गंगा जीवनदायिनी नदी, भारतवासियों के ह्रदयों में ही नही विदेशियों के ह्रदय में भी वास करती है।हम सभी के जीवन की यह प्राण है।
प्रदुषित गंगा की दशा को सुधारने के लिए शायद सरकार को जो सुध आयी है उसके चलते 7,000 करोड रू0 की लागत से गंगा नदी को राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण से साफ करने की परियांजना को मंजूरी दी गयी है इसमें केन्द्र 5100 करोड रू0 खर्च करेगा उत्तराखण्ड,उत्तर प्रदेश,बिहार ,झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल को राज्य सरकारे 1900 करोड रू0 का खर्च वहन करेगी । विश्व बैंक ने इस परियोजना को लगभग 4600 करोड रू0 का कर्ज देने की सहमति दी है इस परियोजना की समय सीमा आठ साल की रखी गयी है प्रधानमंत्री खुद इस प्राधिकरण की अध्यक्षता करेगें । इस परियोजना का उद्देश्य गंगा नदी का संरक्षण ,नदी घाटी की व्यापक योजना तथा प्रबंधन के जरिए गंगा नदी के पर्यावरणीय बहाव को सुनिश्चत करना है । इस परियोजना को पहले की परियोजनाओ से अधिक प्रभावी बनाया गया है जिसमें पर्यावरणीय नियमों का पालन ,नगर निगम के गंदे पानी के नालो ,औघौगिक प्रदुषण ,कचरे और नदी के आस पास के इलाको का बेहतर तथा कारगर प्रंबधन शामिल किया गया है ।
इस परियोजना का स्वागत है पर यहां यह भी उल्लेखनीय है जैसा कि हिन्दी दैनिक समाचार पत्र, हिन्दुस्तान के शुक्रवार, 29,अप्रैल के सम्पादकीय में लिखा गया एक कडवा सच है, "होना यह चाहिए था कि इस वर्ष हम गंगा एक्शन प्लान की रजत जंयती धूमधाम से मनाते ,लेकिन पिछले पच्चीस साल में इस प्लान ऎसा कुछ भी नही हुआ जिसे उपलब्धि के तौर पर पेश कर सके "।
1986 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में गंगा एक्शन प्लान की शुरूवात वाराणसी में हई थी इस योजना में 2,000 करोड रूपये खर्च कर चुकने के बावजूद गंगा में प्रदुषण घटा नही बल्कि बढा ही है । वास्तव में राजीव गांधी भविष्य दृष्टा थे उन्होने यह योजना अपनी व्यक्तिगत दिलचस्पी की वजह से शुरू करवायी थी अगर इस योजना को प्रभावी ढंग से लागू कर व सभी लोगो की निज की चेतना से मां गंगा व अन्य प्रदुषित होती नदियों के बारे ध्यान रखा होता तो शायद यह ब्लाग भी न लिखा गया होता। पढे अन्य पोस्ट " गंगा की इस हालत का जिम्मेदार कौन ?,गंगा नदी ही नही अद्धभुत संस्कृति .... कितने भी करोडो खर्च कर लो मां गंगा तब तक पुर्ण रूप से प्रदुषण मुक्त व स्वच्छ नही होगी जब जक गंदे नाले फैक्टियों के अपशिष्ट , मल, कुडा कचरा ,मरे हुए जानवर और यह भावना गंगा में प्रवाहित कर दो ,यह भावना मन से नही निकलेगी तब तक कितनी भी योजनाये बना लो कुछ नही होने वाला जहां तक बात जनता से सहयोग लेने की है तो यह कैसे संभव है जब उन्हे यही बताया जायेगा की गंगा में बहा दो, गंगा तो लोगो के अपशिष्ट बहा ले जाने मात्र के लिए जान पडती हो मानो .... तब उसके जल को आचमन के लिए लायक कब तक रख पायेगे......?
