Wednesday, September 30, 2009

गंगा नदी ही नही एक अद्भभुत संस्कृति भी....... अन्तिम भाग.. (वर्तमान परिवेश में गंगा)




गंगा नदी ही नही संस्कुति भी....अन्तिम भाग.........
मैने अपनी पुरानी पोस्टों में ज्रिक किया था कि गंगा नदी से  मूर्तिकार व चित्रकार सभी प्रभावित रहे है, तो यहां पर यह बताना और भी जरूरी हो जाता है कि हमारे समाज के मनोरंजन का सबसे सशक्त व असरदायक माध्यम सिनेमा को भी गंगा नदी ने आकर्षित किया चाहे फिल्मों की पटकथा की मांग हो या फिर गंगा के उपर बनी फिल्में व गाने ही क्यूं न हो कितनी ही किताबें ,लेख, आडियों विडियों एलबमें ,चित्रकथायें, ड्राक्युमेंट्री इत्यादि गंगा नदी पर बन चुकी है।गंगा के बारे में अभी तक उसकी ऎतिहासिकता एंव पौराणिकता व नदी किनारें पल्लवित हुई संस्कुति के बारे काफी कुछ बता चुकी हूं।  अब आगे....अगर पौराणिकता एंव  धार्मिकता की दृष्टि से हटकर गंगा को एक नदी के रूप में देखे तो संसार के लम्बे जलमार्गों में सें एक गंगा नदी का नाम भी आता है ,यही पहली ऎसी नदी है जिसकी जलधारा को नौकाआ द्वारा भारवहन के लिए तथा आवागमन के प्रमुख साधन के लिए प्रयोग किया जाता है ।नदी में मछलियां तथा सर्पो की अनेक प्रजातियां पायी जाती है, यह कृषि ,पर्यटन ,साहसिक  खेलों के लिए एंव उघोगों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दंती है ।वैज्ञानिक  मानते है कि इस के नदी के जल में बैक्टीरियों फेज नामक विषाणु होते है जो जीवाणु व विषाणु को जीवित नही रहने देता।
इसकी मिटट्री.घाटी उपजाउ एंव घनी आबादी वाली हैं कलकत्ता,हावडा,पटना,इलाहाबाद एंव कानपुर जैसे बडे व औघौगिक नगर इसके किनारे बसे है।कलकत्ता तक पहुंचते -पंहुचते  गंगा इतनी प्रदुषित हो  जाती है कि उसकी वैभवता व पवित्रता मात्र काल्पनिक लगने लगती है किनारे बसे तीर्थो ,नगरों में धार्मिक ,सामाजिक,सांस्कृतिक व पर्यावरण का प्रदुषित प्रकोप आज की कटु वास्तवकिता है वे र्तीथ जिनको देखने मात्र से  ही मनुष्यों कों मोक्ष प्राप्त होता था उनकी पावनता संदेहास्पद हो चुकी है।


