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Tuesday, May 29, 2012

तीर्थ नगरी की विवशता................!

जैसे -जैसे गर्मी से पारा बढता जा रहा है वैसे वैसे तीर्थ नगरी की मुशकिलें भी  बढती जा रही है । भीषण गरमी के कारण बीमारियां तो अपने पाव पैसार ही रही है उस पर चार धाम यात्रा के लिए यात्रियों की संख्या  में कमी होने बजाय बढोतरी ही हूई है। इतनी अधिक संख्या में यात्री होने की वजह से चारधाम यात्रा के लिए प्रतिदिन सौ से भी ज्यादा बसें चारधाम यात्रा के लिए भेजी जा रही है फिर भी यात्री कई दिनों तक बस अडडे् में इंतजार करने को विवश है बस न मिल पाने के कारण वह तीर्थ नगरी में ही रूकने को मजबूर है इतने समय यही पर रुके रहने के कारण चारधाम यात्रा तक वह पहुंच ही नही पा रहे है साथ यात्रा के लिए वह जो रुपये पैसे खाने पीने को जा कुछ भी साथ लाये  सब यही खर्च हो गया। चार धाम यात्रा का प्रवेश द्वार होने के कारण चार धाम यात्रा का संचालन यही से होता है । इसकी बाबत प्रशासन द्वारा यात्रियों की सुविधाओ के लिए खासे इन्तजाम भी किये जाते है पर यात्रियों की तदाद का देखते हुए यह सभी व्यवस्थायें प्रभावी नही रह जाती है। संयुक्त रोटेशन के तहत जिन बसों का संचालन किया जा रहा वह बहुत कम है ।यात्रा व्यवस्था के लिए बनायी गयी सयुक्त रोटेशन में इन कमियो के  लिए प्लानिंग की कमी माना जा रहा है। ट्रेवल एजेंट भी अपनी मनमानी से बाज नही आ रहे जिसका प्रभाव सीधा यात्रा पर पड रहा है। गुस्सायें यात्रियों ने जाम तक लगा दिया बसे न मिल पाने के कारण यात्री बेहद खफा है । 
देश के विभिन्न स्थानो से आने वाले यात्रियों की अत्याधिक संख्या  के कारण इस तरह की समस्या तो आयेगी ही पर प्रशासन  की भी जिम्मेदारी दुगनी हो जाती है पर लगता है यहां अव्यवस्था से दो चार होना इस धार्मिक नगरी की आदत ही बन चुकी है कारण जगह जगह बढता अतिक्रमण,सडको पर यात्रियों के साथ घुमते आवारा पशु ,टैम्पुओ का चीखता शोर अब तो यहां की खास पहचान बन चुके है  क्या करे भगवान भरोसे ही तो  है सब व्यवस्थाए इससे क्या फर्क पडता है जिस तीर्थ नगरी की यात्रा के लिए दुसरी जगहो से लोग घुमने व तीर्थ करने गंगा नहाने आते है उन्हे बदले क्या वह सब कुछ मिल पाता है? 

Friday, February 24, 2012

अस्थि विसर्जन कहां हो.........? (ऋषि केश बनाम हरिद्वार)

