Monday, December 21, 2009

हरिद्वार....... कुम्भ नगरी भाग 1

2010, आने वाले साल की दस्तक सुनाई देने लगी है इसके साथ ही 2009 समाप्ति की ओर अग्रसर  है खास बात यह भी है कि गंगा के करीब सुनाई पडती है वो घंटिया जो आगामी मंहाकुम्भ का आगाज कर रही  है हिन्दुओ के अत्यन्त महत्वपूर्ण नगरी में जिसे मोझ नगरी व कुम्भ नगरी भी कहा जाता है।

गंगा द्वार अथवा हरिद्वार भ्रारत का विश्व प्रसिद्व तीर्थ है ,
 अयोध्या,मथुरा,माया,काच्ची,अवन्तिका 
 पुरी,द्वारावती,चैव सप्तैता तीर्थ मोझदायिका
इस शलोक में माया से अर्थ मायापुर अर्थात हरिद्वार से है यह भारत के चार प्रमुख कुम्भ क्षेत्रो में से एक एंव सात मोझदायक तीर्थो में से एक है इसके जो नाम प्रचलित है उनमें कपिलाद्वार ,स्वर्गद्वार ,कुटिलदर्रा,तैमुरलंग वर्णित चौपालीदर्रा, मोयुलो इत्यादि है लगभग आठवी शती में इसका नाम हरिद्वार पडा ।यह तीर्थ हिमालय या शिवालिक के मध्य से प्रारम्भ हो जाता है।गंगा के दायी और विल्वक और बायी ओर के पर्वत का नाम नीलपर्वत है हजारों वर्ष की ऐतिहासिक अवधि के दौरान यह अनेक नामो से विख्यात रहा है  जिसका जिक्र किया जा चुका है महाभारत के वनपर्व अ088 के अनुसार - विभेद तरसा गंगा,गंगाद्वारे युधिष्ठर ।
पुण्य तत्खायते,राजन्ब्रहृषि गण सेवितम।8। 
इस पुण्य क्षेत्र में मानव ही नही,देव गन्धर्व एंव देवर्षि भी रहकर पुण्यफल प्राप्त करते है यहां का कनखल व मायापुर क्षेत्र अत्यंत पौराणिक एंव ऐतिहासिक है गंगा की बदलती धाराआं ने ,मुस्लिम आक्रान्ताओ ने तथा निकाली गयी विशाल नहरों ने पुरातत्व सामग्री को गहरे गर्तो में दबा दिया..............आगे की पोस्ट में पढिये किस तरह यहां के लोगो के किस्से दिल्ली सल्तनत तक पहुचते थे अभी जारी है । 


सुनीता शर्मा

1 comment:

मनोज कुमार said...

बहुत ही अच्छा पोस्ट। बहुत अच्छी जानकारी।

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