Wednesday, June 8, 2011

शिव ने कराया सोमरस पान........प्रकट हुआ शिवलिंग ! (सामेश्वर महादेव, ऋषिकेश)

हरिद्वार से ऋषिकेश में प्रवेश करते ही चुंगी चौकी से पश्चिम दिशा में स्थित है सोमेश्वर  महादेव मंदिर। वट वृक्ष के नीचे बना यह मंदिर सोमेश्वर नगर में स्थित मुख्य मार्ग से थोडी उंचाई पर है। यहां तक पहुचने के लिए सीढीयों का निर्माण किया हुआ है संपूर्ण क्षेत्र में वट वृक्ष एंव पीपल के वृक्षों की बहुतायत है । इस स्थान का वर्णन स्कन्द पुराण में भी मिलता है वर्णित कथा के अनुसार भगवान शिव ने यहां देवताओ को सोमरस का पान करवाया तथा एकादश रूद्रो को प्रकट किया । 
पूरे विश्व में कही भी ऎसा स्थान नही है जहां ग्यारह वट  वृक्ष मिलते हो यह ग्यारह वट वृक्ष ग्यारह रूद्रों का प्रतिरूप है ।जिन्हें भगवान शिव  


ने प्रकट किया और भगवान शिव  स्वंय
 जीवित रूप में इन वृक्षों में निवास करते है ।

एक बार सोमदेव नामक ऋषि ने अपने पांव के अंगूठे के बल पर खडे होकर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की तत्पश्चात शिव ने उसे अपने दर्शनो से फलीतार्थ किया । सोमदेव ऋषि के इस जगह पर तप किये जाने के कारण इस पूरे क्षेत्र को सोमेश्वर नगर के नाम से भी जानते है ।ऋषि मुनियों की तपस्थली होने के कारण कालांतर में लोगो को यहां की महत्ता के बारे मे पता चला व वह यहां पूजा अर्चना को आने लगे  ।  


ऋषिकेश में सर्वाधिक प्राचीन आघ ऎतिहासकि मंदिरों में सामेश्वर मंदिर सिद्व पीठ के रूप में जाना जाता है यहां  स्थित तीन सिद्वपीठ मंदिरों में वीरभद्रेश्वर ,चन्द्रेश्वर में से एक सि़द्व पीठ मंदिर सोमश्वर महादेव है । वृक्ष आच्छादित इस मंदिर की विशेषता है कि इसमें वृक्ष पूजा एवं वृक्ष के नीचे स्थापित प्रतिमा है आच्छादित मंदिरो में सोमेश्वर मंदिर इस श्रेणी के मंदिर का अनुपम उदाहरण है ।ब्राहृमण ,बौद्व जैन महान धर्मो की धारायें पर्याप्त कालोंपरांत प्रवाहित हई । इनके उदय से पूर्व अन्यंत्र  की भांति जनसाधारण जडात्य पूजा अथवा भोग ,यक्ष ,भूमिया ,भूतादि  स्थानीय देवता की पूजा करता था ।

मंदिरों के सम्बन्ध में यह जानकारी देते हुए  यह बताना अत्यंत आवशयक है कि आघ ऎतिहासि क वास्तु का एक प्राचीनतम तथा सरलतम रूप तब वृक्ष मंदिर रहा है वृक्ष को देवता या यक्ष का निवास स्थान माना जाता था वृक्ष के चारों ओर वेदी बना कर उसकी पुष्प ,जल और बलि से पूजा की जाती थी इस प्रकार प्राचीन पूजा 
वृक्ष चैत्य वृक्ष  और सवृक्ष चैत्य के बहुश: अंदान प्राप्त होते है ।  वृक्ष व प्रतिमा पूजा बहुत पहले से चली आ रही है जैन सुत्रों में वर्णन है की महावीर काल में चैत्य वृक्ष से संबद्व यक्ष  और नाग भी आच्छादित मंदिरो के ही रूप थे।मथुरा से प्राप्त अब बोस्टन संग्रहालय में प्रारम्भिक कुषाणकालीन एक उत्तरंग पर संवेदी वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग अंकित  है । इसी प्रकार इस भाग में मिली कुणिंद-मुद्राओ पर संवेदी वृक्ष का अंकन है  मंदिरो निर्माण के उपरान्त भी वृक्ष पूजा क की प्राचीन प्रथा प्रचलित रही यह आज भी जारी है  यह मंदिर आघ एतिहासिक मंदिर के वर्गीकरण में रखे जाने के पीछे एक तथ्य यह भी है कि वट वृक्ष के नीचे स्थापित शिवलिंग की पूजा शताब्दियों से की  जनसाधारण द्वारा की जा  रही है । कांलातर में विस्तार किया गया । वट वृक्ष आच्छादित इस मंदिर की विशेषता यह भी है की इस मंदिर मे पूजा उस शिवलिग की ,की जाती है जो स्वंयभू है अर्थात स्वंय उत्पन्न हुआ था । शेष अगली पोस्ट में जानिये कुछ ओर सोमेशवर महादेव मंदिर की महत्ता के बारे में व  क्या है ? स्यंभू शिवलिंग .... ........
सुनीता शर्मा खत्री 
स्वतंत्र पत्रकार 

2 comments:

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी जानकारी दी।
देहरादून में हूं, यदि कल हरिदवार की तरफ़ जा पाया तो दर्शन करूंगा इस मन्दिर का।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

रोचक जानकारी।

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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।

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