सैयद-लोदी शासनकाल में यह तीर्थ सल्तनत की किरकिरी बना रहा पर शिवालिक श्रेणियों ने घने वनों ने इस तीर्थ पर आने विपदा से रक्षा की । रामानन्द के आगमन के बाद रामावत सम्प्रदाय और वैष्णव लहर जो चली उसमें वल्ल्भाचार्य की बैठक ने हरिद्वार को हरिमय बना दिया। उत्तराखण्ड यात्रा में यात्रियों,वैरागियों की अभूतपूर्व वृद्वि होने लगी । अकबर की सहष्णुता ने मानसिंह को हरिद्वार में पैडीघाट तथा छतरी बनाने की प्रेरणा दी ।
लंडौरा राज्य कायम होने पर कनखल में सुन्दर मंदिर बने मराठों ने रूहेलखण्ड ,दुनमाल को लूटा परन्तु 176ई0 में अहमदशाह अब्दाली से पानीपत का तीसरा युद्व हारने पर मराठों की छत्रछाया हटने पर पुन: रूहेलों के धावे होने लगे । 1785 में गुलाम कादिर ने हरिद्वार को लूटा । 1796 ई0 में पंजाब के सिक्ख सरदारों ने गुसाइयों से अनबन होने पर घुडसवारों के बल पर अन्तिम स्नान के दिन सो सन्यासी,वैरागी,गुंसाई नागा मार डाले ।1804ई0 में गोरखों का गढवाल पर अधिपत्य होने से हरिद्वार ,स्त्री, पुरूष दासों की बिक्री का एक बडा केन्द्र बन गया ।
1855 में मायापुर से गंगा नहर निकाली गयी इससे मायापुर का पुन: विकास होने लगा ज्वालापुर समृद्व मण्डी बन गया । 1886 में लक्सर से व 1900ई0 में देहरादून रेलमार्ग जुडने से यह तीर्थ नगर अधिक विकसित होने लगा । आज यह पूरे विश्व में प्रसिद्व है, 2010 कें महाकुम्भ की अगुवायी को तैयार है।
सुनीता शर्मा
1 comment:
एक बहुत ही अच्छी पोस्ट के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
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