जहां पचंकेदार ,त्रिविक्रम ,विष्णुसोत्र तथा शिवसो्त परायण् का विशेष महत्व है।नारद जी कहते है वहां अचिन्त्य आशचर्य है,"तदर्थ वानुषि संघ स्य हितार्थ सव चोदित:
यथा दृष्टं हषीकेश सर्वमाख्या तुमर्हति।।( 49) अ0 127

महाभारत में कुब्जाम्रक एंव हषिकेश नामों के उल्लेख होने से स्पष्ट होता है कि शुंगकाल अर्थात बाइस साल पहले के आस-पास ऋषिकेश प्रसिद्ध ती्रथ बन चुका था ।समान्यजन इसे ऋषिकेश के नाम से जानते है, केदारख्ण्ड पुराण्कार ने कुब्जाम्रक तीर्थ् नाम की अवधारणा की कथा का देते हुए यह भी लिख दिया कि भविष्य में लोग इसे ऋषिकेश नाम से अधिक जानेगे ।ऋषिकेश नाम इस प्रचिलत होने के सन्दभ् में विशालमणि शर्मा ने लिखा है ऋषिकेश नाम इसलिए पडा कि " ऋषिक नाम है इन्द्रियों का ,जहां शमन किया जाये ।" इन्द्रिय को जीत कर रैभ्य मुनि ने ईश इन्द्रियों के अधिपति विष्णु को प्राप्त किया , इसीलिए (हृषि क +ईश अ+ई-ए गुण्) हृषिकेश यह नाम सटीक है।
धीरे-धीरे यह ऋषिकेश के रूप में विख्यात हो गया।--------------------आगे जारी है