सुरसरि
गंगा का एक नाम ’सुरसरि’ है. कहते हैं कि गंगा स्वर्ग की नदी है. श्रेष्ठ पुरुषों की परम्परा ने तप किया, तब गंगा ने धरती पर आकर बहना स्वीकारा.
इस स्वीकार के पृष्ठ-भूमि में उन श्रेष्ठ मानवों का तप जुङा है. तप के पीछे निश्चित प्रयोजन था. प्रयोजन धर्मसम्मत,न्यायप्रेरित और सत्यस्पर्शी हो तो पूरी सृष्टि उसे सफ़ल बनाने को उत्सुक होती है. राजा सगर का प्रयोजन इन कसौटियों पर सही है.
शाप-दग्ध मानवों को शान्ति मिले, इस दिव्य प्रयोजन से राजाने गंगा को धरती पर उतारने की कामना की.
राजा अर्थात तत्कालीन समाज का श्रेष्ठ्तम पुरुष. स्वर्ग अर्थात सुख-शान्ति का आलय.
देवता अर्थात जो सिर्फ़ देना ही जानते हैं, या जो कम लेकर अधिक देते हैं.
परम्परा में देवों की छवि मानवाकार है. (राक्षसों के सींग-लम्बे दाँत आदि प्रतीकात्मक हैं, अन्यथा राक्षस भी मानवाकार ही हैं. प्रतीक वत्ति-सूचक हैं)
देव अर्थात दिव्य मानव. जागृत मानव.
स्पष्ट हुआ कि इस सृष्टि की श्रेष्ठ्तम कृति मानव है. परमाणु विकास की अन्तिम कङी है मानव-देह.sahiasha.com
यह ब्लाग समर्पित है मां गंगा को , इस देवतुल्य नदी को, जो न सिर्फ मेरी मां है बल्कि एक आस्था है, एक जीवन है, नदियां जीवित है तो हमारी संस्कृति भी जीवित है.
Sunday, October 3, 2010
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