Saturday, January 23, 2010

प्रयोजन

कहानी- प्रयोजन


गौशाला में ब्रह्म-मुहुर्त में बाँसुरी का मीठा सुर सुनने के लिये आस-पास के सभी पेङोंसे पक्षियोंका झुण्ड एकत्र आ जाता. उनका कलरव नये बछङे बङे मनोयोग से सुनते, मस्त चैकङियाँ भरते. उनकी चौकङियों को देखकर पेङों-झाङियों के झुरमुटों से झांकते हिरण और खरगोश चम्चल-चपल हो उठते. तितलियाँ-भौंरे आदि का नर्तन-गायन चलता. और कलियाँ चटक कर फ़ूलने को मचल जातीं.
आइ.आइ.आइ.टी. के नये बैच के छात्रों में गौसेवा का बङा उत्साह रहता है. गौसेवा के निमित्त इक्कीस छात्रों का दल हर पखवाङे बदला जाता है ताकि नये आये सभी ५०० छात्र यह अवसर पा सकें. ६ जन गोबर उठाकर गैस-संयत्र में डालने के लिये बनी प्रक्रिया में जुटते हैं, उनके जिम्मे ही संयंत्र में से निकली स्लरी के वितरण की जिम्मेदारी रहती है. दो जन गौ-मूत्र एकत्र करके उसे औषधालय पहुँचाते, जहाँ उन्हीं को औषधि-निर्माण आदि कार्य में अगला एक घंटा नियोजित करना है. ६ जन गायों को चारा आदि देकर दूध निकाल लेते हैं. साठ गायों का लगभग पाँच सौ लीटर दूध कम्प्युटर में व्यवस्थित रूप से दर्ज होकर छहों रसोई घरों में पहुँच जाता है. जो छात्र अब तक वंशी बजा रहा था, वह अपने प्रिय बछङों की देखभाल में अन्य दो साथियॊ के साथ जुट जाता है. बचे छात्र गौशाला को धो-पौंछ कर साफ़ करते हैं, तब तक सूर्य देवता की ऊषा किरणें आकर पूरी गौशाला को चमका देती हैं. अब तक गौशाला सहित पूरे परिसर के बल्ब इन्हीं सूर्य द्वता की रोशनी से ही रोशन थे. ऊर्जा के सही स्रोतों पर इस संस्थान ने पिछले दस वर्षों में असाधारण प्रगति की है. हैद्राबाद सहित देश के सौ शहरों और एक लाख गाँवों में अब ऊर्जा की जरूरतों के लिये न कोयला चाहिये, न पेट्रोल.


आइ.आइ.आइ.टी. के प्रत्येक छात्र को प्रतिदिन एक किलो दूध, पीने को मिलता है. दही-छाछ और घी की कोई कमी नहीं, आवश्यकतानुसार यहाँ की गायों को दूहकर बना लिया जाता है. गोबर-गेस संयन्त्र से निकलने वाली गेस ही परिसर की रसोई के लिये पर्याप्त है, फ़िर आवश्यकतानुसार सौर-ऊर्जा भी प्रचुर संग्रहीत रहती है. छात्र अपने-अपने कमरों की दीवारों पर हर पखवाङे गोबर स्लरी का लेपन कर लेते हैं. इसी संस्थान ने अन्तरताने के जो नये कोड तैयार किये हैं, उनका दुष्प्रभाव रोकता है यह लेपन. छात्रों के भोजन लायक सब्जियाँ और सभी फ़ल इसी परिसर में उपलब्ध हैं. हर छात्र की अपनी-अपनी सब्जी की बगिया है. रसायनिक खाद का चलन कबका बन्द है, अब तो सारी कृषि ही गौ-केन्द्रित हो गई है. बाहर से जो अनाज-वस्त्र आदि मँगाने होते हैं, उनके बदले गौशाला की औशधियाँ और घी का विनिमय ही पर्याप्त हो जाता है. संस्था के कुलपति का संकेत रहता है कि संस्थान स्वावलम्बी रहे. स्वावलम्बन के कई प्रकल्प संस्थान के छात्रों के निर्देशन में देश भर में चलते हैं. अन्तरताने पर ही सारा प्रशिक्षण-नियंत्रण हो जाता है, किसी को यात्रा करने की न तो आवश्यकता होती है, न व्यर्थ का शौक.
