Wednesday, February 24, 2010

कौन है यह..........नागा सन्यासी....? भाग -दो

पिछले आलेख मे आपने पढा हिन्दु धर्म की रक्षा हेतु भारत के समस्त भागों में स्थित हजारों मठों के संचालक,विशिष्ट सन्यासी महात्मा व सनातन धर्म के ज्ञाता विद्वान एकत्रित हए......अब आगे .........विचार विमर्श के बाद यह निश्चित हुआ कि शांत भाव से धर्म प्रचार करने मात्र ये सनातन धर्म की रक्षा नही हो सकती अत: परमात्मा रूप में संहारकारी भैरव स्वरूप की उपासना करते हुए हाथों में शस्त्र धारण करके बलपुर्वक सनातन धर्म को नष्ट करने का प्रयत्न करने वाले दुष्टों का संहार किया जाये...........................

यह निश्चय किये जाने पशचात शस्त्रों से सज्जित होने के लिए समस्त दशनाम का आहवान किया गया ,जिनका आवहान किया गया उसमे विरक्त संन्यासियों के अतिरिक्त ऎसे युवकों को भी शामिल किया गया जिनके मन में सनातन धर्म की रक्षा के लिए सर्वस्व बलिदान करने की प्रबल भावना थी , इन नवयुवको को संन्यास की दीक्षा देकर संसार के समस्त बंधनों से उत्सर्गित होने के निमित्त प्रेरित किया गया । हजारों की संख्या में नवयुवक सन्यास -दीक्षा लेकर सनातन-धर्म की रक्षा करने के लिए कटिबद्व हो गये ।







 परमात्मा के भैरव स्वरूप की अविच्छन शक्ति प्रचण्ड भैरवी भगवती दुर्गा का आवहान करके उनके प्रतीक के रूप  भालों की स्थापना की गयी । उन्ही भालो के सानिध्य में दशनाम नागा संन्यासियों को शस्त्र संचालन का प्रशिक्षण कर शस्त्रों से सज्जित किया गया । 


इन संन्यासियों ने कालान्तर में शस्त्र के अतिरिक्त वस्त्र आदि का भी परित्याग कर दिया ,सनातन धर्म की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान करके यज्ञकुण्ड की प्रतिनिधि धूनियां लगाते हुए सामुहिक रूप से विचरण करने लगे अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए वस्त्रों का परित्याग कर देना इन्हें अधिक सुविधाजनक लगा ।शंकराचार्य से पूर्व जैसे परमहंस सन्यासी वस्त्र त्याग कर दिगम्बर अवस्था में रहते थे उसी प्रकार वे भी वस्त्र  त्यागकर शरीर में भस्म रमाये दिगम्बर अवस्था में रहने लगे जनसाधारण  में उन्हे नग्न अवस्था में देखकर परमहंस सन्यासी के स्थान पर नागा संन्यासी की संज्ञा इनके लिए प्रचलित हो गयी.......................अभी जारी अगले भाग में ....पढते रहे गंगा के करीब पर कौन है यह नागा सन्यासी ? के तृतीय भाग में । 
Sunita Sharma 
freelancer journalis


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