ऎसी -ऎसी परियोजनायें चलाई जा रही है कभी बिजली उत्पादन के नाम पर कभी विकास के नाम पर, गंगा के अविरल प्रवाह को बांध दिया गया जिसका विरोध सन्त समाज शुरू से ही करता रहा है पर सरकार को इससे क्या ?परियोजनाओ के नाम पर राजनीति ही की जाती है। प्रतिदिन टनों की मात्रा में घरेलू व प्रदुषित सामग्री से गंगा के पवित्र जल को निरन्तर प्रदुषित किया जा रहा है जबकि विगत कई वर्षो से चलायी जा रही सफाई परियोजनायें व अभियान उतने ठोस व प्रभावशाली नही हो पाये जितने होने चाहिये थे।अंतर्राष्टीय बर्फ कमीशन का अनुमान है कि आने वाले चालीस सालों में सारे ग्लेशियर सिकुड जायेगे,गंगोत्री ग्लेशियर भी धीरं-धीरे सिकुड रहा है..............।
गंगा को सिर्फ स्वर्गिक नदी मान कर पूजा करने के व स्नान करने के अलावा यह सोचने की आवश्यकता है कि गंगा ने जो हमें समृद्वशाली संस्कृति ,सभ्यता ,उपजाऊ घाटी ,वन-सम्पदा ,मैदान ,जल-सस्थान ,विघुत -विकास की सम्भावनायें दी है उनका संरक्षण कितना आवश्यक है । तेजी से बढता प्रदुषण इस सबको विनाश की और ले जायेगा और क्या हम अपनी सभ्यता संस्कृति को यूं ही नष्ट होते देखते रहेगे ?क्या हिमालय की सुध लेने की आवश्यकता नही है ?इस वैज्ञानिक ,भौतिकतावादी युग में  अपनी जलवायु प्रकुति को देखते हुए विकास का माडल चुनने की आवश्यकता है न की किसी की नकल की ।
बहराल तेजी से बदलते भागते इस युग में जहां सभ्यता व संस्कृति जैसे शब्द अपने मायने खो रहे है वहां सदियों से गंगा के प्रति जों श्रद्वा व भक्ति हमारे पूवजों ने हमें सिखाइ है उसका सार इसी में है हम इसकी पवित्रता व वैभवता को बचायें रखने के लिए प्रयत्नशील हो आज से ही........कही ऎसा न हो कि बस हम यह गीत ही गाते रह जाये कि "गंगा में स्नान करेगे अपनी मुक्ति के लिए "......और आने वाली पीढी को उसकी कहांनियां ही सुनाते रह जाये..........।  


                                       ----------------                  
(चित्र गुगल व टि्प एडवाइसर से साभार)

9 comments:

रंजना said...

सही कहा आपने......

जो स्थिति है,बहुत ज्यादा समय नहीं लगेगा जब गंगा केवल कहानियों,आख्यानों में ही रह जायेंगी....सही ही है,मनुष्य इस लायक बचा नहीं कि उसे जान्हवी का अमृत मिले...

शरद कोकास said...

गंगा मे पिघली हुई बर्फ पानी बनकर बहती है इसलिये यह जल शुद्ध होता है लेकिन हम मनुष्य इसे दूषित कर देते है ।

shama said...

Sach hai...aur in nadiyon ko hamaree pracheen dharohar hain, ham nasht kiya jaa rahe hain!
Aapki tppanaee padhee..'ek sawal tum karo pe'...

Auarat kee awasthake kayee karan hain....jimhen madee nazar rakhte hue kayee sawal uthte hain..kya aap is blog pe as a co-author likhna chahengee? I will be grateful! Let me know so that I can invite you!

http://shamasansmaran.blogspot.com

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Ria Sharma said...

Sunita ji...dhanyvaad aap ke visit ka mere blog par..va aapke amantran ka bhee. kal hee vapas aayi hun Uttarkhand yatra se...:))Rishikesh to aksar aati hee rahti hun...kabhe milna bhee ho hee jayega

Abhaar !!

डॉ टी एस दराल said...

बहुत सही लिखा है. गंगा को बचाना हम सब का कर्तव्य है.

सुनील पाण्‍डेय said...

सुनीता जी बहुत अच्‍छा, गंगा मैया को बचाने के लिए हमें आगे आना होगा।

सुनील पाण्‍डेय

इलाहाबाद।

09953090154

Vinaya Sharma said...

Ganga ek nadee hee nahin...Jeewan Dhaara hai...pjyaneeya hee nahee...man hai hum shbee bharatvasiyon kee.....bahut hee gyanvardhak lekh hai...
Main Bhaaratvarsh ke "sanatan prernaayon" ka ek Blog bana raha hun..apka yeh lekh bhee mere us blog ka ek bhaag rahega.....yadi aap anumatee denge...aashaa hai aapkee anumati hogi...?

Vinayak Sharma said...

Ganga ek nadee hee nahin...Jeewan Dhaara hai...pjyaneeya hee nahee...man hai hum shbee bharatvasiyon kee.....bahut hee gyanvardhak lekh hai...
Main Bhaaratvarsh ke "sanatan prernaayon" ka ek Blog bana raha hun..apka yeh lekh bhee mere us blog ka ek bhaag rahega.....yadi aap anumatee denge...aashaa hai aapkee anumati hogi...?

मनोज कुमार said...

निःसंदेह यह एक श्रेष्ठ रचना है। इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

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