यह ब्लाग समर्पित है मां गंगा को , इस देवतुल्य नदी को, जो न सिर्फ मेरी मां है बल्कि एक आस्था है, एक जीवन है, नदियां जीवित है तो हमारी संस्कृति भी जीवित है.
Thursday, July 1, 2010
हेमामालिनी स्पर्शगंगा अभियान की ब्रांड एंबेसडर.......... कितना सही, कितना गलत?
क्या सचमुच उत्तराखण्ड सरकार ने हेमा जी को गंगा नदी से जुडे स्पर्श गंगा अभियान के लिए हेमा जी को ब्रांड एंम्बेसडर बना कर कोई गलती की है ? जबकि सत्यता तो यह भी है हेमा जी जैसी अभिनेत्री व नृत्यागना को गंगा के लिए ब्रांड एंम्बेसडर बनाये जाने पर गलत क्या है वह उन्होने अपने अभिनय व नृत्य कला से अपनी प्रतिभा का लोहा देश विदेश में मनाया है वह अन्तराष्ट्रीय स्तर की कलाकार है यदि मां गंगा के उद्वार में वह अपना योगदान कर सकती है तो इसमे कुछ बुरा नही है । वह इस अभियान से जुडना अपना सौभाग्य मानती है गंगा नदी देश के ही नही वरन् विदेशियों के हृदय की भी धारा है उनके मन में भी गंगा के प्रति आपार स्नेह व आस्था है जिस जनमानस की भावनाओं के आहत होने बात जो लोग कर रहे है तो गंगा नदी को प्रदुषित करने में चाहे आम जन हो या सन्त भी उसके प्रदुषण व उसकी मार्मिक हालत जिम्मेदार सभी है। जो लोग आज गंगा नदी की साफ -सफाई के प्रति जागरूक हो चुके है उनके मन में हेमा जी प्रति भी उतना ही विश्वास है कि वह अपने जिम्मेदारी जो उन्होने ली है उसमे सफल हो सकेगी यदि प्रदेश के मुख्यमंत्री जब गंगा नदी के प्रति इतनी संवेदनशीलता रखते हो तो आज मां गंगा के उद्वार के नाम पर सभी को ईमानदार होना ही पडेगा ताकि हम अपनी जीवनदायिनी को उसके स्थिति से उबारने में कुछ तो कामयाब हो सके मां गंगा की दुर्दशा के जिम्मेदार हम सभी है बाहरी ताकत ने तो उसे मरणासन्न नही किया ।
जब यहां के लोग गंगा को अपनी मां मानते है तो वह यह क्यों नही समझते जब मां की हालत सही होगी तो तब ही तो वह अपने बच्चों के लिए सही रह पायेगी लेकिन यह भी एक विडम्बना ही है संतान अपनी मां की परवाह बहुत कम करती है भले मां अपनी जान तक अपनी संतान के लिए न्यौछावर कर दे ।जो लोग यह सोचते है कि हेमा जी को मां गंगा का ब्रांड एंम्बेसडर बना दिये जाने पर सरकार ने गंगा को भी प्रोडक्ट बना दिया है वह कितना सही यह तो वही जाने लेकिन आज जो गंगा कि दशा है उससे बचाने के लिए हमे इस जीवनदायिनी के लिए कुछ भी करना पडे वह भी कम होगा ।जब स्नानपर्वो पर जन सैलाब उमडता है तथा उसके बाद इस नदी का जो हाल यह जनमानस करता है तब उसकी आस्था कहां जाती है। वह इसके प्रति खुद से चिन्तत नही होगा तब तक कोई कुछ भी नही कर सकता जो समर्थ है उन्हे इस कार्य में आगे आना ही होगा मैने यह ब्लाग मां को समर्पित किया ताकि थोडी सी भी आवाज उन सभी तक पहुंच सके जो इस दिव्य नदी को आने वाली पीढी के लिए बचा सके । हमे इसके लिए अपने उन संस्कारों मे भी बदलाव लाना होगा जो इस नदी से जुडे है मां गंगा के हित के लिए अगर कुछ सके तभी यह जीवन सार्थक होगा व वह ऋण भी तभी उतरेगा जो एक मां का होता है जिसे हमे कभी नही चुका सकते ...........शायद
(हेमा मालिनी चित्र गुगल से साभार)
पढे गंगा नदी से सम्बन्धित अन्य पोस्ट ......(गंगा में प्रवाहित कर दो.....)