गत दिवस सूफी गायक कैलाश खेर की मां की अस्थियां ऋषिकेश में चिदानंद मुनि द्वारा गंगा में विसर्जित कराये जाने के कारण हरिद्वार के तीर्थ  पूरोहितों, पंडो व संतों  में गहन रोष स्थित पैदा हो गयी है। उनका यह मानना है कि पद्म पुराण में हरिद्वार में धार्मिक कर्मकाण्ड सम्पन्न कराये जाने का उल्लेख मिलता है। हर की पैडी ,ब्रहमकुण्ड को कलयुग का प्रधान तीर्थ मानने के कारण हरिद्वार में अस्थियां  विसर्जन की कराया जाना शास्त्रोचित्त है। ऋषिकेश में अस्थियां विसर्जन कराने की नयी परम्परा को लागु कर हरिद्वार का महत्व कम किया जा रहा है। अस्थियां विजर्सन हरिद्वार में ही जाने को शारूत्रोचित्त ठहराये जाने व गोमुख से गंगा सागर तक कही भी अस्थि विसर्जन किये जाने के तर्क वितर्क को लेकर ऋषिकेश तथा हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों पंडो व संतो तक में टकराव व बहस की स्थित आ चुकी है । सभी के अपने अपने तर्क है -हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि आदि अनादि काल से पुरखों के उद्वार का कार्य तीर्थ पुरोहितों के पास रहा है संत अस्थि प्रवाह नही करा सकते इसका कडा विरोध होगा जबकि ऋषि केश के तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि ऋषि केश में पौराणिक काल से कर्मकाण्ड ,अस्थि विसर्जन के साथ अन्य धार्मिक गतिविधियां गंगा के तट पर की जाती रही है इसलिए यहां अस्थि विसर्जन का विरोध गलत है  हरिद्वार में रूष्ट तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि चिदानंद मुनि द्वारा चलायी जा रही परपंरा को हरिद्वार का संत समाज व तीर्थ पुरोहित सफल नही होने देगे। ऋषिकेश में भी तीर्थ पुरोहित एकजुट होकर हरिद्वार के इन लोगो का विरोध कर रहे है उनका यह कहना है कि गोमुख से गंगा सागर तक कही भी अस्थि विसर्जन किया जा सकता है 
यह लोग सिर्फ निजी स्वार्थ के कारण ऋषि केश में गंगा में अस्थि विसर्जन करने को लेकर विरोध कर रहे जो शास्त्रोचित्त नही है ।
बहराल अस्थि विसर्जन को लेकर चल रहे गंगा के करीब इस विवाद को रूकने में कोई  सफलता नही मिली है यह पहले से ज्यादा गहराता जा रहा है ।हरि़द्वार में व्यापारी भी तीर्थ पुरोहितों ,पंडा एवं संतों के साथ प्रदर्शन कर रहे चिदानंद मुनि का पुतला फूंक रहे है इन लोगो का यह मानना है कि ऋषि केश में अस्थि विसर्जन करवाये जाने से हर की पैडी तथा ब्रहमकुण्ड के पौराणिक महत्व पर आंच आयेगी तथा यहां के व्यापार पर भी प्रभाव पडेगा। ऋषिकेश में वेद महाविघालय के छात्र भी हरिद्वार के पुरोहितों व पंडा समाज के खिलाफ सडकों पर उतर आये है । ज्यातिषाचार्यो का सम्बन्ध में कहना है कि गंगा में अस्थि विसर्जन का सम्बन्ध  आत्मा की   शान्ति से माना जाता है इसके लिए स्थान विशेष का कोई महत्व नही है । साथ  ऋषि केश के पुरोहित यह भी मानते है कि हरिद्वार के पंडे परपंरागत चली आ रही अस्थियां विसर्जन के स्थान के फेरबदल के विरोध में है जबकि यह एक परिवर्तन चक्र है । यह अपनी- अपनी श्रद्वा का विषय है मां गंगा तो इस धरा पर आयी ही पुरखों के उद्वार के लिए व मानव जाति के कल्याण के लिए है स्थान विशेष पर ही अस्थियां विसर्जित की जायी यह शास्त्रोचित्त न होकर केवल निजी स्वार्थवश है। 

Sunday, June 12, 2011

शिव ने कराया सोमरस पान........प्रकट हुआ शिवलिंग ! (सामेश्वर महादेव, ऋषिकेश) अन्तिम भाग

पिछली पोस्ट में आपने सोमश्वर महादेव मंदिर  व ग्यारह वटवृक्षों  बारे में जाना अब जानिए यहां के शिवलिंग की महत्ता के बारे ..............
तीन  स्वंयभू शिवलिंग में नीलकंठ के बाद 
यह प्रधान पीठ है । "लयं गच्छति भूतानि 
संहारे निखिल यत: " अर्थात संहार के समय सपूर्ण चराचर उसी में समाहित हो जाते है उसी से पुन: सृष्टि होती है इसलिए 
शिव के लिंग महत्वपूर्ण है ।सोमेश्वर मंदिर के स्वंयभू शिवलिंग को निष्कल त्रेणी के लिंग मे रखा जा सकता है । लिंग पुराण 3108 में निष्कल लिंगो को पूजा के योग्य माना गया है उर्ध्व भाग एवं पूजा के रूपायन के आधार पर लिंगों को दो वर्गो में बांटा गया है -गुप्तोत्तर कालीन शिश्न लिंग एवं मध्यकालीन आकारवादिलिंग।
सोमेश्वर मंदिर स्थित लिंग गुप्तोत्तर कालीन लिंगो में से एक है । जिस प्रकार बाडाहाट में विश्वनाथ एवं गोपेश्वर मंदिरों के लिंग इसी काल के है शिवलिंग में वलय तथा रेखायें उभरी हई  है । कहते है कि एक बार किसी ने शिवलिंग को आधुनिक युक्तियों से बनाने का यत्न किया तो रात में ही संपूर्ण  निर्माण सामग्री शिवलिंग से हट गयी और यह अपने पुराने स्वरूप में लौट आया । इस तरह के शिवलिंग यत्र -तत्र ही प्राप्त होते है ।    

