जब से मैने "गंगा नदी ही नही संस्कृति भी "आलेख लिखा मै यह सोच रही थी किसने पढा होगा क्या किसी के पास र्फुसत है मेरी मां गंगा के बारे में सोचने की लोगो को उनके लाइफस्टाइल,रिश्तों के बारे में ही सोचने से र्फुसत नही उन्हे क्या पडी कि इस देवतुल्य नदी के बारे में सोचे उन्हे सिर्फ अपने पाप ही तो धोने है या अस्थियां ही तो प्रवाहित करने के लिए गंगा की याद आयेगी मै यु आम लोगो की बात नही कर रही हुं क्योकि उनकी आस्था तो पूर्णतया गंगा से जुडी है लेकिन वो इतने समर्थ नही जो इस बारे में कुछ कर सके मै कर रही हुं उन लोगों कि जो समर्थ है पर कुछ करेगे नही क्योकि उन्हे क्या जरूरत है?गंगा की दुर्दशा से सभी परिचित है लेकिन आज सुबह जब अखबारों पर निगाह गयी तो कुछ उम्मीद की किरणे नजर आई।आप को भी पता होगा फिर भी एक नजर इन खबरों पर डालिए-
काश ये सारे प्रयास हकीकत में सकार हो जाये और सिसकती गंगा को खिल कर प्रवाहित होने का मौका मिल जाये । गंगा को मां कहने वाले लाडलों को यह जानना भी जरूरी है जब भगीरथ अपने कठोर तप से इस र्स्वगीय नदी को पृथ्वी पर ले आये तो आज भगीरथ प्रयास में कमी न आये।ये प्रयास सिर्फ मेलों को ध्यान में ही रख कर के न हो वरन हमेंशा के लिए गंगा को साफ व प्रदुषण मुक्त किया जाये...........
5 comments:
खबरें आशाजनक हैं
वैसे लिखा हुआ तो आपका भी व्यर्थ न जायेगा, जरूरी नहीं है कि पहली चोट में ही काम पूरा हो जाये, गंगा की प्रदूषण मुक्ति और स्वाभिमान के लिए आपका लिखा हर शब्द गिना जायेगा.
योजनाएं तो बहुत बनती हैं, उनपर कार्यवाही हो जाए तब जानिए।
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2020 तक यह हो जाये यह कामना ।
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें, इस दीवाली खुशियां हो चारों और छट जाये दुख रूपी अंधकार की छाया.... keep smiling
सुनीता जी, आपके पिस्तौल से निकली गोली कहीं न कहीं विस्फोट जरूर करेंगी। मतलब आपने जो प्रयास किया है, वह जरूर सफल होगा। देर है लेकिन अंधंर नहीं। हम आपके साथ हैं।
सुनील पाण्डेय
इलाहाबाद
09953090154
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