Wednesday, April 21, 2010
गंगावतरण ....एक आलौकिक कथा- भाग चार
भगीरथ घर छोड़कर हिमालय के क्षेत्र में आए। इन्द्र की स्तुति की। इन्द्र को अपना उद्देश्य बताया। इन्द्र ने गंगा के अवतरण में अपनी असमर्थता प्रकट की। साथ ही उन्होंने सुझाया कि देवाधिदेव की स्तुति की जाए। भागीरथ ने देवाधिदेव को स्तुति से प्रसन्न किया। देवाधिदेव ने उन्हें सृष्टिकर्ता की आराधना का सुझाव दिया। क्योंकि गंगा तो उनके ही कमंडल में थी।
दिलीप के पुत्र भागीरथ ने गोकर्ण नामक तीर्थ में जाकर ब्रह्मा की कठिन तपस्या की। तपस्या करते करते कितने ही वर्ष बीत गये। ब्रह्माजी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा जी को पृथ्वी पर लेजाने का वरदान दिया।
प्रजापति ने विष्णु आराधना का सुझाव दिया। विष्णु को भी अपनी कठिन तपस्या से भागीरथ ने प्रसन्न किया। इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही भगीरथ के प्रयत्न से संतुष्ट हुए। और अंत में भगीरथ ने गंगा को भी संतुष्ट कर मृत्युलोक में अवतरण की सम्मति मांग ली।
विष्णु ने अपना शंख भगीरथ को दिया और कहा कि शंखध्वनि ही गंगा को पथ निर्देश करेगी। गंगा शंखध्वनि का अनुसरण करेगी। इस प्रकार शंख लेकर आगे-आगे भगीरथ चले और उनके पीछे-पीछे पतितपावनी, त्रिपथगामिनी, शुद्ध सलिल गंगा।
ब्रह्म लोक से अवतरण के समय, गंगा सुमेरू पर्वत के बीच आवद्ध हो गयी। इस समय इन्द्र ने अपना हाथी ऐरावत भगीरथ को दिया। गजराज ऐरावत ने सुमेरू पर्वत को चार भागों में विभक्त कर दिया। जिसमें गंगा की चार धाराएं प्रवाहित हुई। ये चारों धाराएं वसु, भद्रा, श्वेता और मन्दाकिनी के नाम से जानी जाती है। वसु नाम की गंगा पूर्व सागर, भद्रा नाम की गंगा उत्तर सागर, श्वेता नाम की गंगा पश्चिम सागर और मंदाकिनी नाम की गंगा अलकनन्दा के नाम से मृत्युलोक में जानी जाती है।
सुमेरू पर्वत से निकल कर गंगा कैलाश पर्वत होती हुई प्रबल वेग से पृथ्वी पर अवतरित होने लगी। वेग इतना तेज था कि वह सब कुछ बहा ले जाती। अब समस्या यह थी कि गंगाजी के वेग को पृथ्वी पर कौन संभालेगा? ब्रह्माजी ने बताया कि भूलोक में भगवान शंकर के अलावा और किसी में इस वेग को संभालने की शक्ति नही है। इसलिये गंगा का वेग संभालने के लिये भगवान शंकर से अनुग्रह किया जाये। महाराज भागीरथ ने एक अंगूठे पर खडे होकर भगवान शंकर की आराधना की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकरजी अपनी जटाओं में गंगाजी को संभालने के लिये तैयार हो गये। गंगा के प्रबल वेग को रोकने के लिए महादेव ने अपनी जटा में गंगा को धारण किया। इस प्रकार गंगा अपने अहंभाव के चलते बारह वर्षों तक शंकर की जटा में जकड़ी रही।
