पिछली पोस्ट में आपने कुम्भ-नगरी हरिद्वार की प्राचीनता के बारे में पढा शेष अब आगे........ गंगाद्वार के बाद कनखल,मायापुर आदि जो नाम प्रसिद्व हुए उनके पीछे हमें सभी पुराणो में शिव से सम्बन्धित कथानक ही मिलते है.......गंगाद्वार के बाद इसका नाम हरद्वार पडा जहांगीर के काल मे टामकोरियट ने हरिद्वार की यात्रा की थी और चेपलिन टोरी को लिखा थ कि "शिव की राजधानी हरद्वार में गंगा की तीव्र धारा है"।
ऐतिहासिक काल के क्रम में 1951 ई0 में गंगा नहर खोदतें समय ताम्रसंस्कृति तथा 1953 में यज्ञदत्त शर्मा के उत्खनन द्वारा यहां पाषाण कालीन बस्ती के चिन्ह मिलने से स्पष्ट होता है कि यहां उत्तरपाषाण काल की पुष्टि होती है ...इसके बाद महाभारत में वर्णित युग में प्रवेश कर जाते है.......।
वनपर्व से पितृतर्पण हेतु आश्रमवासिक पर्व से यहां सन्यास लेकर आने वाले तपस्वियों के उल्लेख मिलने लगते है । गंगासागर से गंगाद्वार तक 400 अशवमेध यज्ञ भरत द्वारा करने से इस निर्णय पर पहुचते है कि प्रारम्भ में यह क्षेत्र कोसलराज्य के अन्तर्गत था लक्ष्मण पुत्र द्वारा इसे अंगदीया नाम की राजधानी बनाया गया इसके बाद मगध के आधीन फिर कालसी का शिलालेख अशोक महान की राज्य सीमा विस्तार का एक सशक्त प्रमाण है ............. कूर्माचल एंव गढवाल की जागर लोकवार्ताओ में मायापुर हाट के पुण्डीर राजा की पुत्री कत्यूरी रानी बनकर जिया नाम से प्रसिद्व होती है व सैययद आक्रमणों से मुकाबला करती है । दसवी शती ई0 तक के युग मे यहां नाथ/सिद्वों का प्रधान्य रहा रमोल गाथा में भीमगोडा के लिए गदाधर बाजार नाम मिलता है जो अधिक सार्थक है..........इस युग में भारत के अनेक क्षेत्रों से यहां दिव्यमूर्तियों की स्थापना भी हई गुरूकुल कांगडी के संग्रहालय में पायी जाने वाली मूर्तियों सन्दर्भ में हम यह भी कह सकते है कि इनका मूल स्रोत दक्षिण भारत ही था ।
चौदहवी शती ई0 में ईब्नवतूता के विवरण से पता चलता है कि यहां के योगी सिद्वों की चमत्कार पूर्ण कहानियां दिल्ली सल्तनत के दरबारों तक जा पहुची थी उसने लिखा है कि नंजौर या बिजनोर के आसपास ऎसे लोग रहते है कई दिनो तक निर्जल,निराहार रह जाते है वह यदि किसी पर क्रोध कर दे तो तत्काल उनकी मृत्यु हो जाती है जब ऎसे ही कुछ योगी सिद्व तुगलक के दरबार में पहुचाये गये तो वह उनके कारनामे देखकर हैरान रह गया..............।
आज भी हरिद्वार इनसे वंचित नही इस कुम्भ नगरी की दिव्यता व यहां की ख्याति ने ही इसे विधर्मियों का निशाना बनाया.................जारी है अगले भाग में
नजर डालते रहिए........ कुम्भ नगरी हरिद्वार ।
(Photo's from google and Anoop khatri)
सुनीता शर्मा
यह ब्लाग समर्पित है मां गंगा को , इस देवतुल्य नदी को, जो न सिर्फ मेरी मां है बल्कि एक आस्था है, एक जीवन है, नदियां जीवित है तो हमारी संस्कृति भी जीवित है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Featured Post
यहां वीरभद्र प्रकट हुआ था ----- वीरभद्रेश्वर मंदिर (ऋषिकेश)
पिछली पोस्ट में मैने ऋषिकेश के वीरभ्रद्र क्षेत्र का इतिहास बताया था पर इस पोस्ट में यह बता दू कि क्यो इस क्षेत्र को वीरभद्र के नाम से जाना ...
-
भगीरथ घर छोड़कर हिमालय के क्षेत्र में आए। इन्द्र की स्तुति की। इन्द्र को अपना उद्देश्य बताया। इन्द्र ने गंगा के अवतरण में अपनी असमर्थता...
-
आदिकाल से बहती आ रही हमारी पाप विमोचिनी गंगा अपने उद्गम गंगोत्री से भागीरथी रूप में आरंभ होती है। यह महाशक्तिशाली नदी देवप्रयाग में अलकनंदा ...
-
बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे ! हम भी कुंभ नहा आए ! हरिद्वार के हर की पौड़ी में डुबकी लगाना जीवन का सबसे अहम अनुभव था। आप इसे...
2 comments:
ओह, हरिद्वार देखना होगा इस लेख के सन्दर्भ में।
nice
Post a Comment