Sunita Sharma
freelancer journalist
Uttarakhand
प्रदुषित गंगा की दशा को सुधारने के लिए शायद सरकार को जो सुध आयी है उसके चलते 7,000 करोड रू0 की लागत से गंगा नदी को राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण से साफ करने की परियांजना को मंजूरी दी गयी है इसमें केन्द्र 5100 करोड रू0 खर्च करेगा उत्तराखण्ड,उत्तर प्रदेश,बिहार ,झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल को राज्य सरकारे 1900 करोड रू0 का खर्च वहन करेगी । विश्व बैंक ने इस परियोजना को लगभग 4600 करोड रू0 का कर्ज देने की सहमति दी है इस परियोजना की समय सीमा आठ साल की रखी गयी है प्रधानमंत्री खुद इस प्राधिकरण की अध्यक्षता करेगें । इस परियोजना का उद्देश्य गंगा नदी का संरक्षण ,नदी घाटी की व्यापक योजना तथा प्रबंधन के जरिए गंगा नदी के पर्यावरणीय बहाव को सुनिश्चत करना है । इस परियोजना को पहले की परियोजनाओ से अधिक प्रभावी बनाया गया है जिसमें पर्यावरणीय नियमों का पालन ,नगर निगम के गंदे पानी के नालो ,औघौगिक प्रदुषण ,कचरे और नदी के आस पास के इलाको का बेहतर तथा कारगर प्रंबधन शामिल किया गया है ।
इस परियोजना का स्वागत है पर यहां यह भी उल्लेखनीय है जैसा कि हिन्दी दैनिक समाचार पत्र, हिन्दुस्तान के शुक्रवार, 29,अप्रैल के सम्पादकीय में लिखा गया एक कडवा सच है, "होना यह चाहिए था कि इस वर्ष हम गंगा एक्शन प्लान की रजत जंयती धूमधाम से मनाते ,लेकिन पिछले पच्चीस साल में इस प्लान ऎसा कुछ भी नही हुआ जिसे उपलब्धि के तौर पर पेश कर सके "।
1986 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में गंगा एक्शन प्लान की शुरूवात वाराणसी में हई थी इस योजना में 2,000 करोड रूपये खर्च कर चुकने के बावजूद गंगा में प्रदुषण घटा नही बल्कि बढा ही है । वास्तव में राजीव गांधी भविष्य दृष्टा थे उन्होने यह योजना अपनी व्यक्तिगत दिलचस्पी की वजह से शुरू करवायी थी अगर इस योजना को प्रभावी ढंग से लागू कर व सभी लोगो की निज की चेतना से मां गंगा व अन्य प्रदुषित होती नदियों के बारे ध्यान रखा होता तो शायद यह ब्लाग भी न लिखा गया होता। पढे अन्य पोस्ट " गंगा की इस हालत का जिम्मेदार कौन ?,गंगा नदी ही नही अद्धभुत संस्कृति .... कितने भी करोडो खर्च कर लो मां गंगा तब तक पुर्ण रूप से प्रदुषण मुक्त व स्वच्छ नही होगी जब जक गंदे नाले फैक्टियों के अपशिष्ट , मल, कुडा कचरा ,मरे हुए जानवर और यह भावना गंगा में प्रवाहित कर दो ,यह भावना मन से नही निकलेगी तब तक कितनी भी योजनाये बना लो कुछ नही होने वाला जहां तक बात जनता से सहयोग लेने की है तो यह कैसे संभव है जब उन्हे यही बताया जायेगा की गंगा में बहा दो, गंगा तो लोगो के अपशिष्ट बहा ले जाने मात्र के लिए जान पडती हो मानो .... तब उसके जल को आचमन के लिए लायक कब तक रख पायेगे......?
Sunita Sharma
freelancer journalist
Uttarakhand
3 comments:
गंगा और यमुना की दशा सुधारने के लिये वर्षों से योजनाएं बन रही हैं. आवश्यकता है उनके प्रभावी कार्यान्वन की..सार्थक आलेख
गंगा जी की शुद्धि के नाम पर केवल धंधा हो रहा है वह बंद होना चाहिए --गंगा जी को केवल अबिचल बहने दीजिये बस अपने-आप सब ठीक हो जायेगा.
कहते हैं `मन चंगा तो कथरोट में गंगा` पर जिनको माँ गंगाजी के दर्शन रोज़ होते हैं वे सभी धन्य हैं और सभी के गंगाशुद्धिकरण के विचारों का आदर और अमल करना चाहिए । सार्थक पोस्ट,आपको अनेकोनेक बधाई।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
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