वो बागबान है ,सीचां है उन्होने नन्ही कलियो को
बहुत से फूल है उनके गुलशन में
रगंबिरंगे,नाजुक सें
फूल जो कभी हंसते है कभी रोते है
पर वो अपने फूलों को रोने हंसने को नही कहते।
मै जानती हुं वो बागबां आज उदास है
एक आधी आई है जो ठहर गयी है
उनके हसीन गुलशन पे
उस आंधी को कह वो इन नन्हें फूलों को
छोड कही और अपना बसेरा कर लें
नही तो बागबान कहर तूझे नही बख्सेगा।
वो सींचता है नन्हे पौधौ को बहुत प्यार से
नही सहन करता उनकी उदासी को
पौधे ही कू्र बन जाते है कर देते है
बगावत बागबां से,मै जानती हूं वो
नही होता है खुश मुरझायें फूलों को देख
रोता है वो ,गुलशन से कह दो, बहारों
एक बार आ जाआ ,मै जानती हूं बागबां उदास है फिर...............
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1 comment:
कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।
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