इस सिद्वपीठ की महत्ता के बारे में एक जनश्रुति यह भी मिलती है कि ब्रिटिश शासन काल में एक अंग्रेज ने इस शिवलिंग को स्यंभू  (प्राकृतिक रूप से उत्पन्न) नही माना तब इस स्थान की आठ दस फीट गहरी खुदायी करा डाली इस खुदाई के पश्चात एक पूरा पहाड पृथ्वी के नीचे से निकला इसी में यह शिंवलिग स्थापित था । यहां की पौराणिकता में संदेह नही किया जा सकता । महाभारत में भी उल्लेख मिलता है कि जब पांडव हिमालय गये तो माता कुंती समेत पांचो पुत्रो ने इस शिवंलिग का 
जलाभिषेक किया था।
मंदिर के आस पास ऋषि मुनियों के समाधि स्थल है ।वट वृक्ष एंव पीपल के वृक्षों से घिरे इस मंदिर की वातावरण शान्त व रमणिक है । साधुओ की धूनी यहां हमेशा जलती रहती है व प्रसाद के तौर पर   भभूत श्रद्वालुओं को दी जाती है।


सावन के महीने में व महाशिवरात्रि के दिन इस स्यंभू शिवलिंग पर जल चढाने  तथा पूजा अर्चना करने का  विशेष महत्व है । अपनी मनोकामनां पर्ण करने के लिए मंदिर शिंव परिवार की पूजा व रूद्राभिषेक कराने का अत्यन्त महत्व है।



इतने पौराणकि व ऎतिहासकि महत्व का मंदिर होने के बावजूद यहां का अभी तक कुछ खास विकास नही हुआ है । एक तरफ तो उत्तराखण्ड सरकार धार्मिक पर्यटन को बढाने व विकास के लिए
प्रयासरत है पर जब बात इतने महत्वपूर्ण स्थलो की होती है तो इनके हिस्से में सिर्फ उपेक्षा ही आती है। 
यदि हालात इस तरह के ही रहे तो एक दिन यह पौराणिक स्थल केवल आबादी से घिर कर अपनी महत्ता व शान्त वातावरण को नष्ट कर बैठेगे ओर भविष्य में देवभूमि उत्तराखण्ड के पास विश्व को देने के लिए सिर्फ अशान्ति ही होगी शान्ति नही जिस पर देवभूमि के लोग गर्व करते है की हमारी भूमि 
के दर्शन मात्र से शान्ति मिलती है । 


Sunita Sharma Khatri
Freelancer Journalist
Uttarakhand



Wednesday, June 8, 2011

शिव ने कराया सोमरस पान........प्रकट हुआ शिवलिंग ! (सामेश्वर महादेव, ऋषिकेश)

हरिद्वार से ऋषिकेश में प्रवेश करते ही चुंगी चौकी से पश्चिम दिशा में स्थित है सोमेश्वर  महादेव मंदिर। वट वृक्ष के नीचे बना यह मंदिर सोमेश्वर नगर में स्थित मुख्य मार्ग से थोडी उंचाई पर है। यहां तक पहुचने के लिए सीढीयों का निर्माण किया हुआ है संपूर्ण क्षेत्र में वट वृक्ष एंव पीपल के वृक्षों की बहुतायत है । इस स्थान का वर्णन स्कन्द पुराण में भी मिलता है वर्णित कथा के अनुसार भगवान शिव ने यहां देवताओ को सोमरस का पान करवाया तथा एकादश रूद्रो को प्रकट किया । 
पूरे विश्व में कही भी ऎसा स्थान नही है जहां ग्यारह वट  वृक्ष मिलते हो यह ग्यारह वट वृक्ष ग्यारह रूद्रों का प्रतिरूप है ।जिन्हें भगवान शिव  


