

ऋषिकेश के प्राचीन पौराणिक मंदिर ऐतिहासिक युग का प्रतिनिधित्व करते है इसी में रघुनाथ मंदिर भी है गंगा के करीब पर आपने पूर्व की पोस्टों में ऋषिकेश के प्राचीन पौराणिक मंदिरों के बारे में जाना। मंदिर वास्तु शिल्प के इतिहास विवेचन क्रम में यह बात उल्लेखनीय है कि जो वास्तु शिल्प गढवाल में प्रचलित हई वही पूर्व में काली नदी तक कुमांऊ तक मिलती है ।डा0 प्रसन्न कुमार आचार्य ने कहा कि "मंदिर की सीमा एक प्रदर्शनी है ,जो दशको के आर्थिक और नैतिक , निर्माता की संपत्ति ,कलाकारों की भवन निर्माण विषयक कला चातुरी, काष्टकारों मूर्ति शिल्पियों ,चित्रकारों एवं अन्य कारीगरों के श्रम का दिगदर्शन कराती है उसमें एक सभ्य राष्ट्र के जीवन के उपयुक्त सभी अंग समन्वित रूप से पाये जाते है ।"
तीर्थ नगरी के त्रिवेणी घाट के दायी ओर रघुनाथ मंदिर एंव ऋषि कुण्ड स्थित है जो यहां की प्राचीन धरोंहर में प्रमुख स्थान रखती है । केदारखण्ड में इस स्थान का उल्लेख मिलता है स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में वर्णित कथा के अनुसार जब भगवान राम रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्ति के पशचात अयोध्या पंहुचे और राजसत्ता संभालनी चाही तो उनके गुरू वशिष्ठ व अन्य महर्षियों ने राजभिषेक से मनाही की और कहा की उन्होने रावण का वध किया था वह बहृम हत्या के दोषी हो गये है क्योकि रावण ब्राहृमण था अब इस दोष का प्रायशचित करना उनका परम कर्तव्य है । इन महर्षियों ने मर्यादा पुरूषोत्तम राम को उत्तराखण्ड में तप करने के लिए कहा क्योकि यह स्थान भगवान केदार अर्थात शिव का निवास स्थान है शिव की तपस्या से ही ब्रहम हत्या के दोष से छुटकारा पा
सकते है।
भगवान राम उत्तराखण्ड में आये तप करने रास्तें में उन्होने इस स्थान को अपने विश्राम के लिए चुना यह रघुनाथ मंदिर आज जहां है यही भगवान श्री राम ने विश्राम किया तत्पशचात देवप्रयाग में उन्होंने यज्ञ किया । दुर्गम पहाडियों को पार कर भोलेनाथ की कठोर तपस्या कर ब्रहृम हत्या से मुक्ति प्राप्त की और वर्षो अयोध्या पर शासन किया ।
मंदिर के सटे कुण्ड के सम्बन्ध में भी कथा प्रचलित है जिसके अनुसार इस स्थान पर ऋषि यज्ञ व तप किया करते थे कुब्जाभरत नामक ऋषि ने भगवान राम से यमुनाजी प्रकट करने का वरदान मांगा तथा यज्ञ कुण्ड में यमुना जी को प्रकट हुई।यह भी मानना हे कि रेवा नाम के ऋषि ने अपने तपोबल से यमुना की धारा को प्रकट किया । मत है कि यह कुण्ड अत्यन्त प्राचीन है व प्रतिमाह इसका जल बदलता है इस कुण्ड की महत्ता इतनी है कि जो भी सध्या के समय ऋषि कुण्ड पर पुजा अर्चना करता है उसकी मनाकामना पूर्ण होती है वैज्ञानिको ने भी यह माना है कि इसका जल वास्तव में यमुना का ही है । देवालय-प्रतिष्ठान के साथ-साथ वाणी ,कुण्ड ,पुष्कर आदि जलाशयों का निर्माण पौराणिक पूर्व धर्म का प्रधान अंग रहे है।अपराजिता पृच्छा ,मानसोल्लास आदि ग्रंथों में इनके निवेश व लक्षणों पर वर्णन मिलते है । मध्य हिमालयी मन्दिरों के साथ वाणी ,कुण्ड और पुष्करणियां निवेशित की जाती थी । स्थानीय भाषा में इनके लिए "बौ" तथा "कुण्ड" का व्यवहार हुआ है । देवता के नित्य पूजन एवं भक्तों के स्नान के लिये इनका इस्तेमाल होता रहा है ।
अगली पोस्ट में आप रघुनाथ मंदिर के वास्तु शिल्प के बारे में जानने को मिलेगा........... । शेष आगे .......
a series by Sunita Sharma
freelancer Journalist........ Rishikesh