एक संवाद मां गंगा के साथ
मां आज तुम बहुत खुश हुई होगी
तुम्हारे बेरहम बच्चों ने
पुण्य कमाने के लिए
बस स्नान मकर सक्रांति
के नहान के नाम पर
संगम में पुण्य के लिए
कुछ ने पाप धोने के लिए
सैकडों हजारों की संख्या
में डूबकी लगाई होगी
पर मै जो तुम्हारी
बेटी कसम खाई है
जब तुम्हे तुम्हारा
वही निर्मलता
शु़द्वता से दुबारा
परिचित कराने में
तुम्हारे खोये स्वरूप को
लौटाने में मेरे बस में
जो होगा वह मै
अपने अन्तिम क्षण
तक करूगी तब तक
कितने ही नहान पर्व हो
तुम्हारे जल में स्नान
न करूगी..........!
यह ब्लाग समर्पित है मां गंगा को , इस देवतुल्य नदी को, जो न सिर्फ मेरी मां है बल्कि एक आस्था है, एक जीवन है, नदियां जीवित है तो हमारी संस्कृति भी जीवित है.
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2 comments:
हमने गंगा को कहाँ गंगा रहने दिया..बहुत सार्थक अभिव्यक्ति...
सुंदर सशक्त अभिव्यक्ति ! नमस्कार सुनीता जी ,आपकी लेखनी उर्जावान है !
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