ने प्रकट किया और भगवान शिव  स्वंय
 जीवित रूप में इन वृक्षों में निवास करते है ।

एक बार सोमदेव नामक ऋषि ने अपने पांव के अंगूठे के बल पर खडे होकर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की तत्पश्चात शिव ने उसे अपने दर्शनो से फलीतार्थ किया । सोमदेव ऋषि के इस जगह पर तप किये जाने के कारण इस पूरे क्षेत्र को सोमेश्वर नगर के नाम से भी जानते है ।ऋषि मुनियों की तपस्थली होने के कारण कालांतर में लोगो को यहां की महत्ता के बारे मे पता चला व वह यहां पूजा अर्चना को आने लगे  ।  


ऋषिकेश में सर्वाधिक प्राचीन आघ ऎतिहासकि मंदिरों में सामेश्वर मंदिर सिद्व पीठ के रूप में जाना जाता है यहां  स्थित तीन सिद्वपीठ मंदिरों में वीरभद्रेश्वर ,चन्द्रेश्वर में से एक सि़द्व पीठ मंदिर सोमश्वर महादेव है । वृक्ष आच्छादित इस मंदिर की विशेषता है कि इसमें वृक्ष पूजा एवं वृक्ष के नीचे स्थापित प्रतिमा है आच्छादित मंदिरो में सोमेश्वर मंदिर इस श्रेणी के मंदिर का अनुपम उदाहरण है ।ब्राहृमण ,बौद्व जैन महान धर्मो की धारायें पर्याप्त कालोंपरांत प्रवाहित हई । इनके उदय से पूर्व अन्यंत्र  की भांति जनसाधारण जडात्य पूजा अथवा भोग ,यक्ष ,भूमिया ,भूतादि  स्थानीय देवता की पूजा करता था ।

मंदिरों के सम्बन्ध में यह जानकारी देते हुए  यह बताना अत्यंत आवशयक है कि आघ ऎतिहासि क वास्तु का एक प्राचीनतम तथा सरलतम रूप तब वृक्ष मंदिर रहा है वृक्ष को देवता या यक्ष का निवास स्थान माना जाता था वृक्ष के चारों ओर वेदी बना कर उसकी पुष्प ,जल और बलि से पूजा की जाती थी इस प्रकार प्राचीन पूजा 
वृक्ष चैत्य वृक्ष  और सवृक्ष चैत्य के बहुश: अंदान प्राप्त होते है ।  वृक्ष व प्रतिमा पूजा बहुत पहले से चली आ रही है जैन सुत्रों में वर्णन है की महावीर काल में चैत्य वृक्ष से संबद्व यक्ष  और नाग भी आच्छादित मंदिरो के ही रूप थे।मथुरा से प्राप्त अब बोस्टन संग्रहालय में प्रारम्भिक कुषाणकालीन एक उत्तरंग पर संवेदी वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग अंकित  है । इसी प्रकार इस भाग में मिली कुणिंद-मुद्राओ पर संवेदी वृक्ष का अंकन है  मंदिरो निर्माण के उपरान्त भी वृक्ष पूजा क की प्राचीन प्रथा प्रचलित रही यह आज भी जारी है  यह मंदिर आघ एतिहासिक मंदिर के वर्गीकरण में रखे जाने के पीछे एक तथ्य यह भी है कि वट वृक्ष के नीचे स्थापित शिवलिंग की पूजा शताब्दियों से की  जनसाधारण द्वारा की जा  रही है । कांलातर में विस्तार किया गया । वट वृक्ष आच्छादित इस मंदिर की विशेषता यह भी है की इस मंदिर मे पूजा उस शिवलिग की ,की जाती है जो स्वंयभू है अर्थात स्वंय उत्पन्न हुआ था । शेष अगली पोस्ट में जानिये कुछ ओर सोमेशवर महादेव मंदिर की महत्ता के बारे में व  क्या है ? स्यंभू शिवलिंग .... ........
सुनीता शर्मा खत्री 
स्वतंत्र पत्रकार 