परिसरमें एकभी व्यक्ति वैतनिक नहीं है. श्रम-विनियोजन की स्वीकृति समाज में बनने लगी है. यह संस्थान जागृत कुलपति की छत्र-छाया में परिवार की तरह जागृति-क्रम में अध्ययन रत है. परिसर का चप्पा-चप्पा किसी न किसी सदस्य के देखरेख में सजा-संवरा रहता है. कुलपति सहित सभी समर्थ सदस्य श्रम-नियोजन करते हैं. सुचिन्तित और सुव्यवस्थित रूप से प्रतिदिन लगभग चार हजार घंटों के श्रम से सबकी आवश्यकता से अधिक का उत्पादन संस्थान में हो जाता है. धरती के साथ श्रम के सिवा यहाँ अनेक प्रकार की मशीनों का निर्माण और उनपर नये शोध का क्रम चलता है. इस सबसे अर्जित आय मुद्रा रूपमें जमा रहती है, और उसीसे उच्च तकनीकी शोध के लिये आवश्यक सामान मंगाया जाता है. शिक्षा-संस्कार को अर्थार्जन से ऊपर रक्खा गया है. न छात्रों को फ़ीस देने की आवश्यकता है, न कोई प्राध्यापक वेतन स्वीकारता है. शोषण-जनित सारी व्यवस्थायें बदल गई हैं. जागृत मानवों के आचरणका अनुसरण-अनुकरण करतेहुये स्व का अध्ययन करना इस संस्थान के प्रत्येक सदस्य का लक्ष्य बन गया है, इस क्रममें परिवार भाव और स्वावलम्बन की सिद्धि बन गई है.
आज साप्ताहिक सम्मेलन है, कुलपति जी सबको सम्बोधित करेंगे. अतः सभी जन अपना-अपना काम समेट कर मिलन स्थल पर एकत्र आ गये. कुलपति जी के आने से पूर्व संस्था सचिव इस संस्थान के विकास-क्रम और सदस्यों के जागृति-क्रम का ब्यौरा रखते हैं. पिछले सप्ताह सन २००९ तक का विवरण आ गया था, आज इसकी अंत्तिम कङी में २०१० से लेकर वर्तमान २०२० तक का विवरण आना है. सभी जन उत्सुक हैं सुनने के लिये. सचिव ने बताया, -
“एक दशक बीत गया उन बातों को. आज तो वह सब एक बुरा सपना सा लगता है, किन्तु तब हममें से कई लोग उस भयंकर दौर में स्वयं भी कर्ता के रूप में शामिल थे. जैसे मैंने पिछले सप्ताह आपको बताया था कि भारत में प्रान्तवाद का अन्तिम चरण तेलंगाना आन्दोलन के रूप में २००९ के अन्तिम दिनों शुरु हो चुका था. २०१० में उसे लेकर देश में बङी उथल-पुथल हुई. सैंकङों आत्म-हत्यायें, हज्जारों का खून बहा, पढाई-लिखाई सब चौपट हुई. अपना यह संस्थान भी सरकारी बेवकूफ़ी का शिकार बना. चूँकि आन्ध्र के शेष सारे संस्थानों में सेमिस्टर रद्द करने पङे थे, तो लोक-भावना का ध्यान रखते हुये हम पर भी आदेश लागू हो गया, जबकि यहाँ के सारे छात्र बहुत मनोयोग से शोध में लगे थे. इस हालत में आधे से ज्यादा छात्र विदेश चले गये, शेष सरकारी सिस्टम के विरोध में कूद पङे. संस्थान ने उसी समय सरकारी अनुदान लेना बन्द कर दिया, स्वावलम्बन और समाज के सहयोग से चलाने पर चिन्तन चला. स्वावलम्बन के दिशा में तभी किसी ने १० दुधारू गायें भेंट की थी. आज हमारी गौशाला में सौ से ज्यादा गायें, आठ साँड, साठ बैल और इतने ही बछडे हैं. गाय के गोबर और मूत्र ने यहाँ की माटी में जेवन्तता भर दी. पहले फ़ल-फ़ूल नहीं थे, यह सारी गाय के साथ जुङे रचना है.