भगीरथ ने अपनी साधना के बल पर शिव को प्रसन्न कर कर गंगा को मुक्त कराया। भगवान शंकर पृथ्वी पर गंगा की धारा को अपनी जटा को चीर कर बिन्ध सरोवर में उतारा। यहां सप्त ऋषियों ने शंखध्वनि की। उनके शंखनाद से गंगा सात भागों में विभक्त हो गई। मूलधारा भगीरथ के साथ चली। महाराज भागीरथ के द्वारा गंगाजी हिमालय की घाटियों से कल कल का विनोद स्वर करतीं हुई मैदान की तरफ़ बढीं। आगे आगे भागीरथ जी और पीछे पीछे गंगाजी। यह स्थान हरिद्वार के नाम से जाना जाता है।
हरिद्वार के बाद गंगा की मूलधारा भगीरथ का अनुसरण करते हुए त्रिवेणी, प्रयागराज, वाराणसी होते हुए जह्नु मुनि के आश्रम पहुँची। भगीरथ की बाधाओं का यहां भी अंत न था। संध्या के समय भगीरथ ने वहीं विश्राम करने की सोची। परन्तु भगीरथ को अभी और परीक्षा देनी थी। संध्या की आरती के समय जह्नु मुनि के आश्रम में शंखध्वनि हुई। शंखध्वनि का अनुसरण कर गंगा जह्नु मुनि का आश्रम बहा ले गई। ऋषि क्रोधित हुए। उन्होंने अपने चुल्लु में ही भर कर गंगा का पान कर लिया। भगीरथ अश्चर्य चकित होकर रह गए। उन्होंने ऋषि की प्रार्थना शुरू कर दी। प्रार्थना के फलस्वरूप गंगा मुनि के कर्ण-विवरों से अवतरित हुई। गंगा यहां जाह्नवी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
यह सब देख, कोतुहलवश जह्नुमुनि की कन्या पद्मा ने भी शंखध्वनि की। पद्मा वारिधारा में परिणत हो गंगा के साथ चली। मुर्शिदाबाद में घुमियान के पास भगीरथ दक्षिण मुखी हुई। गंगा की धारा पद्मा का संग छोड़ शंखध्वनि से दक्षिण मुखी हुई। पद्मा पूर्व की ओर बहते हुए वर्तमान बांग्लादेश को गई। दक्षिण गामिनी गंगा भगीरथ के साथ महामुनि कपिल के आश्रम तक पहुँची। ऋषि ने वारि को अपने मस्तक से लगाया और कहा, हे माता पतितपावनी कलि कलुष नाशिनी गंगे पतितों के उद्धार के लिए ही आपका पृथ्वी पर अवतरण हुआ है। अपने कर्मदोष के कारण ही सगर के साठ हजार पुत्र क्रोधग्नि के शिकार हुए। आप अपने पारसरूपी पवित्र जल से उन्हें मुक्ति प्रदान करें। मां वारिधारा आगे बढ़ी। भस्म प्लावित हुआ। सगर के साठ हजार पुत्रों का उद्धार हुआ। भगीरथ का कर्मयज्ञ सम्पूर्ण हुआ। वारिधारा सागर में समाहित हुई। गंगा और सागर का यह पुण्य मिलन गंगासागर के नाम से सुप्रसिद्ध हुआ।
Friday, January 22, 2010
गंगा-गीता-गौ-गायत्री के लिये आशाओं के द्वार यहाँ भी!
धरती के अस्तित्व पर बने प्रश्नों को
कुछ और विकराल बनाया है,
कुछ नये प्रश्न खङे कर दिये हैं.
समाधान के लिये
भारत केन्द्र में है- सदा से रहा है.
भारत अर्थात वसुधैव कुटुम्बकम….
भारत अर्थात सर्वे भवन्तु सुखिनः….
भारत अर्थात सर्वं खल्विदं ब्रह्म…..
