Friday, June 4, 2010

गंगोत्तरीतीर्थ.......1




यदि हम भारत को गंगासंस्कृति का देश कहे तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी क्योकि यहां के जनमानस में गंगा उनके जीवन का अभिन्न अंग है जन्म से मुत्यु तक उसके उपरान्त भी गंगा गंगजल प्राण से जुडा है कोई भी हिन्दु गंगाजल की उपेक्षा नही कर सकता । इसी दिव्य प्राणदेनी वाली नदी के लिए माना जाता है कि गंगोत्री में गंगा का अवतरण हुआ था। (गंगा अवतरण की कथा इस ब्लाग पर ही अन्यंत्र पढ सकते है) गंगोत्री तीर्थ ही वह जगह है जहां सर्वप्रथम गंगा का अवतरण हुआ था । हिमानी के क्रमश: पिघलते रहने पर यह उद्गम18 किमी0 पीछे गोमुख में चला गया ।
महाभारत में इस तीर्थ का परिचय गरूड के मुख से गलव ऋषि ने इस प्रकार कराया गया है "यही आकाश से गिरती हई गंगा को महादेव जी ने अपने मस्तक पर इस धारण किया और उन्हे मनुष्य लोक में छोड दिया ।"यही भगीरथी के अनुरोध से गंगा स्वर्ग से पुथ्वी पर अवतरित हई व उत्तरवाहिनी बनी उसे गंगोत्तरी कहा गया । 1816 में जब जेम्स वेली फ्रेजर के दल के लोग यहां पहुचे तो तीर्थ के वातावरण व दुशयों को देखकर चकित रह गये थे।छ माह के शीतकाल के दौरान गंगोत्री मंदिर के पट बन्द हो जाते है फिर ग्रीष्म काल में खुलते है बार भी अक्षयतृतीया के दिन मुखवा जिसे मां गंगा के मायका कहते है पूरी भव्यता के साथ मां गंगा की डोली विभिन्न पडावो से होकर गंगोत्री पहुंचती है तभी से गंगात्रीधाम की यात्रा के लिए यात्रियों का आवगमन भी शुरू हो जाता है इस मंदिर के कपाट खुलने के इस अनोखे दृशय को देखने के लिए देश-विदेश से यात्री व श्रद्वालुओ आवागमन पहले ही शुरू हो जाता है मीडिया में इसे कैमरों में कैद करने के अलावा टीवी चैनलो के माध्यमों द्वारा जीवंत दृशयों प्रसारण किया जाता है जब अन्यत्र गर्मी का भीषण प्रकोप बढता जाता है यहां मौसम खुशगवार व सुहावना होता है रात को ठंड होती है ।गंगोत्री उत्तराखण्ड चारधाम यात्रा का का एक प्रमुख धाम है ।इस धाम के लिए ऋषिकेश से उत्तरकाशी,भटवाडी से,गंगनानी,हर्षिल मुखवा,धराली ,भरौघाटी होते हुए वाहन से पहुचा जा सकता है ।यात्रामार्ग में चिन्याडीसौड,बडेथी,धरासु,डुंडा,नाकुरी ,मातली,ज्ञानसु,उत्तरकाशी ,जोशीयाडा,गंगोरी,नेताला,भडवाडी ,सुक्की टॉप
गंगनानी ,हर्षिल,धराली गंगोत्री आदि स्थानों पर रहने व ठहरने की व्यवस्था है.............जारी है अगले भाग में गंगात्तरी मंदिर का ऐतिहासिक विवेचन ।


4 comments:

मनोज कुमार said...

उपयोगी और उत्तम पोस्ट।

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।

अविनाश वाचस्पति said...

लीजिए सुनीता जी आपके अनेक नेक ब्‍लॉगों का भ्रमण कर आया हूं। बिल्‍कुल सुहानी मनभावनी हवा विचारों की भाई है।

kaushalendra said...

Main bhi hun chharaa gangaa kinaare waalaa, aaj gangaa ko dekhataa hun to dukh hotaa hai.Gangaa chetanaa ke liye aapkaa aabhaari hun.Silver&copper jal ko shuddh karte hain.isliye taambe ke sikkey nadi men daalne ki prathaa thi,ab educated log bhi punya ke liye alluminium ke sikkey daal kar jal ko pradushit kar rahe hain.

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