगो के द्वारा इस नदी की पवित्रता को बचाने के लिए जो कुछ भी जागरूकता आयी क्या उससे सचमुच ही मां गंगा जिसके जल हमने प्रदुषित कर डाला क्या वह हमारे साथ इसी तरह साफ -सुथरे वेगमयी रूप में अपना भविष्य तय कर पायेगी?)
Wednesday, June 8, 2011
शिव ने कराया सोमरस पान........प्रकट हुआ शिवलिंग ! (सामेश्वर महादेव, ऋषिकेश)

पूरे विश्व में कही भी ऎसा स्थान नही है जहां ग्यारह वट वृक्ष मिलते हो यह ग्यारह वट वृक्ष ग्यारह रूद्रों का प्रतिरूप है ।जिन्हें भगवान शिव

जीवित रूप में इन वृक्षों में निवास करते है ।
एक बार सोमदेव नामक ऋषि ने अपने पांव के अंगूठे के बल पर खडे होकर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की तत्पश्चात शिव ने उसे अपने दर्शनो से फलीतार्थ किया । सोमदेव ऋषि के इस जगह पर तप किये जाने के कारण इस पूरे क्षेत्र को सोमेश्वर नगर के नाम से भी जानते है ।ऋषि मुनियों की तपस्थली होने के कारण कालांतर में लोगो को यहां की महत्ता के बारे मे पता चला व वह यहां पूजा अर्चना को आने लगे ।

मंदिरों के सम्बन्ध में यह जानकारी देते हुए यह बताना अत्यंत आवशयक है कि आघ ऎतिहासि क वास्तु का एक प्राचीनतम तथा सरलतम रूप तब वृक्ष मंदिर रहा है वृक्ष को देवता या यक्ष का निवास स्थान माना जाता था वृक्ष के चारों ओर वेदी बना कर उसकी पुष्प ,जल और बलि से पूजा की जाती थी इस प्रकार प्राचीन पूजा

सुनीता शर्मा खत्री
स्वतंत्र पत्रकार
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