जैसे -जैसे गर्मी से पारा बढता जा रहा है वैसे वैसे तीर्थ नगरी की मुशकिलें भी बढती जा रही है । भीषण गरमी के कारण बीमारियां तो अपने पाव पैसार ही रही है उस पर चार धाम यात्रा के लिए यात्रियों की संख्या में कमी होने बजाय बढोतरी ही हूई है। इतनी अधिक संख्या में यात्री होने की वजह से चारधाम यात्रा के लिए प्रतिदिन सौ से भी ज्यादा बसें चारधाम यात्रा के लिए भेजी जा रही है फिर भी यात्री कई दिनों तक बस अडडे् में इंतजार करने को विवश है बस न मिल पाने के कारण वह तीर्थ नगरी में ही रूकने को मजबूर है इतने समय यही पर रुके रहने के कारण चारधाम यात्रा तक वह पहुंच ही नही पा रहे है साथ यात्रा के लिए वह जो रुपये पैसे खाने पीने को जा कुछ भी साथ लाये सब यही खर्च हो गया। चार धाम यात्रा का प्रवेश द्वार होने के कारण चार धाम यात्रा का संचालन यही से होता है । इसकी बाबत प्रशासन द्वारा यात्रियों की सुविधाओ के लिए खासे इन्तजाम भी किये जाते है पर यात्रियों की तदाद का देखते हुए यह सभी व्यवस्थायें प्रभावी नही रह जाती है। संयुक्त रोटेशन के तहत जिन बसों का संचालन किया जा रहा वह बहुत कम है ।यात्रा व्यवस्था के लिए बनायी गयी सयुक्त रोटेशन में इन कमियो के लिए प्लानिंग की कमी माना जा रहा है। ट्रेवल एजेंट भी अपनी मनमानी से बाज नही आ रहे जिसका प्रभाव सीधा यात्रा पर पड रहा है। गुस्सायें यात्रियों ने जाम तक लगा दिया बसे न मिल पाने के कारण यात्री बेहद खफा है ।
देश के विभिन्न स्थानो से आने वाले यात्रियों की अत्याधिक संख्या के कारण इस तरह की समस्या तो आयेगी ही पर प्रशासन की भी जिम्मेदारी दुगनी हो जाती है पर लगता है यहां अव्यवस्था से दो चार होना इस धार्मिक नगरी की आदत ही बन चुकी है कारण जगह जगह बढता अतिक्रमण,सडको पर यात्रियों के साथ घुमते आवारा पशु ,टैम्पुओ का चीखता शोर अब तो यहां की खास पहचान बन चुके है क्या करे भगवान भरोसे ही तो है सब व्यवस्थाए इससे क्या फर्क पडता है जिस तीर्थ नगरी की यात्रा के लिए दुसरी जगहो से लोग घुमने व तीर्थ करने गंगा नहाने आते है उन्हे बदले क्या वह सब कुछ मिल पाता है?
देश के विभिन्न स्थानो से आने वाले यात्रियों की अत्याधिक संख्या के कारण इस तरह की समस्या तो आयेगी ही पर प्रशासन की भी जिम्मेदारी दुगनी हो जाती है पर लगता है यहां अव्यवस्था से दो चार होना इस धार्मिक नगरी की आदत ही बन चुकी है कारण जगह जगह बढता अतिक्रमण,सडको पर यात्रियों के साथ घुमते आवारा पशु ,टैम्पुओ का चीखता शोर अब तो यहां की खास पहचान बन चुके है क्या करे भगवान भरोसे ही तो है सब व्यवस्थाए इससे क्या फर्क पडता है जिस तीर्थ नगरी की यात्रा के लिए दुसरी जगहो से लोग घुमने व तीर्थ करने गंगा नहाने आते है उन्हे बदले क्या वह सब कुछ मिल पाता है?
1 comment:
तीर्थ स्थलों की व्यवस्था निश्चय ही शोचनीय है...बहुत सार्थक प्रस्तुति....
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