Saturday, December 11, 2010

गंगा के करीब ........ आध्यात्मिकता की तलाश




कहते है  तीर्थो के पवित्र वातावरण में ऋषि-मुनियों के सत्संग से मनुष्य निष्पाप हो जाता है। अर्थवेद के अनुसार बडे-बडे यज्ञो का अनुष्ठान करने वाले जिस मार्ग से जाते है तीर्थ करने वाले भी उसी पवित्र मार्ग से स्वंय जाते है ।
ऋषि केश एक अत्यन्त प्राचीन तीर्थ है इसकी प्राचीनता व  ऐतिहासिकता पर पहले भी प्रकाश डाला चुका है पढिये इसी ब्लाग पर " ऋषिकेश- एक तपस्थली के रूप में "।




ऋषि केश बसअडडे से लगभग 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित है त्रिवेणी घाट ।जिसे इस शहर का मुख्य स्थान या हृदय की सज्ञा दी जाये तो कई अतिशयोक्ति न होगी ।





इस स्थान पर गंगा यमुना तथा सरस्वती का संगम माना जाता है ।कुब्ज नामक ऋषि के तप से प्रसन्न हो कर यमुना नदी ने अपने जल से उन्हे तृप्त किया ।













यहां अवस्थित कुण्ड में यमुना का जल विघमान है ।
 गंगा ,यमुना व सरस्वती के मिलन के कारण इस जगह को त्रिवेणी  जाना जाता है भूमि के नीचे अभी भी सरस्वती का जल का होना माना जाता है ।
ऋषि कुण्ड के समीप ही सूर्यकुण्ड की स्थिति भी मानी गयी है ।


इस घाट का विकास गंगा सभा एंव विडला प्राधिकरण के सहयोग से किया गया है ।
विगत दिनो बरसात की वजह से गंगा नदी में आयी बाढ से इस स्थान को काफी नुकसान भी पहुचा है।
त्रिवेणी घाट इस तीर्थ नगरी का प्रमुख घाट है यहां 
की गंगा आरती देखने  लायक होती है ।
यही घाट पर ही धार्मिक आयोजन होते ही रहते है 
मत्रों का जाप ,भजनो की आवाजे कानो में घुली रहती है। क्या गंगा के करीब सचमुच ही अध्यात्म की 
प्राप्ति होती है ? संसार के क्रिया कलापों से उकताये लोगो क्या सचमुच वह शान्ति मिलती है जिसकी तलाश में वह गंगा के किनारे इन घाटों की शरण लेते है ? गंगा आरती की आलौककिता अनूठी होती है मां गंगा की शरण हर तकलीफ देर होती है जब मै यह पोस्ट लिख ही रही थी उसी बीच बनारस में गंगा आरती के दौरान हुआ बम विस्फोट की खबर दुखदायी थी यह कितना घृणित एंव शर्मनाक है इन्सान किस कदर इन्सानियत खो चुका है कि वह अपने मकसद के लिए श्रद्वा में विलीन लोगो का भी दुश्मन बन गया इनके हौसले बढ चुके है । चाहे जो भी यह लोग अपने मकसद में कभी कामयाब नही हो सकते ।










अपनी पिछली पोस्ट( आइये करे गंगा स्नान..) में मैने जिक्र किया था आस्था पथ यानि मैरीन ड्राइव का जो गंगा किनारे बना खुबसुरत पथ है जहां से मां गंगा की खुबसुरती को निहारा जा सकता है। 


जब से यह मैरीन- ड्राइव बना है तब से लोगो की आवाजाही भी बढी है इस मार्ग से लोगो को गंगा दर्शन का बेहतर लाभ भी मिला चाहे पर्यटक हो या स्थानीय लोगो का जमावडा सभी को  यह स्थल बहुत खुबसुरत लगता है ,इससे एक अलग पहचान मिली है।यहां की सुरक्षा को लेकर भी खासे इन्तजाम अब कर दिये गये है । 


यह पथ है गंगा के किनारे का पावन पथ जिसे आस्था पथ से जानते है पर आस्था के मायने कहां है ।