भारत अर्थात गौ-गंगा-गीता-गायत्री….
भारत अर्थात सबमें एक के दर्शनों की साधना…
भारत अर्थात दायित्व-बोध!
भारत अर्थात मैं को विराट के साथ
एकाकार देख पाने की साधना !
इस साधना क्रममें
स्व के अध्ययन-क्रममें
मैं गत एक महीने से हैद्राबाद में हूँ.
हैद्राबाद- जो तेलंगाना आन्दोलन का केन्द्र है.
रोज-रोज उपद्रव, खून-खराबा
छात्रों द्वारा आत्म-हत्यायें
जलती बसें- जलते सार्वजनिक भवन-सम्पत्तियाँ
अस्त-व्यस्त और परेशान जन-जीवन
हताश-निराश होती व्यवस्थायें
हथियार डालते राजनेता….
आन्दोलन अब राजनेताओं के हाथ से निकल चुका है.
छात्र-शक्ति चला रही है इसे…
उस्मानियां संस्थान आन्दोलन का केन्द्र
छात्रओं द्वारा आत्म-हत्यायें
आग में पेट्रोल का काम कर रही हैं
तीन विश्व-विद्यालयों के सेमिस्टर रद्द हो चुके हैं
सारे दलों के विधायक इस्तीफ़ा देकर ही
अपनी जान बचा पा रहे हैं.
कोई नहीं जानता
कि यह ऊँट किस करवट बैठेगा!
इन सबके बीच
मैं एक प्रतिष्टित शिक्षा-संस्थान में बैठा हूँ.
अन्तर्राष्ट्रीय-सूचना-संचार-तकनीकी-संस्थान
अंग्रेजी में iiit-hydrabad.
आन्दोलन की आग इसके द्वार पर भी आई थी.
छात्रों की उत्तेजित भीङ को गेट पर ही रोक दिया गया.
क्योंकि, सिक्योरिटी के मनमें
संस्था-अधिपति के प्रति विश्वास था…
संस्था-अधिपति को अपने साथियों-सहयोगियों पर
और उनको अपने छात्रों पर भरोसा था
यह विश्वास- यह भरोसा
एक अभेद्य दीवार बन गया
कोई उपद्रव इस पवित्र परिसर में ना घुस सका.
हाँ, यह परिसर पवित्र है!
६८ एकङ में फ़ैला परिसर,
इतने ही तकनीकी-शिक्षा-विभाग
लगभग १२०० जन…. छात्र-प्राचार्य और कर्मचारी
सब किसी न किसी प्रोजेक्ट पर न्यस्त और व्यस्त.
इस तकनीकी व्यस्तता के बीच
जीवन के स्पन्दनों को महसूसने का
उनके साथ जीने का सुख भी पाया मैंने.
नित्य की गीता-चर्चा हो,
मंगल-रवि की जीवन-विद्या चर्चा
योग-कक्षा हो, या खेल के उमंगित मैदान
सब तरह हरियाली ही हरियाली है.
सबको यह चिन्ता भी है
कि इतनी हरियाली के बावजूद
चिङिया का घोंसला क्यों नहीं दिखता!?
तितलियाँ, भँवरे और पतंगे क्यों नहीं दिखते?
और क्या तभी फ़ूल भी नहीं खिलते?
और इस तेजी से बढती जाती ई-मेल प्रणाली से
मानव को क्या क्या भुगतना पङ सकता है?
और इसका लोक-व्यापीकरण कैसे हो?
जन-जन के हित में इस विधा को कैसे मोङा जाये!?
कहीं इसने मानवी दिमाग में
आत्म-संहार का वायरस तो नहीं भर दिया?
कहीं कोपेन हेगन की असफ़लता के पीछे
वही वायरस तो नहीं???
यहाँ की जागृत चेतना
स्वयं से प्रश्न कर रही है…
और भारत इसी रास्ते बनता और बचता है.
भारत बचे
तो गीता-गंगा-गायत्री-गाय और ज्ञानारधना भी बचे!
