ऋषिकेश के मायाकुंड के हनुमान मंदिर स्थापना के पीछे जो दिव्य घटना मिलती है उसके अनुसार संत जीवन बिताने वाले उड़िया बाबा हमेशा के तरह प्रात: स्नान करने के पश्चात सूर्य को जल चढ़l रहे थे एस दोरान उनके हाथो में हनुमान जी के छोटी से मूर्ति स्वममेव आ गयी l इस घटना से अचंभित उड़िया बाबा अपने निवास स्थान पर वापस आ गए l पूरा दिन इस इस बारे में सोचते रहे रात को जब वह सो गए तो उन्हें सपना आया जिसमे राम भक्त हनुमान ने उनसे कहा कि उनकी इस छोटी सी प्रतिमा को विशालकाय रूप में स्थापित किया जाये l उड़िया बाबा परेशान थे की उनके पास धन नहीं है l फिर वह इस मूर्ति को बड़ी मूर्ति के रूप में केसे स्थापित करे ?
अगले दिन चारधाम की यात्रा के लिए चित्रकूट से एक महात्मा परमहंस लछमनदास यहाँ आये उन्होने अपने साथियों के साथ उड़िया बाबा के निवास पर पड़ाव डाला l उन्होंने कहा की चारधाम से पूर्व वह इस स्थान पर हनुमान जी की विशाल मूर्ति की स्थापना करवायगे l संतो ने अपने प्रयास से प्राकृतिक सामग्री पेड़ो से प्राप्त गोंद लाख एवं उड़द की दाळ आदि उपायों से हनुमान जी के प्रतिमा का निर्माण करवाया l जब हनुमान के यह मूर्ति पूरी बन गयी तो चित्रकूट से आये महात्मा वापस चले गये l शायद उन्हें उड़िया बबा की मदद के लिए भगवान ने ही भेजा था l
१९६३ में उड़िया बाब ने शरीर त्याग दिया तत्पश्चात मंदिर का संचlलन भरतदास महाराज ने किया l मंदिर तथा आश्रम चार धाम के यात्रा हेतु आये साधु सन्याशी एवं महात्माओ का विश्राम स्थल शुरु से रहा है l यहाँ उनकी समानभाव से सेवा के जाती है l इस सम्बन्ध में प्रचलित है कि उड़िया बाबा गांजा व नशा आदि करने के अनुमति प्रदान नहीं देते थे l
मंदिर में प्रतिस्थित हनुमान की मूर्ति लगभग नो फिट ऊँची है l इस प्रतिमा का निर्माण पाषाण से नहीं वरन मिट्टी आदि से हुआ है जिस पर सिंदूर पोत कर वर्तमान स्वरुप प्रदान किया है इस तरह के प्रतिमा अब नहीं बनायीं जाती यह संतो के पराक्रम का एक उदहारण है l
हनुमान मंदिर में राम लक्षमन एवम जानकी का मंदिर भी इसे परिसर मे है l मंदिर मनोकामना सिद्ध है इसी विस्वास के कारण यहाँ बहुत दूर दूर से श्र धालू आते है l
यह ब्लाग समर्पित है मां गंगा को , इस देवतुल्य नदी को, जो न सिर्फ मेरी मां है बल्कि एक आस्था है, एक जीवन है, नदियां जीवित है तो हमारी संस्कृति भी जीवित है.
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