हृषीकाणि पुराजित्वा दर्श ! संप्रार्थितस्त्वया ।
यद्वाहं तु हृषीकशों भवाम्यत्र समाश्रित:
ततोस्या परकं नाम हृषीकेशाश्रित स्थलम्।।
स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु महामुनि पारद को ऋषिकेश की महत्ता बताते हुए कहते है कि -कृते वराहरूपेण त्रेयायाम् कृतवीयर्यजम्
द्वापर वामनं देवं कलौ भरतमेव चनमस्यंति महाभाग भवेयुर्मुक्ति भागिन
अर्थात सतयुग में वराह,त्रेता में कृतवीर्य,द्वापर में वामन और कलयुग में जो भरत के नाम से मेरी पूजा अर्चना करेगा उसे नित्य मुक्ति प्राप्त होगी ।
ऋषिकेश तीर्थ का महत्व शहर के बीचों बीच स्थित भरत मंदिर से है ।भरत मंदिर अत्यतं प्राचीन है,समान्य जन इसे दाशरथि भरत का मंदिर समझते है क्योकि इन्हे ऎसी संगति भी दिखायी देती है थोडा आगे लक्ष्मण मंदिर है लक्ष्मण झूला है,शत्रुघन मंदिर है।लेकिन यह विष्णु भगवान का मंदिर है।इतिहासविदों का मानना है कि ललितादित्य मुक्तापीड के हरिद्वार तथा ऋषिकेश में मंदिर निर्माता होने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता यह महान निर्माता सूर्य व विष्णु का उपासक था ।इस सम्बन्ध एक अनुश्रुति यह भी मिलती है कि कश्मीर के राजा ने ही पूर्व काल में भरत मंदिर को बनवाया था बाद में वही के किसी राजा ने इसका जीर्णोद्वार करवाया था । बारह से नौ श्वेत गुम्बदों और पाषाण भित्ति से बने भरत मंदिर के अंदर काली शालिग्राम की शिला की पांच फूट ऊची हृषीकेश नारायण की चतुर्भुजी प्रतिमा है । इसका पुनर्रूद्वार बारहवी शती में हुआ ।
यही श्री हृषिकेश भगवान भरत महाराज है । अब से 121 वर्ष पहले आदि शंकराचार्य जी ने इस मंदिर की मुर्ति की पुन: प्रतिष्ठा की । तुलसीदास रामायण अनुसार विश्व भरन पोषण करजोई ,ताकर नाम भरत अस होई
अर्थात विश्व का पालन पोषण करने वाले ऋषिकेश भगवान भी भरत जी शंख,चक्र,गदा ,पदम को धारण करने वाले भगवान विष्णु ही है ।
कुछ इतिहासकार मानते है रागपित्त से पीडित महीपत शाह, कुमायूं पर आक्रमण करने के विचार से जब हरिद्वार कुम्भ 1628 ई0 में भरत मंदिर के मंडप में दर्शनार्थ पंहुचा किन्तु भ्रान्ति चित्त से उसे लगा कि मुर्ति उसे क्रुद्व नेत्रों से देख रही है । उसने मूर्ति के नेत्रों को उखडवा दिया यह कहकर हम तो आपके दर्शनों को आये है ओर तुम हमे क्रुद्व नेत्रों से देख रहे हो । राजा ने शायद यह समझा कि आंखे रत्न जडित है पर कांच की पा कर पुन: यथा स्थान लगवा दिया ।
मंदिर की परिक्रमा कर बद्रीनारायण के दर्शन का पुण्य मिल जाता है । मंदिर का वास्तु शिल्प उडीसा वास्तु शिल्प के समान है मंदिर की बाहरी दीवारों पर अंलकरण है और मूर्तियां उकेरी हई है जो समय के प्रभाव के कारण या मानव प्रहार से खंडित किये जाने की संभावना है बाहर की मूर्तियां ढाई फूट के आकार की शिलांखडों से निर्मित सुदृढ भित्तिकाओ पर जडी हुई है । इन भित्तिकाओ की मोटाई सात से आठ फीट बताई गयी है ।मुख्यमुर्ति हृषिकेश विष्णु की है ।मंदिर के दायें परिक्रमा पंथ में पातालेश्वर महादेव है ।शिव का यह मंदिर ऋषि केश के प्रमुख मंदिरों में से एक है । इसकें अधोतल में एक दर्शनीय शिवलिंग भी है जो पतालेशवर नाम को सार्थक करता है ,यही से प्राचीन मार्ग की संभावनायें मानी जाती है
प्रति वर्ष बंसत पंचमी को यहां विशाल मेले का आयोजन होता है वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीय में 108 परिक्रमा करने वाले व्यक्ति को बद्रीनारायण के दर्शनों का लाभ व महत्ता की प्राप्ति होती है ।
सुनीता शर्मा
No comments:
Post a Comment