२०१० के नवम्बर महीने में चीन की चालाकी और पाकिसतानी हैकरों की मदद से देश का अर्थ-तन्त्र चौपट हो गया. रिजर्व बैंक सहित सारे अर्थ- केन्द्र दिवालिया हुये. देश में चीनी मुद्रा छा गई.अपने यहाँ का बैंक भी तभी बन्द हुआ. चीन और पाकिस्तान ने भारत की सरकार के अस्तित्व पर ही प्रश्न खङा कर दिया. उस समय इस संस्थान के कुछ द्दिग्गजों ने पलट वार करते हुये पूरी दुनियाँ के दिमाग पर काबू पाने के प्रयत्न शुरु किये हैकिंग की मदद से . शिक्षा-तन्त्र में सैंध मारी, और दूरदर्शी बनकर उन-उन देशों की स्थानीय मान्यता के अनुसार परिवर्तन का पैटर्न बनाकर उसमें मध्यस्थ-दर्शन के महत्वपूर्ण सूत्र पिरो दिये. इसने अपना असर दिखाया. इस प्रकार चीन, पाकिस्तान और ब्रितैन के छात्रों ने अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं के राजनैतिक आधार पर निर्धारण पर प्रश्न उठाने शुरु कर दिये. पाकिस्तान अपने अन्तर्विरोधों के कारण पहले टूटा, २११२ आते-आते दोनों सेनायें परस्पर गले मिल रहीं थी. बांगलादेश के अस्तित्व पर पानी का संकट आया, और उस संकट ने उसे भी भारत-चीन के साथ मिलकर रहने का रास्ता दिखाया. इस बङे परिवर्तन ने दुनियाँ के भूगोल का नक्शा बदल दिया. अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की अनेक सम्स्थाओं के वजूद की नीवें हिलने लगी. बदलाव आने लगता है तो सारी घटनायें उसमें सहयोगी बन जाती हैं. उसी समय चीन में एक बङा आतंकवादी हमला हुआ. लाखों लोग मारे गये. अमेरिका ने अल-कायदा पर इस घटना का आरोप लगाया, तो पाकिस्तान की सबसे ताकतवर संस्था आइ.एस.आई. ने खुलासा किया कि अमेरिका ने ही यह काम करवाया है. सही के लिये आम आदमी के मन में स्वीकृति का भाव होता ही है, तो अमेरिका के लोगों ने अपने सरकारी सिस्टम के विरुद्ध आवाज उठाई. इस आगमें पेट्रोल का काम किया हैती के एक कम्प्युटर-इंजीनियर ने. उसने कुछ ऐसा किया कि मीडीया का चेहरा बदल गया. अमेरिकी मीडीया के मानस को बदलने का काम बहुत बङी सफ़लता थी. मीडीया का लक्ष्य अब पैसा ना होकर सत्य का प्रचार-प्रसार हो गया. इसने धन-संग्रह की सोच पर आक्रमण किया.आम आदमी की सोच में से धन-संग्रह की चाहत को निकालने का काम मीडेया ने किया. सबसे बङा आघात लगा वर्ल्ड-बैंक को. तभी एक अर चमत्कार हुआ. लङखङाते अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष पर स्विस बैंकों ने लात मार दी. स्विस-बंकों ने गोपनीयता कानून को अनावश्यक बताते हुये खारिज कर दिया.