कुम्भ पर्व भारत का ही नही वरन् पूरे विश्व का सबसे बडा धार्मिक आयोजन है।कुम्भ पर्व बृहस्पति,सूर्य और चन्द्रमा के योग के आधार पर बनता है ।जब सूर्य मेश मे , तो हरिद्वार में कुम्भ लगता हैं। बृहस्पति प्रत्येक राशि में एक एक वर्ष रहता है व 12 वर्षो में वह सम्पूर्ण राशियों की यात्रा पूरी करता है किसी एक राशि में वह बारह वर्षो के बाद लोटकर आता है ।यही कारण है कि कुम्भ वर्व का योग जो मुख्यत: बृहस्पति की स्थिति पर निर्भर है प्रति बारहवें वर्ष मे ही बनता है ।
कुम्भ में सर्वाधिक महत्व बृहस्पति का होता है जो सौरमण्डल का सबसे बडा ग्रह है इस पर्व से जुडी पौराणिक कथा में बृहस्पति को देवों का गुरू बताया जाना इस दृष्टि से अर्थपुर्ण है । देवो दानवों बीच अमृत कलश के लिये संघर्ष बारह वर्षो तक चलता है इस अमृत कलश की रक्षा मे सूर्य,चन्द्र और बृहस्पति जयन्त की सहायता करते है । सूर्यअमृत कुम्भ को फूटने से बचाते है तो चन्द्रमा उसे गिरने से बचाते है । बृहस्पति के लिए माना जाता है कि असुरों को हाथ नही लगाने दिया इसलिए प्रतीकात्मक रूप से इसे पुराण कथा में सूर्य,चन्द्रमा और बृहसपति के विशेष महत्व को भी दर्शाया गया है ।
देवों- दानवों के बीच छीना छपटी में अमृत कलश से छलकी बूंदे बारह स्थानो पर गिरी ,उनमें से चार स्थान हरिद्वार,प्रयाग नासिक और उज्जैन है शेष आठ देवलोक में माने जाते है । इनकी उपस्थित संभवतया खगोल चक्र के अदृश्य भागों में उपस्थित है । ग्रह योगो का मानव -जीवन जन्तुओ एवं वनस्पतियों पर गहरा प्रभाव पडता है।
कुम्भ पर्व के समय गंगा ,गोदावरी,शकप्रा आदि नदियों के जल के मंगलकारी होने की मान्यता के वैज्ञानिक आधार माने जाते है इसलिए कुम्भ मेले मे इन नदियों में स्नान करने वाले भले ही वैज्ञानिक तथ्यों से अन्जान हो पर श्रद्वा ऋषि-मुनियों द्वारा दिया ज्ञान, इन नदियों में कुम्भ के स्नान को अत्यतं महत्वपूर्ण बनाता है।
स्नान का महत्व- लोके कुम्भ इति ख्यात: जाननीयात् सर्वकामद: अर्थात कुंभ पर्व मनुष्य की समस्त लौकिक कामनाओ को पूरा करने वाला होता है । इस अवसर पर किये गये गंगास्नान जन्यफल को हजारों अशवमेंध एंव सैकडों वाजपेय यज्ञों तथा समस्त पृथ्वी की एक लाख बार की गयी परिक्रमा से प्राप्त फल से भी बढकर बताया गया है ।
अशमेघ सहृस्रमाणि ,वाजपेयशतानि च,
लक्षं प्रदक्षिणा भूमें:,कुम्भ स्नानेन ततफलम्।
हरिद्वार कुम्भ स्नान की तिथियां -
14-जनवरी 2010 (बृहस्पतिवार)******************** मंकरसंक्राति- पहला स्नान
15-जनवरी 2010 (शुक्रवार) ************************मौनी अमवस्या- दूसरा सनान
20-जनवरी 2010 (बुधवार)*************************बंसत पंचमी - तीसरा सनान
30 जनवरी 2010 (शनिवार)************************माघ पूर्णिमा - चौथा स्नान
12 फरवरी 2010 (शुक्रवार)************************महाशिवरात्रि - प्रथम शाही स्नान
15 मार्च 2010 (सोमवार)*********************सोमवती अमवस्या- द्वितीय शाही स्नान
16मार्च 2010 (मंगलवार)***********************नवसंवतारंग - पांचवा स्नान
