Friday, January 22, 2010

महामण्डेश्वर बने दाती महाराज




महामंडलेश्वर पटटाभिषेक कार्यक्रम,कुम्भनगरी हरिद्वार।
कार्यक्रम का संचालन मंहत वासुदेव गिरी तथा मंहत रवींद्रपुरी ने किया।






हिंदू धर्म और संस्कृति का प्रचार प्रसार करने के लिए अखाडे महामंडलेश्वर की नियुक्ति करते है ,इसके लिए संत का विद्वान होना तो आवश्यक है ही साथ ही हिंदू धर्मऔर संस्कृति का प्रचार प्रसार करने की क्षमता भी होनी चाहिए। महामंडलेश्वर बनने के लिए संत का विद्वान होने के साथ ही सामाजिक व आर्थिक स्थिति भी देखी जाती है । इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हूए बंसत पंचमी के दिन शनिधाम दिल्ली के परमाध्यक्ष मदन महाराज दाती को महानिर्वाणी अखाडे के महामंडेलेश्वर की उपाधि से विभूषित किया गया । उन्हे श्री महामंडलेश्वर निज स्वरूपानन्द पुरी जी महाराज के नाम से जाना जायेगा ।शनि की उपासना कर उन्होने ख्याति पायी है।

all photograph's by Anoop Khatri chief producer TV Eyes News Network
     presented by sunita sharma freelancer journalist





गंगा-गीता-गौ-गायत्री के लिये आशाओं के द्वार यहाँ भी!

कोपेन हेगन की असफ़लता ने
धरती के अस्तित्व पर बने प्रश्नों को
कुछ और विकराल बनाया है,
कुछ नये प्रश्न खङे कर दिये हैं.


समाधान के लिये
भारत केन्द्र में है- सदा से रहा है.
भारत अर्थात वसुधैव कुटुम्बकम….
भारत अर्थात सर्वे भवन्तु सुखिनः….
भारत अर्थात सर्वं खल्विदं ब्रह्म…..
भारत अर्थात गौ-गंगा-गीता-गायत्री….
भारत अर्थात सबमें एक के दर्शनों की साधना…
भारत अर्थात दायित्व-बोध!
भारत अर्थात मैं को विराट के साथ
एकाकार देख पाने की साधना !


इस साधना क्रममें
स्व के अध्ययन-क्रममें
मैं गत एक महीने से हैद्राबाद में हूँ.
हैद्राबाद- जो तेलंगाना आन्दोलन का केन्द्र है.
रोज-रोज उपद्रव, खून-खराबा
छात्रों द्वारा आत्म-हत्यायें
जलती बसें- जलते सार्वजनिक भवन-सम्पत्तियाँ
अस्त-व्यस्त और परेशान जन-जीवन
हताश-निराश होती व्यवस्थायें
हथियार डालते राजनेता….


आन्दोलन अब राजनेताओं के हाथ से निकल चुका है.
छात्र-शक्ति चला रही है इसे…
उस्मानियां संस्थान आन्दोलन का केन्द्र
छात्रओं द्वारा आत्म-हत्यायें
आग में पेट्रोल का काम कर रही हैं
तीन विश्व-विद्यालयों के सेमिस्टर रद्द हो चुके हैं
सारे दलों के विधायक इस्तीफ़ा देकर ही
अपनी जान बचा पा रहे हैं.
कोई नहीं जानता
कि यह ऊँट किस करवट बैठेगा!


इन सबके बीच
मैं एक प्रतिष्टित शिक्षा-संस्थान में बैठा हूँ.
अन्तर्राष्ट्रीय-सूचना-संचार-तकनीकी-संस्थान
अंग्रेजी में iiit-hydrabad.


आन्दोलन की आग इसके द्वार पर भी आई थी.
छात्रों की उत्तेजित भीङ को गेट पर ही रोक दिया गया.
क्योंकि, सिक्योरिटी के मनमें
संस्था-अधिपति के प्रति विश्वास था…
संस्था-अधिपति को अपने साथियों-सहयोगियों पर
और उनको अपने छात्रों पर भरोसा था
यह विश्वास- यह भरोसा
एक अभेद्य दीवार बन गया
कोई उपद्रव इस पवित्र परिसर में ना घुस सका.


हाँ, यह परिसर पवित्र है!
६८ एकङ में फ़ैला परिसर,
इतने ही तकनीकी-शिक्षा-विभाग
लगभग १२०० जन…. छात्र-प्राचार्य और कर्मचारी
सब किसी न किसी प्रोजेक्ट पर न्यस्त और व्यस्त.


इस तकनीकी व्यस्तता के बीच
जीवन के स्पन्दनों को महसूसने का
उनके साथ जीने का सुख भी पाया मैंने.
नित्य की गीता-चर्चा हो,
मंगल-रवि की जीवन-विद्या चर्चा
योग-कक्षा हो, या खेल के उमंगित मैदान
सब तरह हरियाली ही हरियाली है.
सबको यह चिन्ता भी है
कि इतनी हरियाली के बावजूद
चिङिया का घोंसला क्यों नहीं दिखता!?
तितलियाँ, भँवरे और पतंगे क्यों नहीं दिखते?
और क्या तभी फ़ूल भी नहीं खिलते?
और इस तेजी से बढती जाती ई-मेल प्रणाली से
मानव को क्या क्या भुगतना पङ सकता है?
और इसका लोक-व्यापीकरण कैसे हो?
जन-जन के हित में इस विधा को कैसे मोङा जाये!?
कहीं इसने मानवी दिमाग में
आत्म-संहार का वायरस तो नहीं भर दिया?
कहीं कोपेन हेगन की असफ़लता के पीछे
वही वायरस तो नहीं???

यहाँ की जागृत चेतना
स्वयं से प्रश्न कर रही है…
और भारत इसी रास्ते बनता और बचता है.
भारत बचे
तो गीता-गंगा-गायत्री-गाय और ज्ञानारधना भी बचे!
भारत बचे तो धरती भी बचे !
भारत बचे तो धरती भी बचे!!


साधक उम्मेदसिंह बैद

Featured Post

यहां वीरभद्र प्रकट हुआ था ----- वीरभद्रेश्वर मंदिर (ऋषिकेश)

पिछली पोस्ट में मैने ऋषिकेश के वीरभ्रद्र क्षेत्र का इतिहास बताया था पर इस पोस्ट में यह बता दू कि क्यो इस क्षेत्र को वीरभद्र के नाम से जाना ...