Sunday, December 13, 2009

गंगा के करीब विकसित होगे........Beaches........


गंगा के करीब ब्लाग में मैने ऋषिकेश के इतिहास के बारे में यहां की पौराणकिता के बारे आप सभी को जानकारियां दी उम्मीद है इन जानकारी से ऋषियों की इस पवित्र भूमि के बारे सभी बहुत कुछ जान गये होगे पर वर्तमान में क्या यह तीर्थ अपनी प्रासंगिकता को बनाये रखने में सफल है इस बारे यह कहना काफी है आधुनिकता पंख पसार चुकी है उत्तराखण्ड के अन्य शहरों की भांति यहां का युवा वर्ग भी अपनी प्रतिभा के साथ पलायन कर जाते है।पर मुझे जब भी यह शहर छोडने का प्रस्ताव मिलता है मै सहर्ष ही उसे खारिज कर देती हुं भले ही उसकी कीमत कुछ भी चुकानी पडे । क्योकि मुझे पलायन वादी प्रवृत्ति पसन्द नही किसी भी समस्या से भागने से नही उसके डट कर मुकाबला करने में होता है मुझे याद आता है जब मैने नेट की दूनिया में कदम रखा अपना आलेख विस्फोट के लिए भेजा जाये तो मुझे सलाह दी गयी कि मेरा आलेख पढे जो सज्जन शायद ऋषिकेश आते भी होगे उन्होने लिखा अपने आलेख में कि यहां आधुनिकता का भौडा प्रर्दशन होता है ।

नूतन वृत्तियों का अपनाने में काई बुराई नही होती इस स्थान पर विदेशी आते है रहते है यहां के युवक-युवतियों से विवाह रचाते है विदेशी यहां की संस्कृति में रचे बसे है यदि लक्ष्मण झूला व स्वर्गाश्रम का इलाका देखा जाये जहां अध्यात्म की गंगा बहती है तो विदेशियों का प्रभाव स्थानीय जनता पर भी पडता है । वर्ष 1997 में मैने दैनिक  जागरण के लिए एक आलेख लिखा था मुसीबत में है विदेशी सैलानी  जिसमें मैने यहां आने वाले विदेशी सैलानीयों की परेशानियों का जिक्र किया था।यहां गंगा के करीब एक स्थान है जहां विदेशी आराम फरमाते है उसे गोवा बीच का नाम दिया जाता है खबरे है इसे और अधिक विकसित किया जा रहां है।पहले इसे पसन्द नही किया जाता था व एक अपसंस्कृति का जन्म मिलने की संभावना को कहा जाता था पर अब उत्तराखण्ड सरकार पर्यटन को बढावा देने के चक्कर में कुछ समझना नही चाहती क्या करे लाइफ अब बदल चुकी है लोगो को संस्कृति अपसंस्कृति से काई र्फक नही पडता फिर यहां की जनता इन प्रभावों से अछूती कैसे रहे उन्हें सबसे आगे निकलना है न ...............................
(photo from tripadvisors)

5 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

दुनिया के किसी भी देश में आजतक तो सुना नहीं कि वहां की संस्कृति पर्यटन के बावजूद अछूती रही हो..पर्यटन के साथ बाहर के संस्कार आएंगे ही...

परमजीत सिहँ बाली said...

विचारणीय पोस्ट है। लेकिन अब तो यही लगता है कि दूसरो को लुभाने की खातिर प्रभाव तो पड़ेगा ही....

Gyan Dutt Pandey said...

पर्यटन न भी हो, तो भी प्राचीनता को दरवाजे बन्द कर जिन्दा नहीं रखा जा सकता। गंगा में स्वयम् में जो निर्मलता रहती है, वह बहने से है - रुके रहने से नहीं।

हम कैसे आधुनिक बनें, प्रश्न यह है। प्रश्न पुरातनता हो उसी रूप में बनाये रखने का नहीं है।

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

पढे हैं मैंने लेख सब, बहुत ध्यान के साथ.
कृतज्ञता और आदर से, पूछ रहा यह बात.
पूछूँ इतनी बात, कि क्या करने से होगा?
गंगा का अभिशाप दूर अब कैसे होगा?
कह साधक योजना बतायें, या फ़िर सुन लें
खुद की जिम्मेदारी से निज समझ बना लें.

मनोज कुमार said...

रचना अच्छी लगी ।

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