यह ब्लाग समर्पित है मां गंगा को , इस देवतुल्य नदी को, जो न सिर्फ मेरी मां है बल्कि एक आस्था है, एक जीवन है, नदियां जीवित है तो हमारी संस्कृति भी जीवित है.
Thursday, September 10, 2009
ऋषिकेश एक तपस्थली भाग--3
ऋषिकेश की प्राचीनता-डा0शिव प्रसाद नैथानी ने अपनी पुस्तक उत्तराखण्ड के तीर्थ् एंव मदिर में उल्लेख् किया है कि "महाभारत से पता चलता है कि यहां नागों का राज्य था जो संभवत आर्य ही थे परन्तु उन्हे वृषल माना जाता था ।यघपि हम यह जानते है कि कुरूवेश में नाग रक्त था जनमेजय का प्रधान पुरोहित सोमश्रवा नागमाता का पुत्र था,और अजुर्न ने इसी हृषिकेश में नागराज कुमारी उलुपी से विवाह किया था ।"1982 में भ्ररतमंदिर में हुई पुरातात्विक खुदाई से ज्ञात होता है कि 2000 साल पहले यह तीर्थ जनसंकुल था और उत्तराखण्ड जाने वाला महापथ यही से होकर गुजरता था । ऋषिकेश के शैव स्थानों की प्राचीनता का सम्बन्ध र्वमन नरेशों से जोडा जा सकता है। ईशावर्ममन के पुत्र सवर्वमन की हुणों पर विजय के स्मारक अभिलेख निर्मड हिमाचल तथा सिरोली में (चमोली) में विघमान है।यह वर्मन नरेश शैव थे गौड नरेशों की विजवाहिनियां धर्म विजय स्वरूप में ऋषिकेश से होकर आगे बढी थी बाद में कन्नौज पर प्रतापी भोज प्रतिहार ( 836-85) का शासन आया, जिसकी राज्य सीमा बदरीकेदार तक थी जो "विष्णु की निर्गुण-सगुण रूप में ऋषिकेश की पूजा करता था ।" आठवी से दसवी शती ई0 के मध्य यहां कत्यूरी सम्राराज्य था इस वंश के नरेशों की प्राचीन राजधानी कार्तिकेयपुर नाम से जोशीमठ में थी मध्यकाल तक यहां बहुत कम जनसंख्या थी । तीर्थ यात्रा के समय ही यात्रीगण आते शेष समय केवल मंदिर के पुजारी एंव तीथ पुरोहित ही रहते अधिकांश स्थान में वांस झाडियों के साथ यहां अनेकों मंदिरों के विघमान होने के संकेत मिलते है। 1909 तक ऋषिकेश कैसा था इस बारे राहुल सांस्कृत्यायन की टिप्पणी उदघृत करते हैं। -"1909 में कभी ऋषिकेश 10-5 घरों का गामडा़, अब अयोध्या के कान काटता है।"
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25 comments:
स्वागत है आपका, निरंतर सक्रिय लेखन से हिन्दी ब्लॉग्गिंग को समृद्ध करें. धन्यवाद!
- सुलभ जायसवाल सतरंगी (यादों का इंद्रजाल)
Jankari achchhi lagi.Pichhale mahine hi hrishikesh aur Haridwar ki yarta ki hai maine.
Navnit Nirav
स्वागतम,अच्छा लेख,अच्छे चित्र ।
swaagat. rishikesh ke itihaas aur praacheen dharoharon par aur vistaar kee apeksha hai.
sundar.narayan narayan
राहुल सांस्कृत्यायन की टिप्पणी ने इस आलेख को और भी सुंदर बना दिया.
well.....
welcome sunitaa je at blog family !
पढ़कर अच्छा लगा, ज्ञान बढा,
शुभकामनाए!!!
Thanks for for all comments i will give other historic and puranic informations of my area.........
आपके ब्लोग तक जाने के लिये वयस्क होना क्यों जरूरी है समझ नहीं आया. पता करें ये क्यों हो रहा है?
Bahut Barhia...aapka swagat hai... isi tarah likhte rahiye...
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सुनीता जी आपना प्रयास सराहनीय है।
bahut hi accha prayash hai aapka likhati rahe "
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शुक्रिया सभी का जो मेरे इस लेख पर कमेंट किये सिर्फ यही कहुगी,
नजर होती है
अर्श से उठा आसमां पर
बैठा देती है,
नजर बनी रहे सदा बस..........
सराहनीय प्रयास
आपका स्वागत है
शुभकामनायें.
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देखा है मैंने पहाड़ो को करीब से : पर जान नहीं पाया उनकी ऊँचाइयों को : काश मेरा मन भी पहाड़ो जैसा ऊँचा होता .... पेड़ की तरह परछाइयां देता .. मेरा जीवन .. मैं स्वर्ग की कामना नहीं करता पर कोशिश करता हूं की आज भी स्वर्ग मेंजियूं
man ganga ko samarpit aap ka blog "ganga kae karib" ko abhi dekh,bahut sundar likha hae aap ne ,badhai
pradeep srivastava
सूचनापरक एक अप्रतिम प्रस्तुति।
sundar aur sarahniya ! photographs bhi bade achchhe lage . kabhi mera blog sherpatnite padhiye .
अति सुंदर
Achhi rachna.
आभार
आभार
धन्यवाद
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