भारत बचे तो धरती भी बचे !
भारत बचे तो धरती भी बचे!!
साधक उम्मेदसिंह बैद
Sunday, September 20, 2009
गंगा नदी ही नही एक अद्भभुत संस्कृति
"गंगा भारत की प्रतीक है लोग इससे प्यार करते है उनकी स्मृतियां आशाएं एंव विजय गीत हर एक निराशा और पराजय भी गंगा से संबद्व है।"
(गंगोत्तरी मंदिर,प्राचीन काल में यह लकडी व पत्थर का बना था)
( शिव, गंगा के वेग को धारण करते हुए )
भारत की समस्त नदियों में यही एकमात्र ऎसी नदी है जो स्वर्ग से उतर कर पृथ्वी पर आई है गंगावतरण की घटना अपने आप में आलौकिक है जिसे हम बचपन से सुनते आ रहे है। इसका वर्णन महाभारत के वनपर्व ,बाल्मीकी रामायण के बालकाण्ड ,ब्रह्रमाण्ड पुराण,पघ पुराण और भागवत पुराण में मिलता है पौराणकि कथाओ के अनुसार गंगा की उत्पत्ति सृष्टि के रचयिता ......... ....ब्रहृमा के कमण्डल के पवित्र जल से हुई है।जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया तो अपने त्रिवकिम रूप से पृथ्वी तथा दूसरा पैर स्वर्ग की ओर बढाया तो विष्णु के चरणो से आकाशगंगा की उत्पत्ति हुई और यह आकाशगंगा कैलाश पवत के इर्द-गिर्द इठलाती रही । कई शताब्दियों तक यह आकाशगंगा विष्णुपदी के रूप में आकाश में विचरण करती रही । सगर वंश के कई राजाओ ने अपने पुरखों की अस्थियों को पवित्र कराने के लिए पीढी दर पीढी अथक प्रयत्नशील रहे ।तत्पश्चात कई वर्षो के कठाेर तप के बाद भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर आने के लिए राजी कर लिया। गंगा के मन में अंहकार पैदा हो गया और उसने सोचा कि वह शिव को अपने साथ पताल ले जायेगी गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने से पृथ्वी को अपने विनाश की चिन्ता हुई और ब्रहृमा की शरण में गयी ब्रहृमा ने पृथ्वी को शिव की तपस्या करने को कहा क्योकि वही गंगा के वेग को आधार प्रदान कर सकते थे ।भगीरथ ने शिव की एक पैर से तपस्या की,उसकी तपस्या से प्रसन्न हो शिव ने गंगा को अपने सिर पर जटाओ में धारण कर लिया फिर धीरे-धीरे अपनी जटाओ से गंगा को मुक्त किया और वह बहती हुई सात धाराओ में बट गयी जिसमें से तीन और अंतिम धारा भगीरथ के पीछे चल कर अपने गन्तव्य की ओर पहुंची............।
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यहां वीरभद्र प्रकट हुआ था ----- वीरभद्रेश्वर मंदिर (ऋषिकेश)
पिछली पोस्ट में मैने ऋषिकेश के वीरभ्रद्र क्षेत्र का इतिहास बताया था पर इस पोस्ट में यह बता दू कि क्यो इस क्षेत्र को वीरभद्र के नाम से जाना ...

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भगीरथ घर छोड़कर हिमालय के क्षेत्र में आए। इन्द्र की स्तुति की। इन्द्र को अपना उद्देश्य बताया। इन्द्र ने गंगा के अवतरण में अपनी असमर्थता...
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आदिकाल से बहती आ रही हमारी पाप विमोचिनी गंगा अपने उद्गम गंगोत्री से भागीरथी रूप में आरंभ होती है। यह महाशक्तिशाली नदी देवप्रयाग में अलकनंदा ...
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बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे ! हम भी कुंभ नहा आए ! हरिद्वार के हर की पौड़ी में डुबकी लगाना जीवन का सबसे अहम अनुभव था। आप इसे...