नयी पीढी क्या इन बातो को मानती है उन्होने यह जगह सिर्फ घूमने व मौज मस्ती के लिए नजर आती है एकान्त में जहां वह अपनी बाते कर पाते है लेकिन नही जानते अनजाने में ही वह अपसंस्कुति को बढावा दे देते है जो गंगा के किनारे अध्यात्म व शान्ति के तलाश में आये लोगो के लिए कुछ ओर ही संकेत देती है । यह एक अन्तराष्ट्रीय प्रसिद्वि को प्राप्त तीर्थ व योग व अध्यात्म की नगरी है यहां का इतिहास ऋषि -मुनियों के तप का रहा है वहां इन सभी गतिविधियों से यहां के माहौल पर असर पडता है जिसे दूर करने के लिए यह निज की ही जिम्मेदारी होनी चाहिए कि लोगो को यहां की मौलिकता को बरकरार रखना चाहिए तभी ऋषिकेश नामक यह स्थल अपना स्वरूप को बना रख पायेगा व मां गंगा की पवित्रता की रक्षा भी हो सकेगी..................................।  















Saturday, September 12, 2009

ऋषिकेश एक तपस्थली-- भाग--4



ऋषिकेश एक तपस्थली के रूप में  देवताओ से सम्बन्धित ऋषि-मुनियों की तपस्थली पर्वतों की तलहटी में बहती देवनदी गंगा के कारण यह स्थान अति पवित्र माना गया है।स्कन्दपुराण में वर्णन आता है कि ऋषिकेश  में जहां चन्द्रेशवर नगर जहां आज स्थित है वहां चन्द्रमा ने अपने क्षय रोग की निवृति के लिए चौदह हजार देव वर्षो तक तपस्या की थी यह भी उल्लेखनीय है कि कभी यहां भंयकर आग लगी जिससे कुपित होकर शंकर ने अग्नि को शाप से मुक्ति हेतु तप किया इस कारण इसे अग्नि र्तीथ भी कहा गया है।
आज यह नगरी जिस रूप में है उसकी पौराणिकता यह है कि जो भी शान्ति हमें यहां मिलती है उसके पीछे कही यह वजह तो  नही जो तप यहां हुए उसकी वजह से आज भी  ऎसा महसुस करते है।
बाल्मीकि रामायण में भी वर्णन आता है कि भगवान त्रीराम ने वैराग्य से परिपूण होकर इसी स्थान में विचरण किया था ।शिवपुराण में वर्णन आता है कि ब्रहृमपुत्री संध्या ने भी यही तप कर शिव दर्शन प्राप्त किया जो बाद में अरून्धती के नाम से विख्यात हुई।
केदारखण्ड पुराण के अनुसार---गंगा द्वारोत्तर विप्र स्वग स्मृता: बुधै:,यस्य दर्शन वियुक्तों भव बन्धनों:    अर्थात गंगाद्वार हृरिद्वार के उपरान्त केदारभूमि स्वर्ग । भूमि के समान शुरू होती है।जिसमें प्रवेश करते ही दर्शन मात्र से ही भव बन्धनों से मुक्ति हो जाती है ।राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के भस्म हो जाने के उपरान्त जो चार पुत्र रह गये थे उसमें से एक हृषिकेतु ने यहां तप किया था ।मेरे द्वारा इन तपस्वियों के तप का ज्रिक करने का तात्पर्य यह है कि ताकि जनमानस यह जान सके कि ऋषिकेश की तपभूमि किन लोगो की तपस्या द्वारा फलीभूत हुई है साथ आधुनिक र्तीथ यात्री इस पावन स्थान की महत्ता को बरकरार रखे। 
सतयुग में  सोमशर्मा ऋषि ने हृषिकेश नाराणण की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें वर मांगने को कहा था भगवान विष्णु ने उन्हे वर प्रदान कर अपने दर्शन भी कराये इसका जिक्र भी केदारखण्ड में मिलता है।यहां के जो सिद्वस्थल है --वीरभ्रद्र,सोमेशवर एवं चन्द्रेशवर में रात्रि में आलौकिक अनुभूतियां होती है, चन्द्रेशवर में चन्द्रमा ने तप किया तो सोमेशवर में सोमदेव नामक ऋषि ने अपने  पांव के  अंगूठे के बल पर खडे होकर तपस्या की ...................आगे  जारी है।

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यहां वीरभद्र प्रकट हुआ था ----- वीरभद्रेश्वर मंदिर (ऋषिकेश)

पिछली पोस्ट में मैने ऋषिकेश के वीरभ्रद्र क्षेत्र का इतिहास बताया था पर इस पोस्ट में यह बता दू कि क्यो इस क्षेत्र को वीरभद्र के नाम से जाना ...