Monday, April 12, 2010

कौन है यह..........नागा सन्यासी







कौन है यह नागा सन्यासी की इस आलेख सीरीज में अब तक नागा सन्यासियों के बार में आप सभी को काफी जानकारी मिल चुकी है पिछली पोस्टों में आपने इनके प्रादुभाव - पराक्रम व कार्यो के बारे में जाना इनके द्वारा लडे गये युद्वों के बारे में अब आगे...........काशी ज्ञानवापी के युद्वों के बारें में जानने के लिए पढे कौन है यह नागा सन्यासी भाग -3
हरिद्वार का युद्व-सन् 1966 में जब औरंगज़ेब के आतातायी सेनापतियो ने हरिद्वार तीर्थ की पवित्रता को नष्ट करने के लिए आक्रमण किया तो पंचायती अखाडा के महानिवार्णी के नागा सन्यासियों ने अपने नेताओं के साथ हरिद्वार पहुँच कर आक्रमणकारियों से युद्व करने के लिए शंखनाद किया और अपना झंडा तथा निशान स्थापित करके मुगलसेना का संहार करना आरम्भ कर दिया इसमें मराठा सेना ने भी उनका साथ दिया इस तरह नागाओ

ने हरिद्वार की रक्षा की ।
पुष्कर राजतीर्थ की रक्षा -पुष्कर के दोना पवित्र तीर्थो पर मुसलमान गुजरों की खानाबदोश लुटेरी जाति ने अधिकार करके उसकी पवित्रता को नष्ट करने का प्रयत्न किया लेकिन उसी समय दशनाम नागा सन्यासियों के एक दल ने आक्रमण करके उन गुजरों को पराजित करके वहां से भगा दिया व पुष्कर नगर ब्राहृमणों को सौप दिया ।
जिस समय मुगलों के शाही तक्ष्त पर अहमदशाह बैठा था उसन अवध के नवाब सफदर जंग को अपना वजीर बनाया था ।इस नियुक्ति के कारण ही बंगश अफगान उसके विरोधी हो गये वह जनता पर निरंतर अत्याचार करके भंयकर आपत्ति का सृजन कर रहे थे ऎसी परिस्थितियों में अखाडे के नागा सन्यासियों के द्वारा ही नगर एवं जनता की रक्षा हई ।श्री राजेन्द्रगिरी उस समय नागा सन्यासयों की विशाल सेना के के अधिनायक थे उन्होने बंगश अफगानो को देखकर ही दुर्ग-रक्षक की याचना पर उसको भी अफगानों के भय से मुक्त किया ।राजेन्द्र गिरी, उमराव गिरी, अनूपगिरी ,एतबारपुरी ,नीलकण्ठ गिरी आदि के नेतृत्व में सनातन धर्म की रक्षा प्रकट होती रही ।जिन राजाओ को इनकी सहायता मिलती थी बदले में उन राजाआ द्वारा इन्हे वार्षिक अनुदान का लाभ भी मिलता था।इसके अतिरिक्त अन्य कितने ही देशी राज्यों को इन नागा सन्यासियों न सहायता दी थी नागा सन्यासियों ने ही राजपुत सेना के दोष दुर करने सहायता की थी इसके साथ ही इनकी सेना को स्थिरता भी प्रदान की थी इनके इन योगदानों को कतिपय भुलाया नही जा सकता ।









4 comments:

Dr.R.Ramkumar said...

नागा संन्यासियों के बारे में अज्ञान के कारण अनेक भ्रांतियां हैं । आपका प्रयास सराहनीय और साहसिक है।

पूर्व के पोस्ट पढ़नें की सहज जिज्ञासा होती है।

ज्ञानवर्धक जानकारियां उपलब्ध कराने के लिए बधाई।

Sunita Sharma Khatri said...

आपने ठीक कहा इस बारे में अभी अनेक भ्रांतियां है इसी वजह से आम आदमी की जिज्ञासा को देखते हुए नागा सन्यासियों के बारे कुछ लिखने का प्रयास किया इसमें अभी बहुत अधिक शोध की आवश्यकता है जो भी लिखा,उसमें पूर्व की पोस्टो के माध्यम से भी जानकारी मिल सकती है उम्मीद है लोगो को इस अंधकार में कुछ तो रोशनी मिलेगी।
प्रतिक्रया के लिए आभार।

Anonymous said...

पदक कर अच्छा लगा,जो तथ्य इये गए हैं उन पर कोई शक नही.मैं स्वयम उसी नागा कुल से हूँ.बाद में इन नागा-साधुओ ने गृहस्थ जीवन अपना लिया था.मेरे स्वयम के दादाजी के पिता नगा साधू थे जिन्होंने दादाजी को गोद लिया था यानी तीन चार पीढ़ियों पूर्व तक भी ये गृहस्थ नही पाए जाते थे,हां वो तेवर और फक्कड़पन आज भी इन गृहस्थों के स्वभाव में मिल जायेगा.

Ranjeet singh rajpurohit said...

1966 डेट गलत लिखी आपने..

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