कहते है तीर्थो के पवित्र वातावरण में ऋषि-मुनियों के सत्संग से मनुष्य निष्पाप हो जाता है। अर्थवेद के अनुसार बडे-बडे यज्ञो का अनुष्ठान करने वाले जिस मार्ग से जाते है तीर्थ करने वाले भी उसी पवित्र मार्ग से स्वंय जाते है ।
ऋषि केश एक अत्यन्त प्राचीन तीर्थ है इसकी प्राचीनता व ऐतिहासिकता पर पहले भी प्रकाश डाला चुका है पढिये इसी ब्लाग पर " ऋषिकेश- एक तपस्थली के रूप में "।
ऋषि केश बसअडडे से लगभग 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित है त्रिवेणी घाट ।जिसे इस शहर का मुख्य स्थान या हृदय की सज्ञा दी जाये तो कई अतिशयोक्ति न होगी ।
इस स्थान पर गंगा यमुना तथा सरस्वती का संगम माना जाता है ।कुब्ज नामक ऋषि के तप से प्रसन्न हो कर यमुना नदी ने अपने जल से उन्हे तृप्त किया ।

यहां अवस्थित कुण्ड में यमुना का जल विघमान है ।
गंगा ,यमुना व सरस्वती के मिलन के कारण इस जगह को त्रिवेणी जाना जाता है भूमि के नीचे अभी भी सरस्वती का जल का होना माना जाता है ।
ऋषि कुण्ड के समीप ही सूर्यकुण्ड की स्थिति भी मानी गयी है ।
इस घाट का विकास गंगा सभा एंव विडला प्राधिकरण के सहयोग से किया गया है ।
विगत दिनो बरसात की वजह से गंगा नदी में आयी बाढ से इस स्थान को काफी नुकसान भी पहुचा है।
त्रिवेणी घाट इस तीर्थ नगरी का प्रमुख घाट है यहां
की गंगा आरती देखने लायक होती है ।
यही घाट पर ही धार्मिक आयोजन होते ही रहते है
मत्रों का जाप ,भजनो की आवाजे कानो में घुली रहती है। क्या गंगा के करीब सचमुच ही अध्यात्म की

अपनी पिछली पोस्ट( आइये करे गंगा स्नान..) में मैने जिक्र किया था आस्था पथ यानि मैरीन ड्राइव का जो गंगा किनारे बना खुबसुरत पथ है जहां से मां गंगा की खुबसुरती को निहारा जा सकता है।
जब से यह मैरीन- ड्राइव बना है तब से लोगो की आवाजाही भी बढी है इस मार्ग से लोगो को गंगा दर्शन का बेहतर लाभ भी मिला चाहे पर्यटक हो या स्थानीय लोगो का जमावडा सभी को यह स्थल बहुत खुबसुरत लगता है ,इससे एक अलग पहचान मिली है।यहां की सुरक्षा को लेकर भी खासे इन्तजाम अब कर दिये गये है ।
यह पथ है गंगा के किनारे का पावन पथ जिसे आस्था पथ से जानते है पर आस्था के मायने कहां है ।
नयी पीढी क्या इन बातो को मानती है उन्होने यह जगह सिर्फ घूमने व मौज मस्ती के लिए नजर आती है एकान्त में जहां वह अपनी बाते कर पाते है लेकिन नही जानते अनजाने में ही वह अपसंस्कुति को बढावा दे देते है जो गंगा के किनारे अध्यात्म व शान्ति के तलाश में आये लोगो के लिए कुछ ओर ही संकेत देती है । यह एक अन्तराष्ट्रीय प्रसिद्वि को प्राप्त तीर्थ व योग व अध्यात्म की नगरी है यहां का इतिहास ऋषि -मुनियों के तप का रहा है वहां इन सभी गतिविधियों से यहां के माहौल पर असर पडता है जिसे दूर करने के लिए यह निज की ही जिम्मेदारी होनी चाहिए कि लोगो को यहां की मौलिकता को बरकरार रखना चाहिए तभी ऋषिकेश नामक यह स्थल अपना स्वरूप को बना रख पायेगा व मां गंगा की पवित्रता की रक्षा भी हो सकेगी..................................।
11 comments:
bahut acchha lekh hai ganga ji ka apna prabhaw aur pabitrata hai hamare purbajo ne bhartiya sanskriti ka vikash inhi nadiyo ka kinare kiya tha .
bahut-bahut dhanyabad.
बहुत अच्छा लगा यह पढकर।
पढ़कर लगा जैसे तीरथ करके आ गया हूँ. बहुत सुन्दर
सुन्दर चित्रमय पोस्ट
सुन्दर आलेख!
आदरणीया सुनीता शर्मा जी
नमस्कार !
बहुत वर्ष पहले मां-बाबूजी के साथ हरिद्वार-ॠषिकेश आना हुआ था । आज अचानक आपके ब्लॉग पर पहुंचा … आपकी पोस्ट ने पुनः तीर्थ-लाभ का अवसर दे'कर कृतार्थ कर दिया ।
चित्रों से जाना कि बहुत परिवर्तन हुआ है, जो स्वाभाविक ही है ।
आपकी अन्य प्रविष्टियां भी पढ़ कर सुखद अनुभूति हुई ।
हार्दिक आभार एवम् मंगलकामनाएं
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
sundar tasveeron ke saath sundar post.. pad kar acha laga..
mere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
सुनीता जी । आपका ब्लाग बहुत अच्छा लगा ।
पर कलर थोडे तीखे हैं । और फ़ोन्ट भी छोटे है
। हो सके तो कुछ ठीक कर लें । पढने में बहुत
सुविधा हो जायेगी ।
आप सभी की आभारी हूं आपने गंगा के करीब ब्लाग को अपना बहुमूल्य समय दिया। राजेन्द्र जी राजीव जी आप मेरे ब्लॉग पर पहली बार आये आपके सुझावों का धन्यवाद कोशिश करूँगी शीघ्र ही परिवर्तन करूँ। क्रिस्मस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
manmohak lekh!
Post a Comment