Tuesday, November 17, 2009

यहां वीरभद्र प्रकट हुआ था ----- वीरभद्रेश्वर मंदिर (ऋषिकेश)


पिछली पोस्ट में मैने ऋषिकेश के वीरभ्रद्र क्षेत्र का इतिहास बताया था पर इस पोस्ट में यह बता दू कि क्यो इस क्षेत्र को वीरभद्र के नाम से जाना जाता है।एन सी घोष ने सन् 1973-75 के मध्य यहां ऐतिहासिक खुदाई की थी ,उससे पता चलता है कि इस स्थान पर 100 ई0 से लेकर 800 ई0  के बीच मानव सभ्यता व संस्कृति विघमान थी । खुदाई से  प्राप्त  वस्तुओ से पता चला कि वीर भद्र नामक नगर एक ऐतिहासिक एंव पौराणिक था । जिस पर भद्र मित्रस्य द्रोणी घाटे खुदा हूआ था । जिसका तात्पर्य द्रोणी दून की ओर से इस घाट का रक्षक भद्रमित्र था । यहां का वीरभद्रेश्वर  मंदिर उत्तर कुषाण कालीन इण्टिकाओ से 
बना हुआ है जिसके भद्रपीठ पर शिवलिंग है । अठ्ठारह पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार स्वंय वीरभद्र ने शिवलिग की स्थापना की थी ।
वीरभद्र शिव का भैरव स्वरूप था जिसकी उत्पत्ति दक्ष यज्ञ के विध्वंस के फलस्वरूप हई  ।जिसे स्वंय शिव ने अपनी जटा पटक कर किया था ।इसके पीछे जो कथा मिलती है उसके अनुसार जब प्रजापति दक्षने महायज्ञ किया तो शिव को नही बुलाया क्योकि शिव ने एक बार बहृमा से प्रश्न पूछा तो बहृमा  ने उसे अपने चारों मुखों से दिया पहले उनके चार मुख थे शिव ने उनका अंहकार चूर करने के लिए बहृमा का एक मुख काट लिया तभी से बहृमा तीन मुखी हो गये शिव को ऎसा करने पर बहृम हत्या का दोष लगा इसी दोष के कारण दक्ष पे उन्हें यज्ञ मे नही आमन्त्रि त किया । दक्षपुत्री शिव की आज्ञा से कनखल हरिद्वार जा कर यज्ञ मे सम्मिलित हुई सती ने महायज्ञ मे अपने पति का अपमान होते देख स्वंय को यज्ञाग्नि में भस्म कर लिया । इसकी सूचना जब सती के साथ यज्ञ में आये गणों ने शिव को दी तो वह क्रोधित हो उठे तत्पशचात शिव ने वीरभद्र प्रकट किया व उसे यज्ञ विध्वंस के लिए भेजा । कनखल में यज्ञ विध्वंस कर वीरभद्र वापस आकर  यज्ञ विध्वंस का हाल शिव को सुनाया । शिव ने  प्रसन्न हो वीरभद्र  को अंगीकार किया शिव के वीरभ्रद्र को अंगीकार करने के फलस्वरूप यहां का शिवलिंग दो भागों में 60 :40 के अनुपात में विभक्त है इसलिए इसका नाम वीरभद्र पडा । शिव की आज्ञा से वीरभद्र ने अपने तेज का अंश अलग किया । जिससे आदि शंकराचार्य की उत्पत्ति मानी जाती है ।



मंदिर के समीप ही रम्भा नदी बहती है इसकी उत्पत्ति के पीछे जो कारण बताये जाते है उसके अनुसार सती के यज्ञ में भस्म हो जाने के कारण विक्षुब्ध शिव के क्रोध को शान्त करने  के लिए इन्द्र ने इन्द्रलोक की अप्सरा रम्भा को भेजा । जिसे शिव ने भस्म कर दिया जो कालांतर में श्यामल  रंग में रम्भा नदी के नाम से बह रही है। रम्भा व गंगा नदी के संगम पर प्राचीन दुर्ग था वीरभद्रेश्वर मंदिर वस्तुत: प्राचीन अवशेषों के उपर निर्मित है ।लेकिन आज इसका स्वरूप एक दम बदल चुका है नवीन निर्माण कार्यो ने प्राचीनता लुप्त कर दी है यहां शान्ति व आलौकिकता अभी भी वातावरण मे है।
वर्तमान में मंदिर अपने आधुनिक रूप में है कुछ लोगो का कहना है कि  औरंगज़ेब ने इस मंदिर का विध्वंस किया था जबकि कुछ का मत है कि केवल कुछ हिस्सा ही खडिंत किया था इस बारे कोई ऐतिहासिक प्रमाण में नही है ।महाशिवरात्रि के दिन यहां इस मंदिर में विशाल मेले का आयोजन होता है शिवलिंग पर जल चढाने दूर दर से श्रद्धालु आते है कहते है रम्भा नदी में स्नान कर मंदिर में शिवलिंग पर जल चढाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।   
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