गोपनीयता कानून के टूटते ही भारत सहित अनेक देशों का अकूत धन वापस अपने देश में लाने का मार्ग साफ़ हो गया. एसिया महाद्वीप में सामाजिक/राजनैतिक/आर्थिक स्तर पर व्यापक मन्थन चल ही रहा था कि २०१४ में एक एक करके आठ जन पूर्णतः जागृत हो गये. उनमें से एक अपने संस्थान से भी थे, मगर जागृति से पूर्व ही पद-मुक्ति ले चुके थे. इन जागृत मानवों का प्रभाव सर्वत्र फ़ैलने लगा. सारे देशों में स्थानेय कारणों से तत्कालीन व्यवस्थायें टूटने लगी थी. नई व्यवस्था में मानव-केन्द्रित अस्तित्व मूलक दर्शन केन्द्र में आ गया. धर्म-सम्प्रदाय की दीवारें टूटने लगीं. धन के संग्रह की मूर्खता आम आदमी को समझ में आने लगी हैं. इस परिवर्तन में उन युद्धों की भी सकारात्मक भूमिका है, जिनमें मानव जाति को अनेक घाव मिले. किन्तु इसी पीङा ने मानव को सही की खोज में प्रेरित किया. आज पूरा अशिया एक हो चुका है. सीमाओं के आर-पार आवा-जाही खुल गई, सेनाओं की आवश्यकता ना रही. पूरे एशिया में खुशहाली है. अन्य देशों में यहाँ के लोग जागृति-क्रम में सहयोग दे रहे हैं. हमारा यह संस्थान…. नहीं … इसे संस्थान कहना ठीक नहीं होगा…. हमारा यह परिवार भी सार्वभौम अखण्ड समाज रचना में अपनी यत्किंचित भूमिका निभाने में समर्थ हो, इसी हेतु हम प्रयत्न-रत हैं. यहाँ मैं अपना एक छोटा सा संस्मरण जोङना चाहता हूँ. तब मैं यहाँ प्रथम वर्ष का छात्र था. शायद २०१० के जनवरी महीने की बात है. बाहर से आये किसी मेहमान ने इसी मैदान में फ़ुटबाल खेलते बच्चों को देखकर कहा था कि इस खेल का प्रयोजन क्या है? इस शारीरिक श्रम के बदले पैदा क्या हो रहा है?
यह सुनकर मैं चौंका था. यह आदमी तो स्वामी विवेकानन्द के उपदेशों को भी नकार रहा है. बादमें पता चला कि उस आदमी ने गीता पर भी प्रश्न खङे किये थे. उनसे संस्थान का ही एक छात्र दल बहस करने लगा, तो उसने सीधा कहा कि इतने श्रम से इन सबपर होने वाला शिक्शा और खाने-पीने का पूरा खर्च निकल सकता है. कहने की आवश्यकता नहीं है कि आज हम सब मिलकर उसे साकार कर रहे हैं. शुभ विचार की शक्ति और परिणाम स्पष्ट हैं.
अब मैं कुलपति महोदय से मार्ग-दर्शन के लिये निवेदन करता हूँ.”


ठीक समय पर कुलपति जी पधारे. उन्होंने अपना भाषण शुरु किया, -
“अस्तित्व में दुख की रचना नहीं है. सारा दुःख और समस्या भ्रम के कारण है. सबसे पहला और सबसे बङा भ्रम यह है कि मैं शरीर हूँ. शरीर में मैं का आरोपण मानव को नये-नये प्रकार के भ्रमों मे भटकाता है, चक्कर लगवाता है. भारतीय मानस इसी को चौरासी लाख योनियों का चक्कर कहता है.
मानव इस अस्तित्व में ज्ञान की इकाई है. मानव का प्रयोजन है जानना. हर मानव सब कुछ जान लेना चाहता है. ज्ञान मानव मात्र का स्वभाव है. हर मानव सब कुछ जान सकता है. मान्यता बाधा बनती है. मान्यताओं से मुक्त होने के लिये ही आप सब यहाँ अध्ययन रत हैं. अपनी समझ बनाने की जिम्मेदारी खुद अपनी ही है, सह-अस्तित्व तो है ही…. जागृति में हर घटना सहयोगी होती है. स्वीकृति ही सुख है, समाधान ही सुख है. निरन्तर सुख पाना हर मानव का अधिकार भी है, कर्तव्य भी. यही मानव तन का प्रयोजन है. इसी देह-यात्रा में आप चिर-लक्ष्य की प्राप्ति करें, यही शुभ-कामना है.”
- साधक उम्मेदसिंह बैद  

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