Monday, January 14, 2013

एक संवाद मां गंगा के साथ.....

एक संवाद मां गंगा के साथ

मां आज तुम बहुत खुश हुई होगी 
तुम्हारे बेरहम बच्चों ने 
पुण्य कमाने के लिए
बस स्नान मकर सक्रांति
के नहान के नाम पर 
संगम में पुण्य के लिए
कुछ ने पाप धोने के लिए 
सैकडों हजारों की संख्या 
में डूबकी लगाई होगी
पर मै जो तुम्हारी 
बेटी कसम खाई है
जब तुम्हे तुम्हारा 
वही निर्मलता
शु़द्वता से दुबारा 
परिचित कराने में 
तुम्हारे खोये स्वरूप को 
लौटाने में मेरे बस में
जो होगा वह मै 
अपने अन्तिम क्षण 
तक करूगी तब तक
कितने ही नहान पर्व हो 
तुम्हारे जल में स्नान 
न करूगी..........! 

2 comments:

Kailash Sharma said...

हमने गंगा को कहाँ गंगा रहने दिया..बहुत सार्थक अभिव्यक्ति...

सुनीता शर्मा 'नन्ही' said...

सुंदर सशक्त अभिव्यक्ति ! नमस्कार सुनीता जी ,आपकी लेखनी उर्जावान है !

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