
पूरे विश्व में कही भी ऎसा स्थान नही है जहां ग्यारह वट वृक्ष मिलते हो यह ग्यारह वट वृक्ष ग्यारह रूद्रों का प्रतिरूप है ।जिन्हें भगवान शिव

जीवित रूप में इन वृक्षों में निवास करते है ।
एक बार सोमदेव नामक ऋषि ने अपने पांव के अंगूठे के बल पर खडे होकर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की तत्पश्चात शिव ने उसे अपने दर्शनो से फलीतार्थ किया । सोमदेव ऋषि के इस जगह पर तप किये जाने के कारण इस पूरे क्षेत्र को सोमेश्वर नगर के नाम से भी जानते है ।ऋषि मुनियों की तपस्थली होने के कारण कालांतर में लोगो को यहां की महत्ता के बारे मे पता चला व वह यहां पूजा अर्चना को आने लगे ।

मंदिरों के सम्बन्ध में यह जानकारी देते हुए यह बताना अत्यंत आवशयक है कि आघ ऎतिहासि क वास्तु का एक प्राचीनतम तथा सरलतम रूप तब वृक्ष मंदिर रहा है वृक्ष को देवता या यक्ष का निवास स्थान माना जाता था वृक्ष के चारों ओर वेदी बना कर उसकी पुष्प ,जल और बलि से पूजा की जाती थी इस प्रकार प्राचीन पूजा

सुनीता शर्मा खत्री
स्वतंत्र पत्रकार