24 मार्च 2010 (बुधवार)*************************रामनवमी - छठवा स्नान
30 मार्च 2010 (मंगलवार)*******************चैत्र पूर्णिमा/वैष्णव अखाडा स्नान - सांतवा स्नान
14 अप्रैल 2010 (बुधवार)**************************मेष संक्राति बैशाखी - प्रमुख स्नान
28 अप्रैल 2010 (बुधवार)**************************वैशाख अधिमास पूर्णिमा स्नान
कुम्भ में सर्वाधिक महत्व बृहस्पति का होता है जो सौरमण्डल का सबसे बडा ग्रह है इस पर्व से जुडी पौराणिक कथा में बृहस्पति को देवों का गुरू बताया जाना इस दृष्टि से अर्थपुर्ण है । देवो दानवों बीच अमृत कलश के लिये संघर्ष बारह वर्षो तक चलता है इस अमृत कलश की रक्षा मे सूर्य,चन्द्र और बृहस्पति जयन्त की सहायता करते है । सूर्यअमृत कुम्भ को फूटने से बचाते है तो चन्द्रमा उसे गिरने से बचाते है । बृहस्पति के लिए माना जाता है कि असुरों को हाथ नही लगाने दिया इसलिए प्रतीकात्मक रूप से इसे पुराण कथा में सूर्य,चन्द्रमा और बृहसपति के विशेष महत्व को भी दर्शाया गया है ।
देवों- दानवों के बीच छीना छपटी में अमृत कलश से छलकी बूंदे बारह स्थानो पर गिरी ,उनमें से चार स्थान हरिद्वार,प्रयाग नासिक और उज्जैन है शेष आठ देवलोक में माने जाते है । इनकी उपस्थित संभवतया खगोल चक्र के अदृश्य भागों में उपस्थित है । ग्रह योगो का मानव -जीवन जन्तुओ एवं वनस्पतियों पर गहरा प्रभाव पडता है।
स्नान का महत्व- लोके कुम्भ इति ख्यात: जाननीयात् सर्वकामद: अर्थात कुंभ पर्व मनुष्य की समस्त लौकिक कामनाओ को पूरा करने वाला होता है । इस अवसर पर किये गये गंगास्नान जन्यफल को हजारों अशवमेंध एंव सैकडों वाजपेय यज्ञों तथा समस्त पृथ्वी की एक लाख बार की गयी परिक्रमा से प्राप्त फल से भी बढकर बताया गया है ।
अशमेघ सहृस्रमाणि ,वाजपेयशतानि च,
लक्षं प्रदक्षिणा भूमें:,कुम्भ स्नानेन ततफलम्।
हरिद्वार कुम्भ स्नान की तिथियां -
14-जनवरी 2010 (बृहस्पतिवार)******************** मंकरसंक्राति- पहला स्नान
15-जनवरी 2010 (शुक्रवार) ************************मौनी अमवस्या- दूसरा सनान
20-जनवरी 2010 (बुधवार)*************************बंसत पंचमी - तीसरा सनान
30 जनवरी 2010 (शनिवार)************************माघ पूर्णिमा - चौथा स्नान
12 फरवरी 2010 (शुक्रवार)************************महाशिवरात्रि - प्रथम शाही स्नान
15 मार्च 2010 (सोमवार)*********************सोमवती अमवस्या- द्वितीय शाही स्नान
16मार्च 2010 (मंगलवार)***********************नवसंवतारंग - पांचवा स्नान
24 मार्च 2010 (बुधवार)*************************रामनवमी - छठवा स्नान
30 मार्च 2010 (मंगलवार)*******************चैत्र पूर्णिमा/वैष्णव अखाडा स्नान - सांतवा स्नान
14 अप्रैल 2010 (बुधवार)**************************मेष संक्राति बैशाखी - प्रमुख स्नान
28 अप्रैल 2010 (बुधवार)**************************वैशाख अधिमास पूर्णिमा स्नान
*********************
sunita sharma
(कुछ चित्र गुगल से साभार)
1 comment:
बहुत अच्छी जानकारी।
मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामना।
Post a Comment