
नहीं झपकी पलक..
बाल कौतुक, सरलता
ओ गंगा ,क्यों बांधा मोहपाश में !
विस्मुर्त अतीत, और गोद,जल में करना आराम.
नहीं भूलते वो पल
निर्मल जल तो कभी धुंधला
कभी शांत तो कभी रौद्र तुम्हारा रूप.
नहीं भूलते वो पल
निर्मल जल तो कभी धुंधला
कभी शांत तो कभी रौद्र तुम्हारा रूप.
बना नितान्त प्रलयकारी
अधम और अज्ञानी
करते रहे नादानी
क्षमा इनके कर्म करो.
ओ गंगा क्यों बांधा मोहपाश में !
समझा नहीं जिन्होंने मोल तुम्हारा
उनका जीवन..क्या जीवन!
तुम्हारा वैभव और गौरव
पुरातन परम्परा व अधर्म
कुसंस्कार और अनैतिकता
सब के बीच रुदन तुम्हारा
सुन कर किया अनसुना
डर है चेतन, अवचेतन में
ओ गंगा, क्यों बांधा मोहपाश में !
अधम और अज्ञानी
करते रहे नादानी
क्षमा इनके कर्म करो.
ओ गंगा क्यों बांधा मोहपाश में !
समझा नहीं जिन्होंने मोल तुम्हारा
उनका जीवन..क्या जीवन!
तुम्हारा वैभव और गौरव
पुरातन परम्परा व अधर्म
कुसंस्कार और अनैतिकता
सब के बीच रुदन तुम्हारा
सुन कर किया अनसुना
डर है चेतन, अवचेतन में
ओ गंगा, क्यों बांधा मोहपाश में !
1 comment:
बहुत सुन्दर प्रेरणास्पद -----------!
ओं गंगा क्यों बांधामोहपाश में--------?
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