Saturday, September 12, 2009

ऋषिकेश एक तपस्थली-- भाग--4



ऋषिकेश एक तपस्थली के रूप में  देवताओ से सम्बन्धित ऋषि-मुनियों की तपस्थली पर्वतों की तलहटी में बहती देवनदी गंगा के कारण यह स्थान अति पवित्र माना गया है।स्कन्दपुराण में वर्णन आता है कि ऋषिकेश  में जहां चन्द्रेशवर नगर जहां आज स्थित है वहां चन्द्रमा ने अपने क्षय रोग की निवृति के लिए चौदह हजार देव वर्षो तक तपस्या की थी यह भी उल्लेखनीय है कि कभी यहां भंयकर आग लगी जिससे कुपित होकर शंकर ने अग्नि को शाप से मुक्ति हेतु तप किया इस कारण इसे अग्नि र्तीथ भी कहा गया है।
आज यह नगरी जिस रूप में है उसकी पौराणिकता यह है कि जो भी शान्ति हमें यहां मिलती है उसके पीछे कही यह वजह तो  नही जो तप यहां हुए उसकी वजह से आज भी  ऎसा महसुस करते है।
बाल्मीकि रामायण में भी वर्णन आता है कि भगवान त्रीराम ने वैराग्य से परिपूण होकर इसी स्थान में विचरण किया था ।शिवपुराण में वर्णन आता है कि ब्रहृमपुत्री संध्या ने भी यही तप कर शिव दर्शन प्राप्त किया जो बाद में अरून्धती के नाम से विख्यात हुई।
केदारखण्ड पुराण के अनुसार---गंगा द्वारोत्तर विप्र स्वग स्मृता: बुधै:,यस्य दर्शन वियुक्तों भव बन्धनों:    अर्थात गंगाद्वार हृरिद्वार के उपरान्त केदारभूमि स्वर्ग । भूमि के समान शुरू होती है।जिसमें प्रवेश करते ही दर्शन मात्र से ही भव बन्धनों से मुक्ति हो जाती है ।राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के भस्म हो जाने के उपरान्त जो चार पुत्र रह गये थे उसमें से एक हृषिकेतु ने यहां तप किया था ।मेरे द्वारा इन तपस्वियों के तप का ज्रिक करने का तात्पर्य यह है कि ताकि जनमानस यह जान सके कि ऋषिकेश की तपभूमि किन लोगो की तपस्या द्वारा फलीभूत हुई है साथ आधुनिक र्तीथ यात्री इस पावन स्थान की महत्ता को बरकरार रखे। 
सतयुग में  सोमशर्मा ऋषि ने हृषिकेश नाराणण की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें वर मांगने को कहा था भगवान विष्णु ने उन्हे वर प्रदान कर अपने दर्शन भी कराये इसका जिक्र भी केदारखण्ड में मिलता है।यहां के जो सिद्वस्थल है --वीरभ्रद्र,सोमेशवर एवं चन्द्रेशवर में रात्रि में आलौकिक अनुभूतियां होती है, चन्द्रेशवर में चन्द्रमा ने तप किया तो सोमेशवर में सोमदेव नामक ऋषि ने अपने  पांव के  अंगूठे के बल पर खडे होकर तपस्या की ...................आगे  जारी है।

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